भारतीय समाज में हिंसा के स्थान पर अहिंसा के संस्कृति का ही परम्परा ही नहीं बल्कि विचारधारा भी रहा है। चर्चा , विमर्श , प्रश्नोत्तर - उत्तर के बीच संवाद का स्थान विवाद और संघर्ष नहीं रहा है। सोच और मूल्य के स्तर पर संघर्ष विद्यमान रहा है जो हर काल में संघर्ष का रूप ले लेता है , स्थायी स्वरूप हों ऐसा सम्भव भी नहीं है। जब भी ज्ञान - विज्ञान के मूल्य में गिरावट होता तो भीड़ तंत्र का उभरना स्वाभाविक है। यह हर काल और समय में हुआ है जो भारत के सांस्कृतिक मूल्य को पतन के ओर ही लेकर चला जाता है। सोच के चिंतन से सत्ता का निर्माण नहीं होता है बल्कि यह सीमित अकादमिक क्षेत्र तक ही सीमित रहता है। हिंसा को बढ़ावा देने से एक तथ्य तो जरूर होता है कि समय - जगह के अनुसार सबके साथ हिंसा होगी। अंतिम रूप से यहीं कहा जा सकता है कि सत्ता आज भी सामान्य लोगों के पहुंच से बहुत दूर होता है लेकिन यह समझने में इतना समय लग जाता है कि तब तक जिं...
भारत रत्न और तीन बार प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी का निधन गुरुवार शाम 5.05 को हुआ जो राष्ट्र के लिए अपूरणीय क्षति है। जनता और जनतंत्र के बीच एकीकरण में अटल एक ऐसे प्रधानमंत्री थे , जिनका असर विपक्षी दलों पर भी पड़ा था। राजनीतिक प्रतिबद्धता के लिए उन्होंने कभी भी अपने दल को नहीं छोड़ा जो आज के लिए बहुत ही प्रासंगिक है। सैद्धांतिक प्रतिबद्धता को उन्हनें राजनीतिक प्रतिबद्धता के साथ जोड़ा , जो कि समकालीन राजनीति के लिए महत्वपूर्ण है। वे 1996 में मात्र तरह दिनों के लिए प्रधानमंत्री बने थे। पुनः 13 अक्टूबर 1999 को उन्होंने लगातार दूसरी बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नई गठबंधन सरकार के प्रमुख के रूप में भारत के प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया। यह कार्यकाल भी मात्र तरह महीनों का रहा। तेरह उनके जिंदगी में बेहद महत्वपूर्ण रहा है। आरम्भिक जीवन अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 ...