बिहार विभूति: डॉक्टर अनुग्रह नारायण सिंह
“मुझे अपने लिए चिंता नहीं है, किंतु देश के
लिए मुझे चिंता है।“ बिहार विभूति डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह
मेरा मानना है सरदार पटेल अगर राष्ट्र को प्रशासनिक ढांचा बनाया तो अनुग्रह बाबू यहीं कार्य बिहार प्रदेश के लिए किया। उनकी सादगी, सद्गुण, देशभक्ति, राष्ट्रवाद और ईमानदारी के लिए आज भी पूरा भारत श्रद्धापूर्वक याद करता है। एक सादगी भरा जीवन जीने और राज - काज के कामों में ज़्यादा समय देने के बाबजूद अपना पूरा ध्यान जनता की सेवा में ही लगा रहा। राष्ट्र-निर्माण के मिशन
को बिहार निर्माण से जोड़ा ही नहीं बल्कि आखिरी पल तक इसे पूरा किया। वे मूल्यों से
कभी भी समझौता नहीं कर पाए। समाजिक एकीकरण और सांस्कृतिक एकीकरण उनके रोजमर्रा के जिंदगी
का हिस्सा बन चूका था। आज भले ही औद्यौगीकरण में बिहार पिछड़ गया लेकिन उनके प्रशासनिक
अंदाज से बिहार तेज गति से उद्योग, व्यापार,
कृषि आदि क्षत्रों में महत्वपूर्ण बन गया था।
यह सतत सामाजिक परिवर्तन के लिए और बदलते समाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक
परिदृश्य के लिए आवश्यक था।
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जन्म - 18 जून, 1857
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ग्राम – पोईअवा
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पिता - ठाकुर विशेश्वर दयाल सिंह
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1900 - औरंगाबाद मिडिल स्कूल
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1904 - गया ज़िला स्कूल
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1908 – 1910 पटना कॉलेज - आई ए की परीक्षा भी
उन्होंने प्रथम श्रेणी में पास की
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1914 - इतिहास से एम.ए.
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1915 - बी एल की परीक्षा में भी सफल
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1916 - कॉलेज की नौकरी से त्यागपत्र
डा अनुग्रह नारायण सिन्हा का जन्म औरंगाबाद जिले के पोईअवा नामक गांव में 18 जून
1887 को हुआ। उनके पिता ठाकुर विशेश्वर दयाल
सिंह जी अपने इलाके के एक वीर पुरुष थे। पांच बसंत जब वे पार कर गये तो उनकी शिक्षा
का श्रीगणेश हुआ। सन् 1900 में औरंगाबाद मिडिल
स्कूल, 1904 में गया जिला स्कूल और 1908 में पटना कॉलेज में प्रविष्ट हुए। जिस समय ये पटना
कॉलेज में आये उस समय देश के शिक्षित व्यक्तियों के हृदय में परतंत्रता की वेदना का
अनुभव होने लगा था। गुलामी की जंजीर में जक़डी हुई मानवता का चित्कार अब उन्हें सुनायी
प़डने लगा था। वे उस जंजीर को त़ोड फेंकने के लिए व्याकुल होने लगे थे। सुरेन्द्रनाथ
बनर्जी तथा योगिराज अरविंद ऐसे महान आत्माओं का प्रादुर्भाव हो चुका था। इन महान आत्माआ
के कार्य कलापों तथा व्याख्यानों का समुचित प्रभाव अनुग्रह बाबू के हृदय पर प़डा। उनका
हृदय भी भारतमाता की सेवा के लिए त़डप उठा और वे उस पावन मार्ग पर अग्रसर हो गये। सर्फूद्दीन
के नेतृत्व में “बिहारी छात्र सम्मेलन” नामक संस्था संगठित की गई, जिसमें देशरत्न राजेन्द्र
बाबू और अनुग्रह बाबू, ऐसे मेधावी छात्रों को कार्य करने तथा नेतृत्व करने का सुअवसर
प्राप्त हुआ।[1]
कृषि आधारित समाज में कृषकों का शोषण हो रहा था। उनके राजनीतिक जीवन का प्रारम्भ अंग्रेजों के विरुद्ध चम्पारण सत्याग्रह आंदोलन से किया था। उन्होंने 9 मई,
1930 को बिहार की कांग्रेस कमेटी ने अनुग्रह नारायण सिंह की अध्यक्षता में 'सविनय अवज्ञा
आंदोलन' को स्वीकार किया। इस आंदोलन के दौरान बिहार में 'चौकीदारी कर बंदी
आंदोलन' को उन्होंने काफी लोकप्रिय बनाया।
बिहार के पहले उपमुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री
1937 में ही बाबू साहब बिहार प्रान्त के वित्त मंत्री बने। अनुग्रह बाबू बिहार विधानसभा में 1937 से लेकर 1957 तक कांग्रेस विधायक दल के उप नेता थे। 1946 में जब दूसरा मंत्रिमंडल बना तब वित्त और श्रम दोनों विभागों के पहले मंत्री बने और
उन्होंने
अपने
मंत्रित्व
काल
में
विशेषकर
श्रम
विभाग
में
अपनी
न्याय
प्रियता
लोकतांत्रिक विचारधारा एवं श्रमिकों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का जो परिचय दिया वह सराहनीय ही नहीं अनुकरणीय है। श्रम
मंत्री
के
रूप
में
अनुग्रह
बाबू
ने
‘बिहार केन्द्रीय श्रम परामर्श समिति’
के
माध्यम
से
श्रम
प्रशासन
तथा
श्रमिक
समस्याओं
के
समाधान
के
लिए
जो
नियम
एवं
प्रावधान
बनाये
वे
आज
पूरे
देश
के
लिये
मापदंड
के
रूप
में
काम
करते
हैं।
तृतीय
मंत्रिमंडल
में
उन्हें
खाद, बीज, मिट्टी, मवेशी में सुधार लाने के लिए शोध कार्य करवाए और पहली बार जापानी ढंग से धान उपजाने की पद्धति का प्रचार कराया। पूसा
का
कृषि
अनुसंधान
फार्म
उनकी
ही
देन
फॉर्म उन्हीं का देन है ।
[2]
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