युद्ध अस्थायी होता है लेकिन शांति स्थायी और दूरगामी होता है। मगर इसके लिए बहुत धन खर्च कर ही इसे विश्व समझा। प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ हों या मानवाधिकार संघ बना। बिना खर्च के अब अमन और चैन भी समझा नहीं जाता ? शायद यह कहना असंगत नहीं होगा कि जल के बिना जीवन असम्भव है। वर्तमान पीढ़ी जल संघर्ष के के वातावरण को समझ पाने में नाकाम ही रहा है। पिछली पीढ़ी द्वारा जल संरक्षण नहीं करना एक न - भूल था तो आज भी चुप रहना जल संकट को बढ़ावा देना ही है। सरकार द्वारा अंतरराज्यीय जल पर हमेशा से बचाव का रजनीति रहा है जिससे समस्या विकट हो जाती है। संघर्ष का स्थायी निदान नहीं होने से समस्या पर स्थिरता कभी नहीं बन पाया। शांति समाज के लिए जरूरी है। भारत में जल संकट को अप्रत्यक्ष रूप से ' अंतरराज्यीय ' संघर्षों का रूप लेता जा रहा है इसे चुनाव में भी ...