युद्ध अस्थायी होता है लेकिन शांति स्थायी और दूरगामी होता है। मगर इसके लिए बहुत धन
खर्च कर ही इसे विश्व समझा। प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ हों या मानवाधिकार संघ बना। बिना खर्च के अब अमन और चैन भी समझा नहीं जाता ? शायद यह कहना असंगत नहीं होगा कि जल के बिना जीवन असम्भव है।
वर्तमान पीढ़ी जल
संघर्ष के के
वातावरण को समझ पाने में नाकाम ही रहा है।
पिछली पीढ़ी द्वारा जल संरक्षण नहीं करना एक न-भूल था तो आज भी चुप रहना जल संकट को बढ़ावा देना ही है।
सरकार द्वारा
अंतरराज्यीय जल पर हमेशा से बचाव का रजनीति रहा है जिससे समस्या विकट हो जाती है। संघर्ष का स्थायी निदान नहीं होने से समस्या पर स्थिरता कभी नहीं बन पाया।
शांति समाज
के लिए जरूरी है। भारत में जल संकट को अप्रत्यक्ष
रूप से 'अंतरराज्यीय' संघर्षों का रूप लेता जा रहा है इसे चुनाव में भी देखा सकता है। जल शोधन क्षमता पर आज भी भारतीय समाज चुप है। जाति से जनादेश तय हों तो जल पर आखिर चर्चा ही क्यों हों ? समय अब मांग करता है कि शुद्ध जल सबके लिए
जरूरी हो गया है। जल संघर्ष का रूपांतरण
विश्व युद्ध में होगा। यह जब उभरेगा तो इसे
रोकना असम्भव होगा। शांति स्थापित करना,
शांति बनाए रखना और शांति बनाए रखने के लिए जल संघर्ष पर आवश्यक रूप से ध्यान देना
होगा।
बलराम यादव द्वारा विश्लेषण काफी प्रासंगिक है। उन्होंने कहा है कि
“विश्व पर्यावरण दिवस 2003 का मुख्य विषय था: जल, जिसके लिये 2 बिलियन लोग मर रहे हैं। इससे टिकाऊ विकास में जल की केन्द्रीय भूमिका उजागर होती है। जिससे संयुक्त राष्ट्र संघ को वर्ष 2003 को स्वच्छ जल का अन्तरराष्ट्रीय वर्ष घोषित करना पड़ा। भारत एशिया के जल संसाधन
समृद्ध देशों में से एक है जहाँ एशिया के नवीकरणीय शुद्ध जलस्रोत का लगभग 14 प्रतिशत
है और प्रतिवर्ष औसत 1150 मि.मी. वर्षा होती है। विगत 20 वर्षों में 2.4 बिलियन से
अधिक लोगों को सुरक्षित जल आपूर्ति हुई है और 600 मिलियन लोगों ने स्वच्छता सुधार किये
हैं। फिर भी 6 लोगों में से एक को सुरक्षित पेयजल की नियमित आपूर्ति नहीं हो पाई। इसके
दोगुने से अधिक (2.4 बिलियन) लोगों को पर्याप्त स्वच्छता सुविधाएँ मुहैया नहीं की जा
सकी हैं। अफ्रीका में 300 मिलियन लोग (आबादी का 40 प्रतिशत) मूलभूत सफाई के बिना रह
रहे हैं और 1990 के बाद उनमें 70 मिलियन की वृद्धि हुई है। विकासशील देशों में 90 प्रतिशत
व्यर्थ जल बिना किसी उपचार के नदियों में बहा दिया जाता है। अस्वच्छ जल में परजीवियों,
अमीबा तथा बैक्टीरिया का प्रजनन होता है जिनसे प्रतिवर्ष 1.2 बिलियन लोगों को हानि
पहुँचती है। विकासशील देशों में 80 प्रतिशत बीमारियाँ तथा मृत्यु जलवाहित रोगों के
कारण होती हैं और प्रति आठ सेकेंड में एक बच्चे की मृत्यु होती रहती है। विश्व के अस्पतालों
के आधे बिस्तर जलवाहित रोगों से पीड़ित लोगों से भरे रहते हैं। विश्व की लगभग 40 प्रतिशत
जनसंख्या समुद्र तट से 60 कि.मी. दूरी के भीतर रही रही है। प्रदूषित तटीय जल से सम्बद्ध
रोग तथा मृत्यु से प्रतिवर्ष 16 बिलियन डॉलर क्षति होती है। दक्षिणी एशिया में
1990 तथा 2000 के बीच 220 मिलियन लोगों को सुधरे शुद्ध जल तथा स्वच्छता से लाभ मिला।
इसी काल में जनसंख्या में 222 मिलियन की वृद्धि हुई जिससे जो लाभ हुआ था उसका सफाया
हो गया। इसी काल में पूर्वी अफ्रीका में स्वच्छता से रहित लोगों की संख्या दोगुनी होकर
19 मिलियन हो गई। 2025 तक विश्व के हर व्यक्ति को सुरक्षित जल तथा उचित सफाई उपलब्ध
कराने में प्रतिवर्ष 180 बिलियन डॉलर व्यय होगा, जो वर्तमान निवेश का 2-3 गुना अधिक
होगा।“[1] यह
आंकड़ा काफी निराशाजनक है। डॉ. गणेश कुमार पाठक कहते हैं
- “पेयजल हमें
दो स्रोतों से
प्राप्त
होता है-
नदियों
से
एवं
भूमिगत
जल
से।
अपने
देश
में
113 स्वतंत्र
नदियाँ
हैं।
जिनकी
सैकड़ों
सहायक
नदियाँ
भी
हैं।
कुछ
क्षेत्रों
में
नदियों
से
सीधे
ही
पेयजल
की
प्राप्ति
की
जाती
है
जबकि
नदी-अभावग्रस्त
क्षेत्रों
में
कुँआ
खोदकर
भूमिगत
जल
का
उपयोग
पेयजल
के
रूप
में
किया
जाता
है।
हैण्डपम्प
द्वारा
भी
भूमिगत
जल
की
प्राप्ति
पेयजल
के
रूप
में
की
जाती
है।“[2] “Thethirdpole” के अनुसार, “दूषित भूजल से होने वाले खतरे एक बार फिर चर्चा में हैं। मीडिया की हालिया खबरों के मुताबिक, देश की राजधानी नई दिल्ली से सटे औद्योगिक क्षेत्र ग्रेटर नोएडा के पांच गांवों में पीने के पानी की वजह से कैंसर के मामले सामने आए हैं। मामले में आगे की छानबीन के लिए जब चिकित्सा विशेषज्ञों और स्वास्थ्य विभाग का दल उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा के छपरौला औद्योगिक क्षेत्र में पहुंचा, तो गांव वालों ने बताया कि दूषित भूजल के कारण आंत के कैंसर, एक्जिमा, हेपेटाइटिस और लीवर संबंधी जानलेवा बीमारियां बहुत तेजी से बढ़ी हैं। गांव वालों का तो यह भी कहना है कि पिछले पांच साल के दौरान कई लोग इन बीमारियों की वजह से मारे जा चुके हैं। इस तरह की खबरों के बाद देश के प्रमुख चिकित्सा संस्थान आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स), नई दिल्ली के शीर्ष कैंसर रोग विशेषज्ञों ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च से हालात पर निगरानी के लिए प्रभावित गांवों में एक कैंसर रजिस्ट्री स्थापित करने को कहा है। वहीं, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिलॉजी रिसर्च से इन गांवों के भूजल में संदूषण का पता लगाने को कहा है जहां अनेक अवैध उद्योग अशोधित कचरों का ढेर लगाते रहते हैं। हालांकि यह तो जांच रिपोर्ट आने के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि ग्रेटर नोएडा में कैंसर की वजह से होने वाली मौतों का कारण दूषित भूजल था या नहीं, लेकिन यह कोई पहली जगह नहीं है जहां भूजल के कारण स्थानीय लोग गंभीर बीमारियों का शिकार बने हों। भारत में तकरीबन 80 फीसदी ग्रामीण आबादी पीने के पानी के लिए भूजल स्रोतों पर निर्भर है। इनमें उत्तर प्रदेश में ही स्थित गोरखपुर जैसे जिले भी शामिल हैं जहां संदूषित जल के कारण होने वाली महामारी हमेशा चर्चा में रहती है। यहां के भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन जैसे तत्व हैं जिसकी वजह से स्थानीय लोगों में इंसेफलाइटिस, पीलिया और टायफाइड जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ी हैं। इन बीमारियों का शिकार ज्यादातर गरीब लोग हैं जो कि न्यूनतम स्वच्छता हालात में जिंदगी बिताते हैं। 2012 के एक अध्ययन-फिंगर प्रिंट ऑफ आर्सेनिक कन्टैमिनेटेड वाटर इन इंडिया-ए रिव्यू– के अनुसार, पूरे उत्तर भारतीय राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में आर्सेनिक संदूषण के मामले सामने आए हैं। पश्चिम बंगाल में गंगा के निचले मैदानी इलाकों, बांग्लादेश और नेपाल के तराई क्षेत्र में भूजल आर्सेनिक संदूषण के भी मामले चिह्नित किए गए हैं।
केंद्रीय भूजल बोर्ड की छानबीन से खुलासा हुआ है कि आर्सेनिक संदूषण से बिहार, असम और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य प्रभावित हो रहे हैं। बांग्लादेश की चौड़ी पट्टी को आच्छादित करने वाले बंगाल के डेल्टा मैदान और भारत में पश्चिम बंगाल, भूजल आर्सेनिक संदूषण से सबसे बुरी तरह प्रभावित हैं।“[3] हाल
में एक फ़िल्म देखा जिसका नाम इरादा है काफी बेहतरीन है।
जिसमें जल के अंदर यूरेनियम संकट को दिखाया गया है। आप भी इसे जरूर देखें और समझे कि
आखिर यह मुद्दा काफी व्यापक क्यों नहीं बन पाया। मीनाक्षी अरोरा ने पंजाब के पानी में यूरेनियम पर केंद्रित बेहतरीन
लेख लिखा है। उनके अनुसार, “पांच नदियों का
दोआब पंजाब, अब बे-आब हो रहा है। आर्सेनिक के बाद पंजाब के एक बड़े इलाके के भूजल और
सतही जल में यूरेनियम पाया गया है। दक्षिण पश्चिम पंजाब क्षेत्र में “सेरेब्रल पाल्सी” से पीड़ित बच्चों के बालों
में यूरेनियम के अंश पाये गए है। हाल ही में जर्मनी की एक लैब ने फरीदकोट के एक मंदबुद्धि
संस्थान “बाबा फ़रीद केन्द्र”
के बच्चों के बालों पर शोध के बाद रिपोर्ट दी है। जर्मनी की माइक्रो ट्रेस मिनेरल लैब
की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि शोध किये गए लगभग 150 बच्चों के बालों में 82 से लेकर
87 प्रतिशत तक यूरेनियम पाया गया है। इस खुलासे के बाद गुरुनानक देव विश्वविद्यालय
द्वारा एक विशेष वैज्ञानिक जाँच शुरु करने का फ़ैसला किया गया है।“[4] रिवर्स
ऑस्मोसिस (आरओ) संयंत्र क्या यूरेनियम को हटा पाएगी ? क्या गरीबों के द्वारा यह मशीन
ख़रीदा जा सकता है ? ऐसे कई प्रश्न हैं, जिनका उत्तर देना आसान नहीं है।
डॉ. सुब्रत घोष, (सहायक प्रोफेसर एवं प्रधान शोधकर्ता, आइआइटी मंडी) ने अपने लेख में हिमाचल में यूरेनियम पाए जाने से संबंधित एक लेख लिखा है। मेरा प्रश्न यह है कि क्या कहीं हिमाचल भी पंजाब के समान ही खतरों से घिरेगा या नहीं ? डॉ घोष ने कहा है -
“हिमाचल के सतही व भूमिगत पानी में कितना यूरेनियम है, इसका खुलासा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के विशेषज्ञ करेंगे। परमाणु विज्ञान अनुसंधान बोर्ड (बीआरएनएस) ने आइआइटी को तीन प्रोजेक्ट सौंपे हैं। अनुसंधान कार्य पर 87 लाख रुपये खर्च होंगे। विशेषज्ञ यूरेनियम की तलाश के साथ पेयजल गुणवत्ता भी जांचेंगे। दुनिया में यूरेनियम का 70 फीसद उत्पादन कजाकिस्तान, कनाडा व ऑस्ट्रेलिया में होता है। यूरेनियम का प्रयोग परमाणु संयंत्रों में ईंधन के रूप में होता है। भारत यूरेनियम के लिए अब भी कजाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया व अन्य देशों पर निर्भर है और इससे परमाणु संयंत्रों को स्थापित करने या पहले से स्थापित संयंत्रों का विस्तार करने में यूरेनियम की कमी आड़े आ रही है। साथ ही परमाणु हथियार विकसित करने में भी दिक्कतें आ रही हैं। बीआरएनएस ने यूरेनियम के भंडार तलाशने के लिए देशभर में अभियान शुरू किया है। इस कड़ी में आइआइटी मंडी को हिमाचल में यूरेनियम की संभावनाओं का पता लगाने के लिए तीन प्रोजेक्ट सौंपे हैं। स्कूल ऑफ बेसिक साइंस व स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ इस अभियान को अमलीजामा पहनाने के लिए मोर्चे पर डट गए हैं। प्रथम चरण में पूरे प्रदेश की डिजिटल मैपिंग होगी। द्वितीय चरण में सतही व भूमिगत जल के सैंपल भरे जाएंगे। सैंपलों की जांच आइआइटी मंडी की प्रयोगशाला में होगी। एक-एक जगह से पानी के 15 से 20 सैंपल लिए जाएंगे। पानी की जांच के लिए ऊना, बिलासपुर, सोलन, सिरमौर, मंडी, कुल्लू, हमीरपुर, शिमला व किन्नौर को चुना गया है। इन जिलों के सतही व भूमिगत जल में कई अशुद्धियां पाई जाती हैं। दूषित पेयजल से प्रदेश के विभिन्न भागों में आए दिन पीलिया व आंत्रशोथ जैसी जलजनित बीमारियों के मामले सामने आते रहते हैं। पानी में यूरेनियम की मात्रा का पता लगाने के लिए आइआइटी प्रबंधन लाखों रुपये की लागत से दो मशीनें खरीदने जा रहा है। यूरेनियम के साथ इन मशीनों से पानी में मौजूद हल्की सी अशुद्धि का भी पता चल जाएगा। जिस क्षेत्र का पानी पीने के योग्य नहीं होगा, उसकी रिपोर्ट आइआइटी प्रबंधन प्रदेश सरकार को सौंपेगा। यूरेनियम से संबंधित रिपोर्ट बीआरएनएस को सौंपी जाएगी। अगर सतही व भूमिगत जल में कहीं पर यूरेनियम की मात्रा पाई जाती है तो उस क्षेत्र में फिर बीआरएनएस अनुसंधान करेगा।
बीआरएनएस ने प्रदेश के नौ जिलों में सतही व भूमिगत जल में यूरेनियम की संभावनाओं का पता लगाने के लिए तीन प्रोजेक्ट सौंपे हैं। इन प्रोजेक्ट पर कार्य शुरू कर दिया है। डिजिटल मैपिंग के बाद पानी के सैंपल लेकर उनकी प्रयोगशाला में जांच होगी।“[5]
जोहान्सबर्ग से टॉक्सिकॉलजिस्ट डॉ. स्मिथ ने पानी में पाए
जाने वाले यूरेनियम पर काफी चिन्ता व्यक्त की हैं। उन्होंने इस संदर्भ में कहा है कि
“फरीदकोट के छोटे से इलाके में बच्चों में शारीरिक विकृतियां देखी जा सकती हैं जैसे-बड़ा सिर, फूली हुई आंखें, मुड़े हाथ और मुड़े पैर। इन असमान्यताओं की जांच के लिए पिछले दिनों बच्चों के बालों के सैंपल साउथ अफ्रीकी टॉक्सिकॉलजिस्ट डॉ. करीन स्मिट की पहल पर जर्मन लैब में भेजे गए थे। पर हाल ही में मिली लैब रिपोर्टों से पता लगा है कि शारीरिक गड़बड़ी की वजह असल में यूरेनियम की उच्च मात्रा होना है। फरीदकोट के बाबा फरीद सेंटर फॉर स्पेशल चिल्ड्रेन के हेड पृथपाल सिंह कहते हैं, 'टेस्ट नतीजों से हम हैरान हैं क्योंकि पंजाब में यूरेनियम का कोई ज्ञात स्त्रोत नहीं है। यूरेनियम की बात उजागर होने पर अब जर्मन और साउथ अफ्रीकी डॉक्टरों की मदद से 150 अन्य प्रभावित बच्चों पर टेस्ट किए जा रहे हैं। इस बात की पड़ताल की जा रही है कि क्या यूरेनियम कहीं से रिसाव के कारण आया है या इसका स्त्रोत प्राकृतिक है। टेस्ट के सिलसिले में अपनी सहयोगी डॉ. वेरिर ड्रिर के साथ यहां आए जोहानिसबर्ग से टॉक्सिकॉलजिस्ट डॉ. स्मिट के मुताबिक, 'जब मैंने पहली बार ब्रेन डैमिज के इतने बड़े पैमाने पर सबूत देखे तो मुझे लगा कि ऐसा जहर के कारण हो रहा है। यूरेनियम के बारे में तो मैंने कतई सोचा भी नहीं था। पर डॉ. स्मिट की कोशिशों से जर्मन लैब में सच सामने आ गया। डॉ. स्मिथ ने कहा कि यूरेनियम के असर से बच्चों को मुक्त करने के लिए डीटॉक्सीफिकेशन किया जाना जरूरी है। यह तभी संभव है जब भारत और पंजाब सरकार के अलावा समाजसेवी संस्थाएं भी आगे आएं। यूरेनियम से मुक्ति दिलाने के लिए हर बच्चे पर 3 से 6 लाख रुपए खर्च आएगा। उन्होंने कहा कि भारतीय मंदबुद्धि बच्चों के बालों में यूरेनियम के अंश मौजूद होने का तो पता चल गया है लेकिन इसका असर शरीर के दूसरे हिस्सों पर कितना है, इसका पता करना भी जरूरी है। जिसके लिए सभी बच्चों के टेस्ट एकत्र कर लिए हैं जो जर्मनी की ‘माइक्रो ट्रेस मिनरल लेबोरेट्री’ को भेजे जा रहे हैं।“[6]
यूरेनियम से ही न्यूक्लियर रियेक्टर संचालित होता है। इसका इस्तेमाल
बम बनाने में भी किया जाता है। यूरेनियम जल को पीने से कैंसर ही नहीं जीवन लीला भी चली जाएगी। युद्ध हों या न हों मानवता का अंत बिना बम से हो जायेगा। जल में यूरेनियम का पाया जाना स्वतः युद्ध ही है जिससे युवा, बच्चे, बूढ़े, महिलाओं, मजदूरों और समाज के पूरे लोग अपंग होगें। समय रहते इस पर काबू पाने और विकल्प के रास्ते भी बनाने होगें। परिणाम से बचने के स्थान पर तथ्यों को निष्पक्ष तरीके से सामने लाने की आवश्यकता है। ये हर जिंदगी के लिए जरूरी है।
विभिन्न सूत्रों से संपर्क से सम्पर्क स्वयं किया और पाया कि इस विषय पर कोई बड़ी बहस नहीं पायी क्यूंकि इंसानों द्वारा सही चीजों के स्थान पर अनर्गल चर्चा अब महतपूर्ण होती जा रही है। आपके अपने विचार जरूर व्यक्त करें और जागरूकता के लिए भी इस मुद्दे पर चर्चा करें।
[1]
http://hindi.indiawaterportal.org/swachh-jal_maanav-svaasthya
[2]
http://hindi.indiawaterportal.org/node/50379
[3]
https://www.thethirdpole.net/hi/2014/11/13/contaminated-water-leading-to-cancer-fear-indian-villagers/
[4]
http://hindi.indiawaterportal.org
[5]
https://www.jagran.com
[6]
http://paryavaran-suraksha.blogspot.in
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