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भारत और इंडिया : मंडल आयोग


मंडल आयोग का उम्र इस वर्ष चालीस हो चुका है। विश्व बदल रहा था - रूस का समाजवाद हाशिये पर आया, जर्मनी का एकीकरण, अमेरिका का युग प्रारम्भ हुआ। भारत आर्थिक संकट के जाल में चला गया। समाजिक परिवर्तन के दिशा में वी पी सिंह द्वारा मंडल आयोग लागू हुआ और देश पिछड़ा और गैर पिछड़ा के आग में झुलसने लगा। आडवाणी जी के रथ यात्रा राजनीति में धर्म का प्रवेश करा दिया। इससे पहले धर्म जनित हिंसा और त्रासदी के ख़ुशी का स्वप्न आजादी का स्वाद भी चखा जा चुका था। गाँधी रो रहे थे सरकार निर्माण का कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा था। नब्बे के दौर में उदारीकरण - निजीकरण और वैश्वीकरण के साथ आर्थिक पुनर्जागरण प्रारम्भ हुआ। भारत और इंडिया में अंतर स्पष्ट हो रहा था। भारतीय समाज अपने प्रिय समाजिक व्यवस्था जातिवाद के जाल में फसता जा रहा था उधर आर्थिक संवृद्धि में इंडिया नाच रहा था। विशेष रूप से हिंदी राज्यों में एक फैशन भी प्रारम्भ हुआ जो  आर्थिक विकास में विश्वास ही खोने लगा। ब्राह्मण जातियों को दोषी करार देने का चलन प्रारम्भ हुआ तो ऐसा लगा मानो इसी से सब कुछ हासिल किया जा सकता है। मंडल युग वास्तव में राजनीतिक सफलता में चार चाँद लगाया वहीं आर्थिक व्यवस्था के संरचना में विनाश का काल ही कहा जा सकता है। आरक्षण से संरक्षित वर्ग का निर्माण होने लगा वे अपने स्व - जातियों पर केंद्रित शासन व्यवस्था चालाने लगा। मनोवैज्ञानिक सफलता समाजिक - आर्थिक - सांस्कृतिक - राजनितिक हिस्सेदारी को मात्र कुछ परिवारों में सीमित किया। नौकरी में सत्ताईस प्रतिशत से मध्य वर्ग उभरा जो भूमि सुधार पहले ही पनप चुके थे। जनतंत्र और जनसंख्या का संगम हुआ मगर कम जनसंख्या वाले राज्य और जाति हाशिये पर चली गयी। शोषण का केंद्र विन्दु में अचानक परिवर्तन हुआ जो कमजोरों और कम जनसंख्या वाले हितों के विरुद्ध हुआ। शोषण करने वाले जातियों में परिवर्तन हुआ मगर कमजोर तो कमजोर ही रह गए। सामूहिकता और जाति के जश्न में लोग अपने अधिकारों को श्रद्धांजलि देने का कार्य शुरू किया। बी सी में ही विभाजन हुआ अंततः कमजोर और ताकतवर बी सी के बीच द्वन्द युद्ध भी प्रारम्भ हुआ। मण्डलयुगीन समाज में बी सी जाति से नेताओं का निर्माण का सिलसिला प्रारम्भ हुआ। ये कहने कि आवश्यकता नहीं है कि अत्यंत पिछड़ी जातियों में जन - चेतना आने लगी लेकिन समय परिवर्तित हो चुका  था। धनबल, बाहुबल, जातिबल, संख्याबल सबसे ऊपर गुंडागर्दी और कुतर्कों के समूह के आगे अधिकार और कर्तव्य को समझना और समझाना आसान भी तो नहीं है।
पचास से अधिक प्रतिशत वाले समूह को दो बार आरक्षण स्वर्ण या राजपूत समुदाय द्वारा आरक्षण दिया गया। अनेकता में एकता लाने का कार्य आखिर किसने किया ? यह सिर्फ सोचने के लिए है।


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