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दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दू कॉलेज



कॉलेज सिर्फ शिक्षण का संस्थान ही नहीं होता है बल्कि अपनी राजनीतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को भी छात्र और छात्रा में विकसित करती है। दिल्ली विश्वविद्यालय जो केंद्रीय विश्वविद्यालय है उसके अंतर्गत ही हिन्दू कॉलेज भी आता है। वर्ष 1881 में सेंट स्टीफेंस कॉलेज[1] की स्थापना हुई थी तो दूसरी ओर हिन्दू कॉलेज की स्थापना 1899 में हुइ थी। यह दोनों संस्थान दिल्ली विश्वविद्यालय में अपनी अलग पहचान रखता है। भारतवर्ष  की राजधानी दिल्ली में  स्थित यह विश्वविद्यालय सन  1922 में स्थापित हुआ था। इस लिहाज से दिल्ली विश्विद्यालय से भी पुराना हिन्दू कॉलेज और सेंट स्टीफेंस कॉलेज है। समाजिक संरचना के अलावे आर्थिक दृष्टिकोण से देखें तो  एक ओर लगभग तमाम संभ्रांत एवं अंग्रेज परिवारों के बच्चे इस कॉलेज में उन दिनों पढ़ते थे वहीं हिन्दू कॉलेज  उच्च वर्गीय  एवं मध्यम वर्गीय दोनों परिवारों के विद्यार्थियों के लिए  यह कॉलेज दरवाजा खोला। समावेशीकरण के प्रक्रिया में हिन्दू कॉलेज का स्वर्णिम अतीत है जो अब तक जारी है।

दैनिक जागरण (11 Jun 2017) के रिपोर्ट के अनुसार, हिन्दू कालेज की स्थापना सन 1899 में चांदनी चौक के किनारी बाजार में श्रीकिशन दास गुड़वाले ने की थी। लेकिन कालेज को शुरूआती दिनों में मूलभूत सुविधाआं की कमी का सामना करना पड़ा। डीयू के इतिहास से पुराना हिंदू कॉलेज का इतिहास है। देश के नामी कॉलेजों में एक यह कॉलेज अपने गौरवशाली अतीत और वर्तमान में बेहतर शिक्षण के लिए जाना जाता है। यहां के पूर्व छात्रों ने इस कॉलेज को अलग पहचान दी है। हिन्दू कालेज की स्थापना सन 1899 में चांदनी चौक के किनारी बाजार में श्रीकिशन दास गुड़वाले ने की थी। लेकिन कालेज को शुरूआती दिनों में मूलभूत सुविधाआं की कमी का सामना करना पड़ा। 1902 में राय बहादुर सुल्तान सिंह ने कैप्टन स्कीनर से जमीन खरीदकर इसके लिए कश्मीरी गेट के समीप जमीन दी। यह कालेज सन 1953 तक कश्मीरी गेट पर चला। उसके बाद इसी वर्ष फरवरी में दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में स्थापित किया गया। असहयोग आंदोलन हो या भारत छोड़ो आंदोलन। महात्मा गांधी, पं जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चंद बोस, मोहम्मद अली जिन्ना, एनी बेसेंट आदि नेताओं ने यहां के छात्रों को स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए जागरूक किया। उस दौरान यह कालेज बौद्धिक विचार विमर्श का अड्डा था आज भी यह कॉलेज अपनी शिक्षा, सांस्कृतिक गतिविधि सहित अन्य उपलब्धियों के कारण चर्चा में रहता है। कॉलेज की कार्यवाहक प्रिंसिपल डा. अंजू श्रीवास्तव का कहना है कि एक गौरवपूर्ण अतीत से जुड़ा यह कालेज अपने इतिहास और वर्तमान को लेकर छात्रों को रोमांचित करता है। पहले कालेज पंजाब विश्वविद्यालय से संबद्ध था। बाद में 1922 में यह कालेज दिल्ली विश्वविद्यालय बनने के बाद इससे जुड़ा। लगभग चार हजार विद्यार्थी हैं। कॉलेज के पूर्व छात्रों का कॉलेज के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है।  कोर्सइस कालेज में विदेशी भाषा फ्रेंच, रशियन, स्पेनिश और जर्मन भाषा में सर्टिफिकेट कोर्स चलाए जाते हैं।  इसके अलावा बीए आनर्स, बीएससी आनर्स और बीकाम आनर्स की पढ़ाई होती है। यहां पर वनस्पति विज्ञान, जन्तु विज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिक  विज्ञान, गणित, अर्थशास्त्र, अंग्रेजी, हिन्दी, इतिहास, संस्कृत, दर्शन शास्त्र, राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, सांख्यिकी और कामर्स के विभाग हैं। सुविधाएंकालेज में खेल का मैदान है। जिसमे क्रिकेट के लिए पिच, बास्केटबाल और अन्य खेलों के लिए सुविधाएं तैयार की जा रही हैं। इसके अलावा कैंपस तीन प्यूटर लैब है जिसमें 120 कंप्यूटर हैं। लगभग 25 कक्षाओं में मल्टीमीडिया प्रोजेक्टर हैं। अध्यापक को ब्लैकबोर्ड और प्रोजेक्टर दोनों पर पढ़ाने की सुविधा है।  पुस्तकालय  के दृष्टिकोण से इस कालेज की लाइब्रेरी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है। इसमें मैगजीन, जर्नल मिलाकर लगभग सभी प्रकार पुस्तकें हैं। जो कई विषयों पर हैं।  पूरी तरह कप्यूटरीकृत लाइबे्ररी में लगभग 250 छात्रों को पढऩे की व्यवस्था है। पूर्व छात्रों ने नाम किया रोशन किया। इस कालेज के हास्टल में बहुत ही प्रतिभावान छात्रों ने रहकर पढ़ाई की है। जिसमें इम्तियाज अली, अर्जुन रामपाल हैं। इस हास्टल में 119 कमरे में कुल 220 छात्र रहते हैं। जिसमें से 10 कमरे दो बिस्तर वाले तथा 109 कमरे एक बिस्तर वाले हैं। छात्राओं के लिए भी हास्टल बनकर तैयार है। हास्टल में छात्रों को वाई फाई, चिकित्सकीय सुविधा के अलावा बालीबाल,टेनिस, बैडमिंटन और कैरम की सुविधा है। इसके अलावा कामन रूम और टीवी रूम भी है। छात्रों को 24 घंटे ठंडा पानी मिले इसकी भी सुविधा है। इस कालेज के कई छात्रों ने देश विदेश में कालेज का नाम रोशन किया है। प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता मोतीलाल और नायक मनोज कुमार भी इस कालेज के छात्र थे। सुब्रमण्यम स्वामी, विनोद राय (पूर्व निदेशक, नियंत्रक महालेखा परीक्षक), गौतम गंभीर, अमिताभ वर्मा (प्रशासनिक अधिकारी), इम्तियाज अली, अर्जुन रामपाल, मुरली कार्तिक, कंचन आजाद आदि छात्र हैं।[2] चन्द्रकिरण सौनरेक्सा लिखी हैं - हिन्दू कॉलेज नाम के उच्चारण मात्र से वहाँ के लम्बे गलियारे, लायब्रेरी, खुले लॉन वाला कैण्टीन और पीछे को बना इंग्लिश विभाग याद गया। अपने पुराने कॉलेज को आधी शताब्दी बाद देखना ऐसा लगेगा जैसे इतिहास को कोई भूला-बिसरा अध्याय अचानक हाथ जाए।[3] ये 1961 से 1963 तक अँग्रेजी विषय में स्नातकोत्तर हिन्दू कॉलेज की छात्रा रहीं थी लेकिन उनके शब्द ये बता रहे हैं उनका भावनावत्मक लगाव काफी बेहद गहरा है। यह एक ऐसी संस्कृति है जो कॉलेज को जीवंत बना देता है। इसीलिए कॉलेज एक सोच ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक विरासत का भी हिस्सा होता है।  हिन्दू कॉलेज ने देश को हर क्षेत्र में एक से एक प्रतिभाएं दी हैं जिन्होंने कॉलेज का नाम रोशन किया है। हिन्दू कॉलेज से अंग्रेजी में स्नातक नलिन सिंह ने हिन्दी सिनेमा को एक नई पहचान देने की कोशिश की है। उनके द्वारा लिखित, अभिनीत फिल्म गांधी टू हिटलर किसी अंतर्राष्ट्रीय चरित्र पर बनी पहली हिन्दी फिल्म है। इसे अन्य अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय भाषाओं जैसे फ्रैंच, जर्मन, पर्सियन, अंग्रेजी, बंगाली, तमिल और गुजराती में भी अनुवादित कर प्रदर्शित किया जाएगा। नलिन सिंह अपने समकालीन मित्रों इम्तियाज अली, अर्जुन  रामपाल, लवलीन टण्डन (स्लमडाग के सह प्रायोजक) एवं नीरज पांडेय के निर्देशक जैसे लोगों के द्वारा उत्साहित करने पर हिन्दी फिल्म जगत में आए। उनकी इस पहली फिल्म के पश्चात ही बॉलीवुड के फिल्म पंडितों ने इन्हें उभरता नया स्टार घोषित किया है। वास्तव में यह फिल्म आधुनिक इतिहास के एक बहुत ही चर्चित व्यक्तित्व हिटलर पर बनी फिल्म है। इस फिल्म में हिटलर के जीवन के अंतिम दिनों का सजीव चित्रण है। इसमें एक ओर जहां उसके अपने तथा उसके अन्य बड़े सैन्य अधिकारियों के विचारों का कश्मकश है। वहीं दूसरी ओर इसमें दो विपरीत विचारधाराओं का संघर्ष भी प्रदर्शित  हुआ है। महात्मा गांधी अहिंसा को अपना धर्म मानते हुए ब्रिटिशों के खिलाफ संघर्ष में हिटलर की सहायता को नकार देते हैं। प्रोड्यूसर और आम्रपाली ग्रुप के सीएमडी डॉ. अनिल कुमार शर्मा के शब्दों में यह फिल्म अपने समय के दो सबसे बड़े चर्चित व्यक्तियों के विचारों में मतभेद को प्रस्तुत करता है। इन दोनों को जोड़ने की कड़ी के रूप में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस हैं, जो अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के लिए अपनी आजाद हिन्द फौज के लिए हिटलर से सहयोग की अपेक्षा करते हैं। नलिन सिंह ने इस फिल्म में हिटलर के प्रचार मंत्री श्री गॉबल्स का किरदार निभाया है। श्री गॉबल्स हिटलर का दाहिना हाथ माना जाता है। फिल्म में यह किरदार इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि हिटलर के शुरुआती दिनों एवं आखिरी दिनों में इसने हिटलर के व्यक्तित्व को एक पूर्णता प्रदान करने की कोशिश की।दिल्ली के रहने वाले नलिन सिंह, एनआरएआई स्कूल ऑफ मास कम्युनिकेशन के डायरेक्टर हैं। इस फिल्म के गाने पल्लवी मिश्रा ने लिखा है और जगजीत सिंह, दलेर मेहंदी, शान, पिनाज मिसानी और अमन बेंसन ने गाया है।[4] इस तथ्य का उल्लेख इसीलिए विस्तार से किया हूँ कि आपसी सहयोग और मनोबल को बढ़ने में सहपाठी, सीनियर और जूनियर के योगदान का हाथ होता है। समाज में सहयोग और संघर्ष निरंतर चलता रहता है लेकिन सहयोग से ही समाज संचालित भी होता तो संघर्ष से सकारात्मक परिवर्तन भी होता है। हिन्दू कॉलेज के संस्कृति में पार्लियामेंट्री छात्र संघ जो इसकी विशिष्ट पहचान है जिससे राजनीतिक संस्कृति को बढ़ावा मिलता है। अग्रिम समाजीकरण के दृष्टिकोण से यह समय से बहुत आगे है।


 




 




[1] https://hindi.news18.com/news/delhi/girls-hostel-major-fee-hike-in-hindu-college-delhi-university-students-protesting-against-1081992.html
[2] https://www.jagran.com/delhi/new-delhi-city-ncr-know-the-glorious-past-of-hindu-college-of-du-16181073.html
[3] Kaliya Mamta (20011) Kal Parson Ke Barson (Hindi) Vani Prakashan, New Delhi, Page No - 14


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