आर्थिक असमानता और राजनीतिक संरक्षण से ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध जन मानस को बदला नहीं जा सका। कानून - प्रवर्तन एजेंसियों में भी सुधार करना होगा और आर्थिक अपराध हेतु परम्परागत पुलिस व्यस्था के स्थान तकनीकि और आधुनिक पुलिस के आवश्यकता को राज्य द्वारा पूर्ति करनी होगी। शिक्षा प्रणाली में नैतिक और मूल्यों को तरजीह देनी ही होगी क्यूंकि भ्रष्टाचार सिर्फ कानून के द्वारा हटाना सम्भव नहीं है। मानवीय सोच और मूल्यों में उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रभाव से सीमित खर्च के स्थान पर अनियंत्रित और अनन्तहीन इच्छा पर सिर्फ समाजिक सोच को बदलने कि
भी आवश्यकता है। सुशासन और परदर्शिता के अभाव में अधिकारियों के मनोबल और अभिप्रेरणा में नकारामक वृद्धि होने से भ्रष्टाचार आधारित मनोवृत्ति को बल ही नहीं मिलता बल्कि उसे सरकारी अधिकारी होने
का नकारत्मक घमंड से बच निकलने का विश्वास भी होता है। समय और संस्कृति के बदलते आयाम में पूँजी का स्थान बढ़ता जा रहा है और नैतिकता को ही गलत ठहराने के परम्परा का विकास हो चुका है।
मेरे अनुसार, भ्रष्टाचार के समाजिक आयाम में जातिवादी सोच का सिद्धांत यह है कि उच्च जातियों और पिछड़ी जातियों के बीच अपना (We) और पराया (They) का अवैज्ञानिक सोच का विकास हुआ है जो राष्ट्रीय एकता और एकीकरण के संदर्भ में खतरनाक है। The term, ethnocentrism was first
coined by William Graham Sumner in 1906. In this writing he discussed the
concept of between group fighting. He believed that the evolution of warfare
was due to ethnocentrism and xenophobia. He presented the notion that warfare
is possible because one group sees itself as superior and better while viewing
the other group contemptuously. Everyone is born into a particular culture and
has learned ways of living that include language, customs, values, beliefs,
religions, etc. It is inevitable that these attitudes be adopted as normal.
When confronted with new and different ways of thinking, these new and
different ways will be viewed as unusual; even odd.[1] विलियम ग्राहम समनर प्रजातिकेंद्रिकता के विचार या सिद्धांत को संशोधित कर
मैं भ्रष्टाचार के परिप्रेक्ष्य को समझना चाहता हूँ। अपनी जाति के भ्रष्टाचार और दूसरे जाति के भ्रष्टाचार एक प्रकार का नया संस्कृति है जो हाल में ही इस प्रकार का सोच या विचार उत्पन्न हुआ। इसका दुष्परिणाम यह है कि पक्षपाती समझ के अनुसार ही अब भ्रष्टाचार का मूल्यांकन हो रहा है। यहाँ पर ध्यान देने बात यह है कि भ्रष्ट भारतीय राजनेताओं के तुलना में पूंजीपतियों और अधिकारीयों ही नहीं कर्मचारियों कि संख्या ज्यादा है। मेरे पास अभी इसका कोई खास आकंड़ा नहीं है जिससे इस तथ्य का पुष्टि हों सकें। लेकिन वायर समाचार के रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस अवैध तरीके निर्दोष लोगों को उठाता है और उन्हें अदालतों से बरी कर देने से पहले कई सालों तक जेल में रखता है, इसके गंभीर परिणाम हैं। भारत के 66% से अधिक कैदियों का कार्यवाहक हैं, जो कि 32% के वैश्विक औसत से दोगुने से अधिक है। जब आतंकवादी मामलों में कमजोर बलि का बकरा तैयार किया जाता है, तो यह न केवल असली आतंकवादियों को उनके अपराधों से मुक्त करने में मदद करता है, लेकिन उन्हें फिर से हड़ताल करने के लिए उन्हें मुक्त कर देता है। यह प्रभावित परिवारों और समुदायों में असंतोष को रोकता है। पीड़ितों और उनके परिवार और समुदाय कारावास के कलंक और उनकी आजीविका पर सामाजिक-आर्थिक प्रभाव के साथ रहते हैं। उनके परिवार, पीढ़ी के बाद पीढ़ी, पर्याप्त मुआवजा, पुनर्वास, सत्य और समापन के लिए प्रतीक्षा करते रहेंगे। अवैध रूप से कैद की गई व्यक्तियों की भरपाई के लिए भारत में कोई प्रणाली नहीं है। व्यावसायिक अपराधियों और उनके सिंडिकेट, निर्दोष और निर्दोष, आपराधिक न्याय प्रणाली को छल करने की अपनी क्षमता के बारे में दावा करते हैं। उनके लिए, यह कानून के शासन पर उनकी जीत है। यह कानून के शासन के खिलाफ गड़बड़ा हुआ हमला एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में भारत के विचार के लिए एक गंभीर खतरा है। भारत के आपराधिक न्याय प्रणाली के विकृत होने के लिए अपराधियों के पुलिस अधिकारियों और उनकी जांच एजेंसियों का क्या योगदान है? 1 9 53 और 2013 के बीच, जांच और अभियोजन की गुणवत्ता कम हो गई है। हत्या के मामले में अभियोग 51% से घटकर 36.5% हो गया। अपहरण के मामले में अभियोग 48% से घटकर 21.3% हो गया। इस अवधि में डकैतियों की सजा 47% से 29% तक गिर गई। 2013 में, केवल 26.5% कथित बलात्कारियों को किताब में लाया गया था। इस गंदगी को आईपीएस के नेतृत्व में पुलिस का सापेक्ष योगदान क्या है? यह एक ऐसा सवाल है जो कुलीन सेवा के सदस्यों को परेशान करना चाहिए। न्यायपालिका और राजनीतिक कार्यकारी को पैसा देने से उनकी प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता में मदद नहीं मिलेगी।[2] कानून और कानून के कार्यान्वयन के बीच बढ़ती दूरी से भ्रष्टाचार के मात्रा में वृद्धि होती जा रही है और भ्रष्टाचार करने के मनोबल में कमी नहीं हो पा रही है। यह महज संयोग नहीं है कि बर्लिन की भ्रष्टाचार आकलन एवं निगरानी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (टीआई) ने भ्रष्टाचार के मामले में दुनिया के कुल 176 देशों की सूची में भारत को 79वें स्थान पर रखा है। टीआई की ‘सीपीआई-2016’ की रिपोर्ट के अनुसार न्यूजीलैंड और डेनमार्क को सबसे कम भ्रष्टाचार वाला देश बताया गया है। सर्वेक्षण में इन देशों को 90 अंक मिले हैं, जबकि सोमालिया को सबसे भ्रष्ट देश बताया गया है और उसे केवल 10 अंक मिले हैं। ‘करप्शन परसेप्शन इंडेक्स-2016’ में भारत और चीन को भ्रष्टाचार के मामले में एक साथ 79वें स्थान पर रखा गया है। टीआई के सर्वेक्षण में दोनों देशों ने 40-40 अंक हासिल किये हैं। पिछले साल ‘करप्शन परसेप्शन इंडेक्स-2015’ की रपट में भारत 38 अंक हासिल करके 76वें स्थान पर था। पिछले साल के सीपीआई सर्वेक्षण में कुल 168 देशों को शामिल किया गया था, जबकि इस साल इस सर्वे में 176 देश शामिल हैं। टीआई के इंडेक्स-2016 के अनुसार कुल 176 देशों मे से करीब दो तिहाई देशों की भ्रष्टाचार रैंकिंग में गिरावट आई है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ‘करप्शन परसेप्शन इंडेक्स-2016’ (सीपीआई-2016) के लिए कई स्तरों पर सर्वेक्षण के बाद देशों को अंक प्रदान करता है जिसके आधार पर सर्वेक्षण में शामिल देशों में भ्रष्टाचार की स्थिति का अनुमान लगाया जाता है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया के प्रमुख रामनाथ झा ने बताया कि सर्वेक्षण में शामिल देशों की संख्या बढ़ने से भारत की सीपीआई रैंकिंग में गिरावट आई है। पिछले साल इस सर्वे में 168 देश शामिल थे, जिसमें भारत 76वें स्थान पर था, जबकि इस साल इसमें कुल 176 देश शामिल किये गये हैं जिसमें भारत 79वें स्थान पर है। टीआई की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार 2016 के इंडेक्स में भारत के स्वच्छता एवं पारदर्शिता अनुमान में दो अंकों की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन भ्रष्टाचार रैंकिंग में यह तीन स्थान नीचे चला गया है। पिछले साल ‘करप्शन परसेप्शन इंडेक्स-2015’ में भारत 38 अंकों के साथ 76वें स्थान पर था जबकि इस साल यह 40 अंकों के साथ 79वें स्थान पर है। इससे पहले 2014 के सीपीआई सर्वे में कुल 174 देश शामिल किये गये थे, जिसमें भारत 38 अंकों के साथ 85वें स्थान पर था। प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, सीपीआई-2016 के विभिन्नि सर्वेक्षणों में भ्रष्टाचार-रोधी कार्रवाई, भ्रष्टाचार के मामलों की निगरानी की कमी, नागरिक समाज के लिए घटते स्थान, संगठित एवं बड़े भ्रष्टाचार, रोजमर्रा के जीवन में बढ़ते भ्रष्टचार और सरकार के प्रति लोगों के कम होते भरोसे, लोकत्रंत के फायदे और कानून की सख्ती आदि कारकों को शामिल किया गया था।[3] ट्रांसपेरेंसी
इंटरनेशनल ने कहा, "भारत के लगातार खराब प्रदर्शन से पता चलता है कि सरकार छोटे
और बड़े हर स्तर पर भ्रष्टाचार से निपटने में नाकाम हो रही है। भ्रष्टाचार के गरीबी, अशिक्षा और पुलिस कार्रवाइयों
पर असर से दिखता है कि देश की अर्थव्यवस्था भले ही बढ़ रही हो लेकिन साथ ही असमानता
भी बढ़ रही है।[4]
"
पंजाब नेशनल बैंक में हुआ भ्रष्टाचार सिर्फ आर्थिक ही नहीं
बल्कि महत्वाकांक्षा और गिरते नैतिकता के अलावे विश्वास के संकट के दृष्टिकोण से देखने
की जरूरत है। विश्वास एक शब्द नहीं बल्कि इससे ही जीवन जीया जाता है और ग्राहक के बचत
के साथ अविश्वास करना मानवता पर कलंक है। बीबीसी हिंदी के एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के दूसरे सबसे बड़े बैंक पंजाब नैशनल बैंक (PNB) में 11 हज़ार करोड़ रुपए (1.8 अरब डॉलर) से ज़्यादा का फ़र्ज़ीवाड़े का पर्दाफ़ाश हुआ है. ये घोटाला मुंबई की एक ब्रांच में हुआ।
ये घोटाला बैंक की मार्केट वैल्यू का क़रीब एक-तिहाई और साल 2017 की आख़िरी तिमाही के मुनाफ़े का 50 गुना है।
बैंक का कहना है कि लेन-देन में हुए फ़र्ज़ीवाड़े से कुछ ख़ास लोगों को फ़ायदा पहुंचाया गया है।
लेकिन ये चिंता भी जताई जा रही है कि ये घोटाला दूसरे बैंकों पर भी असर डाल सकता है और बैंकिंग सेक्टर के भरोसे पर भी इसका असर होगा।
इस घोटाले को निम्न बिंदुओं से इस तरह समझा जा सकता है:
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अरबपति डायमंड कारोबारी नीरव मोदी और उनके साथियों ने साल 2011 में बिना तराशे हुए हीरे आयात करने को लाइन ऑफ़ क्रेडिट के लिए पंजाब नेशनल बैंक की एक ब्रांच से संपर्क साधा.
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आम तौर पर बैंक विदेश से आयात को लेकर होने वाले भुगतान के लिए LoU या लेटर ऑफ़ अंडरटेकिंग जारी करता है. इसका ये मतलब है कि बैंक नीरव मोदी के विदेश में मौजूद सप्लायर को 90 दिन के लिए भुगतान करने को राज़ी हुआ और बाद में पैसा नीरव को चुकाना था.
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लेकिन PNB के कुछ कर्मचारियों ने कथित तौर पर नीरव मोदी की कंपनियों को फ़र्ज़ी LoU जारी किए और ऐसा करते वक़्त उन्होंने बैंक मैनेजमेंट को अंधेरे में रखा.
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इन्हीं फ़र्ज़ी LoU के आधार पर भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं ने पंजाब नेशनल बैंक को लोन देने का फ़ैसला किया.
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साज़िश रचने वाले लोगों ने एक क़दम जाकर स्विफ़्ट या सोसाइटी फ़ॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फ़ाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन का नाजायज़ फ़ायदा उठाने का फ़ैसला किया. ये इंटर-बैंकिंग मैसेजिंग सिस्टम है जो विदेशी बैंक पैसा जारी करने से पहले लोन ब्योरा पता लगाने के लिए इस्तेमाल करते हैं.
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बैंक के कुछ कर्मचारियों ने कथित तौर पर अपने सुपरवाइज़र से बिना कोई इजाज़त लिए गारंटी को हरी झंडी दिखाने के लिए स्विफ़्ट तक अपनी पहुंच का फ़ायदा उठाया.
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इसके फ़लस्वरूप भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं को कोई शक़ नहीं हुआ और उन्होंने नीरव मोदी की कंपनियों को फ़ॉरेक्स क्रेडिट जारी कर दिया.
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ये रकम एक विदेशी बैंक के साथ पंजाब नेशनल बैंक के खाते में दी गई थी जिसे नोस्ट्रो एकाउंट कहते हैं. पैसा इस एकाउंट से मोदी के विदेश में मौजूद बिना तराशे हुए हीरे सप्लाई करने वाले लोगों को भेजा गया.
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जब ये फ़र्ज़ी LoU मैच्योर होने लगे तो पंजाब नेशनल बैंक के भ्रष्ट कर्मचारियों ने सात साल तक दूसरे बैंकों की रकम का इस्तेमाल इस लोन को रिसाइकिल करने के लिए किया.
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इस सारी धोखाधड़ी से तब पर्दा हटा जब पंजाब नेशनल बैंक के भ्रष्ट कर्मचारी-अधिकारी रिटायर हो गए और नीरव मोदी की कंपनी के अफ़सरों ने जनवरी में दोबारा इसी तरह की सुविधा शुरू करने की गुज़ारिश की. नए अधिकारियों ने ये ग़लती पकड़ ली और स्कैम से पर्दा हटाने के लिए आंतरिक जांच शुरू कर दी.[5]
भारतीय समाज ही नहीं बल्कि पूरा विश्व भ्रष्टाचार के इस शक्तिशाली भूकंप से विश्वास अब काँप उठा है और तूफान की तरह भरोसा उड़ा ले गया है। जनतंत्र का आधार कानून तो है लेकिन उससे बड़ा विश्वास है जो समाजिक एकता और राष्ट्रीय एकीकरण के जरूरी है। लगातार बैंकों के द्वारा ग्राहकों और उपभोक्ताओं को घोटाले युग में डालने से कभी नहीं खत्म होने वाला संकट आखिर कब ठहरेगा और विश्वास के लिए क्या कदम उठाये जायेगें ???
[1]
https://link.springer.com/referenceworkentry/10.1007%2F978-0-387-79061-9_1035
[2]
https://thewire.in
[3]
http://zeenews.india.com/hindi/india/india-ranked-79-less-corrupt-than-its-neighbours-except-bhutan-says-transparency-international/316726
[4]
http://www.dw.com/hi/india-ranked-79-in-corruption-perception-index-says-transparency-international/a-37266599
[5]
http://www.bbc.com/hindi/india-43081734
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