सिद्वान्त तथा नीतियों की रूपरेखा तैयार हो गयी
मूल्य और नैतिकता अब बेकार हो गयी
समाजिक मानव अब आर्थिक मानव में बदल गया
जिंदगी भी प्रतियोगिता के हवाले हुआ
उससे निकला तो बाजार का सामना हुआ
बाजार हंसने लगा मनुष्य रोने लगा
अर्थ अब सत्य को बदलने लगा
इंसान भी अर्थ से क़ीमत पूछा
अर्थ जोर - जोर से हंसने लगा
इंसान उसके आगे गिरगिराने लगा
कीमत का मूल्य अर्थ बताने लगा
तभी एक समाचार आया
घोटाले में जाल में इंसान बैठा था
अर्थ अब अनर्थ के पास था
हर इंसान के हाथ में एक पन्ना था
कीमत का पन्ना - अखबारी कागज था
नैतकता को सीखा रहा था
सही - गलत पर बहस जारी था
खुशियों का ज्वार और भाटे का खुमार ले रहा था
समझने वाला बैचैन हुआ
अब समझाने वाला गिरफ्तार हुआ
आर्थिक मानव और समाजिक मानव
दोनों सोचने लगे
ये कैसा अन्याय है - असमानता है लाचारी है
गुनाह हम नहीं करते ये तो समाज करवाता है
न करें तो समान नहीं बिकेगा
करें तो हम नहीं बचेगें
लगने लगा अब
ये युग ही खराब था
चालाकी तो खूब दिखलाई
सत्ता किसी को मिल गयी
कहानी कुछ और नहीं
दूसरे के इंतजार में
अखबारी पन्ना बेक़रार था
लाइट कैमरा तैयार था
आरोपों का दुनिया है
भला हर कोई इंसान है
तो इंसानों को सुनों
आगे कुछ न बोलो
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