182 सदस्यीय गुजरात विधानसभा का परिणाम
18 दिसंबर को प्राप्त हो जायेगा। इस राज्य में विधान परिषद नहीं है। ऐसा अनुमान है कि लोकसभा का चुनाव भी समय से काफी पहले कराया जा सकता है। प्रत्येक चुनाव का परिणाम हर बार नया संकेत देता है कि हारने का आख़िर
कारण क्या है। विधानसभा के चुनाव का असर लोकसभा पर पड़ता है इसका कोई भी स्पष्ट परिणाम अब तक सामने नहीं आया है। जीतने वाला दल और हारने वाला दल दोनों में एक समानता जरूर होता है और वो है - आत्ममंथन।
चुनावी राजनीति में वोटिंग प्रतिशत एक बड़ा मुद्दा होता है जिससे जनाधार का पता चलता है। जीतने का अर्थ कतई यह नहीं होता है कि हारने वाले प्रत्याशी को मत मिला ही नहीं और उसे लोगों ने ख़ारिज कर दिया। प्रतिशत का अन्तर भी एक मुद्दा है जिसे ख़ारिज कर दिया जाता है। मेरा मानना है - जीत और हार के अन्तर को मतदाता प्रतिशत का आकलन करना चाहिए। एक भी मत किसी प्रत्याशी को मिलता है तो उस दल या पार्टी के संसदीय राजनीति में जगह नहीं देने से प्रतिभागी लोकतंत्र का स्वपन्न अधूरा ही रहेगा। जब हम कहते हैं - हम भारत के लोग तो इसमें प्रत्येक
नागरिक शामिल होता है। नीति निर्माण के प्रक्रिया में हारे हुए मत का मूल्य ही खत्म हो जाता है। जीतने वाले व्यक्ति या दल में जब सम्पूर्ण मतदाता शामिल नहीं होता है तो अन्य मतों का प्रतिनिधित्व के प्रश्न पर यहां लोकतंत्र कमजोर पड़ता हुआ नजर आता है।
मेरे विचार से आज के लोकतंत्र में “फर्स्ट पास्ट द पोस्ट” (सर्वाधिक मतप्राप्त व्यक्ति की विजय) प्रणाली सही प्रतीत नहीं दिखाई देता है, क्यूंकि यह प्रणाली सम्पूर्ण और प्रतिभागी लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। ब्रिटिश परम्परा से मिली विरासत से ही यह पद्धति चली आ रही है और अनेकों कमियों के बाबजूद इसे अपनाया जा रहा है।
सबसे पहले यह व्यवस्था कई पूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में प्रयोग किया जाता है, जैसे अमेरिका, कनाडा, भारत और कई कैरिबियन या अफ्रीकी राज्यों। दुनिया में अधिकांश लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रणाली है, जैसा कि भारत में 125 करोड़ से अधिक मतदाता हैं, इसीलिए यहाँ
“फर्स्ट पास्ट द पोस्ट” अपनाया गया।
ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, आयरलैंड, बेल्जियम, साइरपस, माल्टा, डेनमार्क, दक्षिण अफ्रीका और नीदरलैंड सहित कई देशों ने “फर्स्ट पास्ट द पोस्ट” का उपयोग करना बंद कर दिया है। (First
Past the post is used in many former British colonies, such as the US,
Canada, India, and many Caribbean or African states. As India has over 125
crores voters, First Past the Post is the system used by the most people in the
world. Many countries have stopped using First Past the Post though,
including Australia, New Zealand, Ireland, Belgium, Cyrpus, Malta,
Denmark, South Africa and the Netherlands.)[1]
ब्रिटेन
के
विपरीत
अगर
फ्रांस
के
चुनाव
के
प्रक्रिया
को
देखते
हैं
तो
यहाँ
भी
“फर्स्ट
पास्ट
द
पोस्ट”
का
परम्परा
नहीं
है।
राष्ट्रपति
को पचास
प्रतिशत
मत
लाना
अनिवार्य
है।
फ्रांस
के
मौजूदा
कानून
के
अनुसार
यदि
किसी
नेता
को
राष्ट्रपति
पद
का
उम्मीदवार
बनना
है
तो
उसे
सबसे
पहले
अपनी
उम्मीदवारी
के
पक्ष
में
देश
के
500 मेयरों
के
हस्ताक्षर
करवाने
जरूरी
हैं। इसके
बाद
फ्रांस
का
सुप्रीम
कोर्ट
इन
हस्ताक्षरों
की
प्रमाणिकता
की
जांच
करता
है
और
उम्मीदवारी
के
लिए
अंतिम
मंजूरी
देता
है। फ्रांस
में
राष्ट्रपति
का
कार्यकाल
पांच
वर्ष
का
होता
है। आम
तौर
पर
राष्ट्रपति
चुनाव
दो
चरणों
में
होता
है
लेकिन,
यदि
कोई
उम्मीदवार
पहले
चरण
में
50 फीसदी
से
ज्यादा
मत
हासिल
करने
में
कामयाब
हो
जाता
है
तो
उसे
विजयी
घोषित
कर
दिया
जाता
है
और
इस
स्थिति
में
दूसरे
चरण
का
चुनाव
नहीं
कराया
जाता। लेकिन,
यदि
पहले
दौर
में
कोई
भी
उम्मीदवार
50 फीसदी
से
ज्यादा
वोट
नहीं
हासिल
कर
पाता
तो
दूसरे
दौर
का
चुनाव
कराया
जाता
है। पहले
दौर
में
शीर्ष
पर
रहे
दो
उम्मीदवारों
के
बीच
ही
दूसरे
दौर
में
वोटिंग
होती
है। फ्रांस में
प्रधानमंत्री
फ्रांसीसी
सरकार
का
प्रमुख
होता
है। लेकिन,
वहां
का
राष्ट्रपति
उसके
अधीन
नहीं
होता। प्रधानमंत्री
का
संसदीय
कामकाज
में
ज्यादा
दखल
होता
है
जबकि,
राष्ट्रपति
के
हाथ
में
राष्ट्रीय
सुरक्षा
और
विदेशी
मामलों
जैसी
महत्वपूर्ण
शक्तियां
होती
हैं। फ्रांस
में
संसदीय
चुनाव
राष्ट्रपति
चुनाव
के
करीब
एक
महीने
बाद
कराया
जाता
है।
संसदीय
चुनाव
के
बाद
फ्रांस
का
राष्ट्रपति
ही
इन
चुनावों
में
बहुमत
पाने
वाली
पार्टी
के
नेता
को
प्रधानमंत्री
के
रूप
में
चुनता
है। कई
बार
ऐसा
भी
होता
है
राष्ट्रपति
की
पार्टी
को
संसदीय
चुनाव
में
बहुमत
न
मिलने
पर
उन्हें
अपनी
विरोधी
पार्टी
के
नेता
को
प्रधानमंत्री
चुनने
के
लिए
मजबूर
होना
पड़ता
है।[2]
मेरे विचार से अब समय आ गया है नए चुनाव प्रक्रिया के द्वारा ही भारत के लोकतंत्र में हाशिये के समाज को शामिल किया जा सकता है। सर्वाधिक मतों वाला ही प्रतिनिधि होगा तो उस हालात में अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों को हमेशा नुकसान ही उठाना पड़ेगा। राष्ट्र निर्माण तभी सम्भव है जब छोटे राज्यों और हाशिये के वर्गों को जोड़ना ही नहीं बल्कि लोकतंत्र में उचित स्थान भी मिलना चाहिए। ज्यादा और कम से बराबरी के स्थान पर गैर बराबरी को ही बढ़ावा मिलेगा। अंत में यहीं कहना है इस व्यवस्था के कमजोरियों को बाहर कर बेहतर बनाने की आवश्यकता है जिससे समावशी समाज का निर्माण हो सकें।
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