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कलंकित समाज (STIGMATIZED SOCIETY) और अलग-प्रत्यरोप में व्यक्तियों का छवि

इरविंग गोफमैन (ERVING GOFFMAN) एक ऐसे समाजशास्त्री थे जो समाज के कुछ ऐसे पहलू के बारे में बताया जो काफी प्रासंगिक है। जब एक इंसान दूसरे इंसान से अंतःक्रिया करता है तो किस प्रकार लेबलिंग थ्योरी के परिणामस्वरूप दूसरों को कलंकित (STIGMATIZE) करते हैं।

लेबलिंग सिद्धांत तब होता है ज़ब कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह  किसी प्रकार के विचलन को इतना समाजिक रूप से स्थापित कर देते है आरोपित व्यक्ति के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण या धारणा बन जाती है। कलंकित ब्रांड के निर्माण में समाज किस प्रकार अपनी भूमिका निभाता है इसे गोफमैन ने सूक्ष्म तरीके से देखा था।

गोफमैन ने अपनी पुस्तक  "STIGMA" (1963) में इसे विस्तार से समझाया है।

सामाजिक विचलन क्या है ?

सामाजिक विचलन - किसी भी सामाजिक व्यवस्था में समाजिक  समूह के मानदण्डों (NORMS), मूल्यों (VALUES) एवं अभिलाषाओं का उल्लंघन, विचलन कहलाता है। यह समाज में अनुरूपता (CONFORMITY) के विपरीत वह व्यवहार है जिसे मानकहीनता या असामाजिक (गैर-सामाजिक) (ANTINORM OR ANTI-SOCIAL) व्यवहार भी कहा जाता है।

समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से विचलन सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार के हो सकते हैं।

एक केस अध्ययन

पूर्व दूर संचार मंत्री पर आरोप था कि उन्होंने साल 2001 में तय की गई दरों पर स्पेक्ट्रम बेच दिया जिसमें उनकी पसंदीदा कंपनियों को तरजीह दी गई।  क़रीब 15 महीनों तक जेल में रहने के बाद . राजा को हाल ही में ज़मानत दी गई। तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणाधि की बेटी कनिमोड़ी को भी मामले में जेल जाना पड़ा था और उन्हें बाद में ज़मानत मिली।  2 जी घोटाले से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुक़सान पहुंचा था।  टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में . राजा के अलावा के राजनीतिक और उद्योग जगत की कई और बड़ी हस्तियों को इस मामले से जुड़े अलग-अलग आरोपों में हिरासत में लिया गया।

इस घोटाले में जिन लोगों के नाम थे -

. राजा: पूर्व केंद्रीय दूर संचार मंत्री और द्रमुक नेता को इस मामले में पहले तो मंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा, इसके बाद 2011 में इन्हें जेल भी जाना पड़ा।  करीब 15 महीने के बाद इन्हें ज़मानत मिली. इन पर आरोप था कि इन्होंने नियम क़ायदों को दरकिनार कर 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी षड्यंत्रपूर्वक की।

सीबीआई के अनुसार इन्होंने 2008 में साल 2001 में तय की गई दरों पर स्पेक्ट्रम बेच दिया और अपनी पसंदीदा कंपनियों को पैसे लेकर ग़लत ढंग से स्पेक्ट्रम आवंटित कर दिया. हालांकि अब राजा बरी कर दिए गए हैं।


कनिमोड़ी: द्रमुक सुप्रीमो एम करुणानिधि की बेटी राज्य सभा सदस्य थीं और इन पर राजा के साथ मिलकर काम करने का आरोप लगा था।  आरोप था कि इन्होंने अपने टीवी चैनल के लिए 200 करोड़ रुपयों की रिश्वत डीबी रियलटी के मालिक शाहिद बलवा से ली बदले में उनकी कंपनियों को राजा ने ग़लत ढंग से स्पेक्ट्रम दिलाया।

सिद्धार्थ बेहुरा: जब राजा केंद्रीय दूरसंचार मंत्री थे तब सिद्धार्थ बेहुरा दूरसंचार सचिव थे।  सीबीआई का आरोप था कि इन्होंने . राजा के साथ मिलकर इस घोटाले में काम किया और उनकी मदद की. बेहुरा भी राजा के साथ ही दो फ़रवरी 2011 को गिरफ़्तार हुए थे।

आर के चंदोलिया: राजा के पूर्व निजी सचिव पर आरोप था कि इन्होंने राजा के साथ मिलकर कुछ ऐसी निजी कंपनियों को लाभ दिलाने के लिए षड्यंत्र किया जो इस लायक़ नहीं थीं. चंदोलिया भी बेहुरा और राजा के साथ ही दो फ़रवरी 2011 को गिरफ़्तार हुए थे.

शाहिद बलवा: स्वॉन टेलिकॉम के महाप्रबंधक बलवा पर सीबीआई का आरोप ये था कि उनकी कंपनियों को जायज़ से कहीं कम दामों पर स्पेक्ट्रम आवंटित हुआ।  बलवा आठ फ़रवरी 2011 को जेल में बंद किए गए थे।


संजय चंद्रा: यूनिटेक के पूर्व महाप्रबंधक चंद्रा की कंपनी भी इस घोटाले में सीबीआई के अनुसार सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक थे।  स्पेक्ट्रम लेने के बाद उनकी कंपनी ने स्पेक्ट्रम को विदेशी कंपनियों को ऊँचे दामों पर बेच दिया और मोटा मुनाफ़ा कमाया. चंद्रा को 20 अप्रैल 2011 को गिरफ़्तार किया गया था।

विनोद गोयनका: स्वॉन टेलिकॉम के निदेशक पर सीबीआई ने आरोप लगाया था कि उन्होंने अपने साझीदार शाहिद बलवा के साथ मिलकर आपराधिक षड्यंत्र में भाग लिया था।

गौतम दोषी, सुरेन्द्र पिपारा और हरी नायर: अनिल अंबानी समूह की कम्पनियों के ये तीन शीर्ष अधिकारी थे. इन तीनों पर भी षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप था।  इन तीनों अधिकारियों को भी 20 अप्रैल 2011 को जेल में बंद किया गया था।


राजीव अग्रवाल: कुसगाँव फ्रूट्स और वेजिटेबल प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक पर आरोप था कि उनकी कंपनी से 200 करोड़ रुपए रिश्वत के लिए करीम मोरानी की कंपनी सिनेयुग को दिए गए जो आख़िरकार करुणानिधि की बेटी कनिमोड़ी तक पहुँच गए. राजीव अग्रवाल 29 मई 2011 को गिरफ़्तार किया गया था।

आसिफ़ बलवा: शाहिद बलवा के भाई कुसगावं फ्रूट्स और वेजीटेबल प्राइवेट लिमिटेड में 50 फ़ीसदी के हिस्सेदार थे. राजीव अग्रवाल के साथ आसिफ़ बलवा को भी 29 मई 2011 को गिरफ़्तार किया गया था।

करीम मोरानी: सिनेयुग मीडिया और एंटरटेनमेंट के निदेशक पर आरोप था कि उन्होंने कुसगावं फ्रूट्स और वेजिटेबल प्राइवेट लिमिटेड से 212 करोड़ रुपए लिए और कनिमोड़ी को 214 रुपये रिश्वत दिए ताकि शहीद बलवा की कंपनियों को ग़लत ढंग से स्पेक्ट्रम आवंटित कर दिया जाए।[1]

अगर कोई अपराध मुक्त हो जाता है तो वह समाजिक रूप से अपराधी ही रहता है। कानूनी तौर पर न्याय मिल जाता है लेकिन समाजिक कलंक का लेबल नहीं हट पाता है।

आदिम समाज का मीडिया जिस प्रकार समाचार को दिखाता है उससे कलंकित समाज (STIGMATIZED SOCIETY) का निर्माण हो रहा है। कोई भी व्यक्ति इसका शिकार हो सकता है। जब दूसरे का अपराध हों तो आनंद लिया जाता है लेकिन जब स्वयं पर आरोप हों तो नैतिकता के उच्च मानदंड पालन करने के आशा होती है। मेरा विचार है आरोप और प्रमाणित आरोप में अन्तर करें, वरना इसका शिकार आप भी हो सकते हैं, सनसनी फ़ैलाने वाला शिकारी घूम रहा है। उच्च आदर्श और मानदंड सभी के लिए आवश्यक है।



[1] http://www.bbc.com

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