जोगेन्द्रनाथ मंडल के प्रयासों से ही अम्बेडकर न सिर्फ चुनाव जीते बल्कि संविधान सभा के ड्रॉफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष बनें। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनी पहली कैबिनेट में जोगिन्द्र पाल मंडल को देश का विधि मंत्री बनाया था। वे एक तरह से पाकिस्तान के पहले और शायद आखिरी हिन्दू मंत्री बने। मंडल का संबंध ईस्ट बंगाल (अब पाकिस्तान) से था। वे वहां पर मुस्लिम लीग के नेता थे। मंडल अपने को बाबा साहब अंबेडकर के विचारों से बहुत प्रभावित बताते थे। वे दलित थे। कहते हैं कि उन्होंने पाकिस्तान में रहना इसलिए स्वीकार किया क्योंकि जिन्ना ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि पाकिस्तान में दलितों के हितों का ध्यान रखा जाएगा। पर वादे रहे वादे पर मंडल की जिन्ना की मौत के बाद पाकिस्तान में अनदेखी होने लगी। नतीजा ये हुआ कि वे पाकिस्तान को छोड़कर भारत आ गए। ये 1951 के आसपास की बातें हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि पाकिस्तान में हिनदुओं के साथ नाइंसाफी होती है। इसलिए उनका पाकिस्तान में रहना मुमकिन नहीं होगा। मंडल उसके बाद कलकत्ता आ गए। कलकता वे बहुत सक्रिय नहीं रहे। उनका 1968 में निधन हो गया। हिन्दुओं की अनदेखी मंडल ने जो 60 साल से भी पहला कहा था, वह सही निकला पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ कभी न्याय नहीं हुआ। इसी का नतीजा था कि जिन्ना का करीबी हिन्दू मंत्री पाकिस्तान में नहीं रह सका।[1]
नमोशूद्र
समाज में जन्म लेने वाले जोगेन्द्रनाथ मंडल हाशिये पर चले गए। राकेश सिन्हा के अनुसार
- मंडल के कद का पता इसी बात से चल जाता है कि जिन्ना ने 1946 में अविभाजित भारत की
अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग की तरफ से जिन पांच नामों को भेजा था, उनमें एक नाम मंडल
का भी था। यही नहीं, भारत की संविधान सभा के चुनाव में अंबेडकर जब बंबई में हार गए
थे, तो ये मंडल ही थे जिन्होंने अंबेडकर को बंगाल असेंबली के जरिये चुनकर संविधान सभा
में भेजा था। विभाजन के बाद मंडल न सिर्फ पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बने, बल्कि
पाकिस्तान के संविधान लिखने वाली कमेटी के अध्यक्ष भी रहे थे। लेकिन, 1950 में मंडल
ने पाकिस्तान सरकार से इस्तीफा दिया और वापस कलकत्ता आ गए और फिर लौट कर कभी पाकिस्तान
नहीं गये।[2]
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