ज्ञान के सान्निध्य से ही चेतना मिलती है। चेतना से चित्त और मन को शांति मिलती है। शांति से ही समस्या का निवारण होता है। धनवान - गुणवान - शक्तिवान सबको अशांत में देखा है। मन बैचैन होता तभी है जब शरीर और आत्मा एक - दूसरे में सांमजस्य बैठा नहीं पाता है। श्वासों का रूक जाना मौत है तो अशांत मन मौत को ही निमंत्रण दे रहा होता है। समय और विश्वासों के सामंजस्य से ही धैर्य स्थिर रहता है। धैर्य से ही अवगुणों पर नियंत्रण किया जाता है। परेशान आत्मा आपको हमेशा परेशानी को निमंत्रण देती है और परेशानी से आपका मन और चित्त अवचेतन में चला जाता है। एक ऐसा जाल सामने तैयार रहता है जिसे आप देख नहीं पाते है और उस जाल में सिर्फ जंजाल ही रहता है। जंजाल में जीवन का विकास ठहर जायेगा और दुर्गति से आप अवनति के ओर चले जायेगें। अवनति सबसे पहले अपनों से अपना परिचय करा देता है और भ्रम टूटकर हकीकत में बदलने लगता है। हकीकत को देखकर आप हक्का - बक्का रह जाते है और हिंसा पर भी उतारू हो सकते हैं। अगर हिंसा हो गया गया तो समाज से आपको अज्ञातवास लेना पड़ेगा। समाज से अज्ञातवास का दो नाम है - कानून के द्वारा किसी ने किसी को समाज से अज्ञातवास कराया तो उसे जेल कहते हैं। खुद से समाज से कट हए तो उसे समाजिक अलगाव भी कहते हैं। पानी और भोजन से जिंदगी चलती है तो प्यार सुर स्नेह से मानव को मानव रखा जाता है। भावना के बल पर हर भय आपसे दूर होता है लेकिन अतिभावना से आशक्ति का भी जन्म होता है। चेतन मन और अवचेतन मन आपस में लड़ते रहते हैं। दरअसल चेतन मन हकीकत से टकराता है और अवचेतन मन कल्पना लोक में रहता है। दोनों में सामंजस्य से ही अच्छे व्यक्त्तिव का निर्माण होता है।
आपस्तम्ब धर्मसूत्र कहता है - ' संगौत्राय दुहितरेव प्रयच्छेत् ' ( समान गौत्र के पुरुष को कन्या नहीं देना चाहिए ) । असमान गौत्रीय के साथ विवाह न करने पर भूल पुरुष के ब्राह्मणत्व से च्युत हो जाने तथा चांडाल पुत्र - पुत्री के उत्पन्न होने की बात कही गई। अपर्राक कहता है कि जान - बूझकर संगौत्रीय कन्या से विवाह करने वाला जातिच्युत हो जाता है। [1] ब्राह्मणों के विवाह के अलावे लगभग सभी जातियों में गौत्र-प्रवर का बड़ा महत्व है। पुराणों व स्मृति आदि ग्रंथों में यह कहा गया है कि यदि कोई कन्या सगोत्र से हों तो सप्रवर न हो अर्थात सप्रवर हों तो सगोत्र न हों, तो ऐसी कन्या के विवाह को अनुमति नहीं दी जाना चाहिए। विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप- इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्ति की संतान 'गौत्र" कहलाती है। यानी जिस व्यक्ति का गौत्र भारद्वाज है, उसके पूर्वज ऋषि भारद्वाज थे और वह व्यक्ति इस ऋषि का वंशज है। आगे चलकर गौत्र का संबंध धार्मिक परंपरा से जुड़ गया और विवाह करते ...
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