Skip to main content

अगर हम इंसान हैं

अगर हर कोई इंसान है

तो

शोषण करने वाला भी


शोषण सहने वाला भी

अगर हर कोई इंसान है

दासता अगर इंसानों ने किया

दास भी तो इंसान ही थे


अगर कोई इंसान है

सामंत भी इंसान थे

किसान भी इंसान थे

खेत विहीन भी इंसान थे

अगर कोई इंसान है

कल्पना अगर सीजोफ्रेनिया नहीं होता

तो इंसान क्या महान होता

भ्रम रोग का युग आया है

हकीकत से डर से भाग गया

जिंदगी को मुसीबत समझा

अगर कोई इंसान है


यक़ीन करने वाला इंसान था


यक़ीन दिलाने वाला इंसान था

अगर कोई इंसान है

जाति भी इंसानों ने बनाया

इंसानों के इस विभाजन से

टूट रहा इंसानों का समाज

हो गयी गलती एक बार  अगर

सुधार हों बार - बार

शेष नहीं है शोषण तो

करो समीक्षा इसकी

डर कर अगर भाग गया


इंसान फिर इंसान नहीं होगा

सोचा मैंने भी बहुत

अगर कोई इंसान है

पहचान छुपाना नहीं है

आग है अगर दिलों में

पानी कम होती जा रही है अब

कौन बुझायेगा इस आग को

शायद वो जल जायेगा

जल पीने को तरस रहा इंसान

लम्बी - लम्बी कतारों में

हम लड़ रहे बड़ी - बड़ी जन सभाओं में

डोरे डाल रहा है इंसान

जाल में फसा है इंसान

अगर हम इंसान है

तो महिला भी इंसान है

क्यों भला अब कोई समझता नहीं

हर बहन एक समान

लूट रही है इज्जत

इंसानों में बेशर्मी से

अगर रोक नहीं तुमने अगर

जन्म तुम ले नहीं सकोगें

अपमानित जब महिला का होता है

भला ऐसा सम्मान मिलें कैसे इन इंसानों को

अगर हम इंसान हैं

ख्वाब अधूरे हैं

नींद अब गहरी नहीं है

बेचैनी से परेशान इंसान

मैंने देखा

एक इंसान

फिर देखा


दूसरा इंसान

चुप था मैं

एक - दूसरे को सिर्फ लड़ते देखा है

कोई सामने से

कोई पीछे से

कभी खुद से

कभी दूसरों से

अगर हम इंसान हैं

क्या हर कोई इंसान नहीं

अगर हम इंसान हैं


मृत्युंजय कुमार


Comments

Popular posts from this blog

भारत की बहिर्विवाह संस्कृति: गोत्र और प्रवर

आपस्तम्ब धर्मसूत्र कहता है - ' संगौत्राय दुहितरेव प्रयच्छेत् ' ( समान गौत्र के पुरुष को कन्या नहीं देना चाहिए ) । असमान गौत्रीय के साथ विवाह न करने पर भूल पुरुष के ब्राह्मणत्व से च्युत हो जाने तथा चांडाल पुत्र - पुत्री के उत्पन्न होने की बात कही गई। अपर्राक कहता है कि जान - बूझकर संगौत्रीय कन्या से विवाह करने वाला जातिच्युत हो जाता है। [1]   ब्राह्मणों के विवाह के अलावे लगभग सभी जातियों में   गौत्र-प्रवर का बड़ा महत्व है। पुराणों व स्मृति आदि ग्रंथों में यह कहा   गया है कि यदि कोई कन्या सगोत्र से हों तो   सप्रवर न हो अर्थात   सप्रवर हों तो   सगोत्र   न हों,   तो ऐसी कन्या के विवाह को अनुमति नहीं दी जाना चाहिए। विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप- इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्ति की संतान 'गौत्र" कहलाती है। यानी जिस व्यक्ति का गौत्र भारद्वाज है, उसके पूर्वज ऋषि भारद्वाज थे और वह व्यक्ति इस ऋषि का वंशज है। आगे चलकर गौत्र का संबंध धार्मिक परंपरा से जुड़ गया और विवाह करते ...

ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद

ब्राह्मण एक जाति है और ब्राह्मणवाद एक विचारधारा है। समय और परिस्थितियों के अनुसार प्रचलित मान्यताओं के विरुद्ध इसकी व्याख्या करने की आवश्यकता है। चूँकि ब्राह्मण समाज के शीर्ष पर रहा है इसी कारण तमाम बुराईयों को उसी में देखा जाता है। इतिहास को पुनः लिखने कि आवश्यकता है और तथ्यों को पुनः समझने कि भी आवश्यकता है। प्राचीन काल में महापद्मनंद , घनानंद , चन्द्रगुप्त मौर्य , अशोक जैसे महान शासक शूद्र जाति से संबंधित थे , तो इस पर तर्क और विवेक से सोचने पर ऐसा प्रतीत होता है प्रचलित मान्यताओं पर पुनः एक बार विचार किया जाएँ। वैदिक युग में सभा और समिति का उल्लेख मिलता है। इन प्रकार कि संस्थाओं को अगर अध्ययन किया जाएँ तो यह   जनतांत्रिक संस्थाएँ की ही प्रतिनिधि थी। इसका उल्लेख अथर्ववेद में भी मिलता है। इसी वेद में यह कहा गया है प्रजापति   की दो पुत्रियाँ हैं , जिसे ' सभा ' और ' समिति ' कहा जाता था। इसी विचार को सुभाष कश्यप ने अपनी पुस्...

कृषि व्यवस्था, पाटीदार आंदोलन और आरक्षण : गुजरात चुनाव

नब्बे के दशक में जो घटना घटी उससे पूरा विश्व प्रभावित हुआ। रूस के विघटन से एकध्रुवीय विश्व का निर्माण , जर्मनी का एकीकरण , वी पी सिंह द्वारा ओ बी सी समुदाय को आरक्षण देना , आडवाणी द्वारा मंदिर निर्माण के रथ यात्रा , राव - मनमोहन द्वारा उदारीकरण , निजीकरण , वैश्वीकरण के नीति को अपनाना आदि घटनाओं से विश्व और भारत जैसे विकाशसील राष्ट्र के लिए एक नए युग का प्रारम्भ हुआ। आर्थिक परिवर्तन से समाजिक परिवर्तन होना प्रारम्भ हुआ। सरकारी नौकरियों में नकारात्मक वृद्धि हुयी और निजी नौकरियों में धीरे - धीरे वृद्धि होती चली गयी। कृषकों का वर्ग भी इस नीति से प्रभावित हुआ। सेवाओं के क्षेत्र में जी डी पी बढ़ती गयी और कृषि क्षेत्र अपने गति को बनाये रखने में अक्षम रहा। कृषि पर आधारित जातियों के अंदर भी शनैः - शनैः ज्वालामुखी कि तरह नीचे से   आग धधकती रहीं। डी एन धानाग्रे  ने कृषि वर्गों अपना अलग ही विचार दिया है। उन्होंने पांच भागों में विभक्त किया है। ·  ...