दैनिक हिंदुस्तान अख़बार अपनी रिपोर्ट में लिखा है (27 नबम्बर, 2017) - भागलपुर के नवगछिया स्थित झंडापुर में अपराधियों खौफनाक वारदात को अंजाम देते हुए एक ही परिवार के तीन लोगों की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी। अपराधियों ने काली कबूतरा स्थान के बगल में वार्ड नंबर 6 के कबूतरा स्थान के पास शनिवार की रात अपराधियों ने गायत्री राम उर्फ कनीक राम, उसकी पत्नी मीना देवी की कुल्हाड़ी से काटकर निर्मम हत्या कर दी। वहीं कुल्हाड़ी के वार से गंभीर रूप से घायल मृतक के बेटे छोटू ने जवाहरलाल नेहरू अस्पताल भगलपुर अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। वहीं मृतक की बेटी बिन्दी कुमारी का इलाज भागलपुर में किया जा रहा है। इससे पहले दोनों को गंभीर हालत में बिहपुर पीएचसी लाया गया था जहां से दोनों को प्राथमिक उपचार के बाद भागलपुर रेफर कर दिया गया। उधर घटना की सूचना पर एसडीपीओ मुकुल कुमार रंजन, इंस्पेक्टर अजय कुमार, सीओ रतन लाल और ओपी प्रभारी जवाहर लाल सिंह मौके पर पहुँच कर पड़ताल शुरू कर दी।
एसडीपीओ मुकुल कुमार रंजन ने बताया कि तीन लोगों की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या की गई है। घटना के कारणों का अभी पता नही चल पाया है। केस दर्ज होने के बाद ही कुछ कह जा सकता है।[1]
न्यूज़ 18 अपनी एक रिपोर्ट ( July 23, 2016) में लिखा है - बिहार में मुजफ्फरपुर में दलितो के साथ इंसानियत को
शर्मसार करने वाली घटना सामने आयी है। जहां मोटरसाइकिल चुराने के आरोप में दबंगों पर दो युवको को जमकर पीटने और इससे भी जी नहीं भरा तो इनको पेशाब पिलाने का आरोप है। इस मामले में पुलिस ने दो लोगो को गिरफ्तार किया है साथ ही पूरे मामले की जांच की जा रही है। आरोप है कि इस दलित महिला के साथ गांव के एक दबंग और उसके गुर्गों ने जमकर मारपीट की। दरभंगा के गांव में ये महिला मनरेगा के तहत मिला अपनी मेहनत का 300 हजार रुपया निकालकर आई तो समीउर रहमान उर्फ फूल बाबू नाम के बिचौलिए ने कमीशन मांगा और नहीं देने पर इनका ये हाल किया। आरोप है कि जब महिला की बेटी बीच बचाव के लिए आई तो उसके साथ भी मारपीट की गई।[2]
दैनिक जागरण (31 Jul 2016) ने लिखा है - सूबे में दरभंगा जिला में एक और दलित महिला पर अत्याचार का मामला सामने आया है। दरभंगा के बहेड़ा थाने के पीपरा गांव में दबंगों एक दलित महिला को नग्न कर पीटा तथा मुंह में पेशाब करने की कोशिश की। दबंगों के डर से महिला ने गांव छोड़ दिया था, लेकिन अब उसने घटना की एफआइआर दर्ज करा दी है। अनुमंडल पुलिस अधिकारी अंजनी कुमार सिंह ने रविवार को घटना की पुष्टि की है। पीडि़ता के मुताबिक, उसका पति अजय पासवान गुजरात में मजदूरी करता है। घटना की रात आरोपी घर में घुस गए तथा उसके कपड़े उतारकर पिटाई की। इसके बाद मुंह में पेशाब करने की कोशिश की। दबंगों ने बात आगे बढ़ाने पर हत्या की धमकी दी। उसके अनुसार दबंगों ने उसके डायन होने के शक में बुरा हाल किया। गांव में कुछ लड़कों के बीमार पडने के बाद महिला को डायन बताया गया था। महिला
ने एफआइआर में गांव के डोमू यादव, संतोष यादव, बचेलाल यादव समेत अन्य पर कपड़े उतारकर पीटने व पेशाब पिलाने के प्रयास समेत अन्य कई गंभीर आरोप लगाए हैं। आरोपी फरार हैं। घटना की बाबत बेनीपुर अनुमंडल पुलिस अधिकारी अंजनी कुमार सिंह ने रविवार को बताया कि महिला ने बहेरा थाना में एफआइआर दर्ज करायी है। पुलिस मामले की छानबीन कर रही है। तीन दिनों पहले की इस घटना के बाद से महिला ने भय के कारण अपना गांव छोड़ दिया है। गौरतलब है कि इससे पूर्व गत 16 जुलाई को नेहरा ओपी के पैठान कबई गांव में दबंगों ने एक दलित महिला और उसकी बेटी पर मनरेगा की कमाई में कमीशन देने से इंकार करने पर कहर बरपाया था।[3]
बसंत कुमार ने लिखा है - पिछले कुछ दिनों से देश के अलग-अलग क्षेत्रों से दलितों के प्रति दुर्व्यवहार की खबरें आ रही हैं। कहीं, गोरक्षा के नाम पर, कहीं पुलिस की मनमानी के कारण तो कहीं पर सरकार की उदासीनता के कारण दलित समुदाय के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। गुजरात हो या यूपी, बिहार हो या राजस्थान हर एक जगह से लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं। आजकल दलितों को निशाना बनाने वाले निडर होकर मारते-पिटते हैं और मार-पिटाई की वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल देते हैं। गुजरात में गोरक्षा दल द्वारा गोमांस होने के शक में तो दलितों को ऐसे मारा जा रहा था, जैसे फुटबॉल को मारा जा रहा हो। गुजरात में जब गोरक्षकों ने दलितों पर हमला किया तो उसी दौरान बिहार के मुजफ्फरपुर के पारु में बाइक चोरी के आरोप में दो दलित युवकों की ना सिर्फ पिटाई की गई, बल्कि उनके मुंह पर पेशाब भी किया गया। गुजरात का मामला बड़ा था इसलिए इसकी आड़ में बिहार का यह कांड छुप गया।नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)
के आंकड़ों के अनुसार दलितों के उत्पीड़न के मामले में
उत्तर प्रदेश, राजस्थान के बाद बिहार तीसरे नम्बर पर है। आकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में 2014 में दलितों पर अत्याचार के 8075 मामले आए, राजस्थान में 8028 मामले सामने आए और बिहार में 7893 केस सामने आए।
एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं, बिहार में साल दर साल दलित उत्पीड़न के मामले लगतार बढ़ रहे हैं। जहां 2012 में दलित उत्पीड़न के 4,821 मामले सामने आये थे , वहीं 2013 में ये बढ़कर 6,721 और 2014 में 7,893 हो गए। बिहार में दलितों की आबादी 1 करोड़ 65 लाख 70 हजार है। बिहार
पुलिस के पिछले 5 साल के आंकड़े भी एनसीआरबी के आकड़ों को सपोर्ट करते हैं। बिहार पुलिस के आकड़ों के अनुसार 2011 में जहां दलितों के खिलाफ अपराध के 3438 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2013 में यह संख्या बढ़कर 6359 हो गई। बिहार में इससे पहले भी दलितों पर हमले होते रहे हैं। दलितों महिलाओं को डायन बताकर गांव से निकाल दिया जाता रहा है। 11 जुलाई 1996 के दिन तो रणबीर सेना नाम के उच्च जातियों के एक गैर कानूनी गुट ने भोजपुर जिले की एक छोटी-सी बस्ती पर हमला कर 21 दलितों का गला रेत दिया था।[4]
बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने कार्यकर्ताओं को दलितों के खिलाफ संघर्ष के लिए तैयार रहने को कहा। जातीय हिंसा में झुलसे सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव जाते समय वह मेरठ में कुछ ही मिनट के लिए रुकीं। उन्होंने कहा कि यह समय स्वागत का नहीं, संघर्ष का है। इससे पहले, दिल्ली से गाड़ियों के काफिले के साथ निकलीं मायावती गाजियाबाद होते हुए दोपहर लगभग 12 बजे परतापुरत तिराहे पर पहुंचीं। गाजियाबाद में यूपी गेट पर मायावती का समर्थकों ने फूलों से स्वागत किया। मायावती ने कार्यकर्ताओं से कहा कि बसपा को संघर्ष के लिए तैयार रहना होगा। खड़ौली में कार्यकर्ताओं ने उनका स्वागत किया। वहां भी मायावती ने दलितों के लिए संघर्ष के लिए आह्वान किया और रवाना हो गईं। कार्यकर्ताओं के जोश को देख मायावती उत्साहित नजर आईं। सहारनपुर के लिए निकलने से पहले नई दिल्ली में बसपा अध्यक्ष मायावती मीडिया से मुखातिब हुईं। उन्होंने कहा, “मुझे सहारनपुर के अधिकारियों ने हैलीपेड की सुविधा नहीं दी। उन्होंने कहा, “मेरी पार्टी के लोग हैलीपैड की सुविधा के लिए डीएम और एसएसपी से मिले थे। अधिकारियों ने हैलीपैड की परमिशन नहीं दी। इसी कारण मुझे सड़क मार्ग से सहारनपुर जाना पड़ रहा है। इसकी जिम्मेदारी सरकार की है। सरकार की जिम्मेदारी तब तक है, जब तक मैं वापस दिल्ली न पहुंच जाऊं। मायावती ने कहा, “सड़क मार्ग से जाते समय यदि मुझे कुछ हुआ तो इसकी जिम्मेदार भाजपा होगी।” मायावती ने कहा कि सहारनपुर में हुई घटना दर्दनाक है। उप्र में भाजपा की जातिवादी सरकार है। योगी की सरकार पक्षपात कर रही है, सहारनपुर की घटना पक्षपात की वजह से हुई है।[5]
मैं यहाँ अर्जुन सिंह के लेख को शामिल कर रहा हूँ। अर्जुन का लेख का नाम
- तब गांधी ने कहा था, ईश्वर ने बिहारियों को दण्डित किया है, है।
(Posted
On May 19, 2015 ,By
: Bihar
Khoj Khabar, Earthquake Of 1934, Arun Singh, Heritage, Patna)
15 जनवरी 1934 को दिन के करीब 2बज कर 13 मिनट पर आये 8 तीव्रता वाले प्रलयंकारी भूकंप ने बिहार और नेपाल को करीब करीब मटियामेट ही कर दिया था। भूकंप का केंद्र माउंट एवरेस्ट के 9.5 किलोमीटर दक्षिण नेपाल में था।
बहुत बड़े पैमाने पर जान माल की क्षति हुई थी। पूरब में पूर्णिया से लेकर पश्चिम में चंपारण तक, उत्तर में काठमांडू से लेकर दक्षिण में मुंगेर तक इसने बड़ी क्षति पहुंचाई। इसका असर ल्हासा से लेकर मुम्बई तक और असम से लेकर पंजाब तक महसूस किया गया। इसने कलकत्ता में भी बड़ी क्षति पहुंचाई। वहां के कई बड़ी इमारतों में भी भूकंप की वजह से काफी नुकसान हुआ। कलकत्ता के मशहूर चर्च सेंट पॉल’स कैथेड्रल का गुंबद ढह गया। यह भूकंप कितना तीव्र था, उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कलकत्ता की दूरी भूकंप के केंद्र से 650 किलोमीटर थी , फिर भी वहां इसकी सघनता को महसूस किया गया। उस दिन दरभंगा के महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कलकत्ता के 1, मिड्लटन स्ट्रीट स्थित अपने निवास दरभंगा हाउस में थे। जब भूकंप आया, उस वक्त वे अपने महल के बरामदे में टहल रहे थे। कलकत्ता से निकलने वाले अंग्रेजी अखबार स्टेट्समैन के रिपोर्टर को उन्होंने एक साक्षात्कार में उस भयानक भूकंप, और दरभंगा में हुई व्यापक क्षति को साझा किया था। उन्होंने उस दिन की घटना का जिक्र करते हुए साक्षात्कार में बताया था, ‘ उस दिन मै अपने आवास के बरामदे में टहल रहा था। अचानक मैंने पाया की छत से लटके झाड़ फानूस बुरी तरह, झकझोरने की हद तक हिल रहे हैं और दरवाजों से भी चरमराहट की आवाज आ रही है। मैंने पहले सोचा कि यह कम्पन बगल के चौरंगी पर बड़े वाहनों के चलने की वजह से है।
1934 में आये इस भूकंप ने एक विवाद को भी जन्म दिया था। महात्मा गांधी भूकंप के बाद राहत कार्य के लिए बिहार आये थे। बिहार से लौट कर उन्होंने प्रेस को एक बयान में कहा था, “मेरा विश्वास है कि यह प्राकृतिक आपदा, ईश्वरीय सजा है, जो उसने हमें हरिजनों पर अत्याचार करने के लिए दिया है। ईश्वर ने बिहारियों को दण्डित किया है क्योंकि वे हरिजनों के साथ भेदभाव रखते हैं। दलितों के खिलाफ अस्पृश्यता का बर्ताव करते हैं।” तब कविगुरु टैगोर ने गांधी का प्रतिवाद करते हुए गांधी के चीजों को अवैज्ञानिक तरीके से देखने पर दुःख प्रकट किया था।[6]
गाँधीजी के बारे में लोगों का कुछ भी विचार हों लेकिन वो आज भी प्रासंगिक हैं। उपर्युक्त घटना आज भी यहीं बता रही है कि गाँधी जी ने बिहार को समझा था। आजादी के सत्तर सालों बाद मनुष्यों द्वारा मनुष्यों का शोषण होना एक सभ्य समाज में असभ्य और हिंसक लोगों के बारे में सोचने को मजबूर करता है। दलितों के साथ होने वाले हिंसा अमानवीय है और बर्बर इतना है कि समाज भी एक जंगल के समान ही लगता है। जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली परम्परा के ओर इंगित करती है। समार्थ्य में कोई दोष नहीं होता है निर्बल में दोषों का भंडार ही होता है।
जैसे मनुशुओं ने भाषा का आविष्कार नहीं किया बल्कि आपस में बोलते-बोलते उन्होंने शुरू-शुरू में कुछ ऐसे शब्द और कुछ वाक्य निश्चित किए जिनका वे समान अर्थ लगते थे, फिर उन्हें प्रयुक्त करते-करते उन्होंने अपनी-अपनी भाषाएँ विकसित कर लीं, उसी तरह उन्होंने पहले-पहले सामाजिक संगठन के कुछ रूप अपनाए, और फिर उनमें से राज्य का विकास हुआ। मनुष्य ने राज्य का सृजन नही किया बल्कि राज्य का वर्तमान रूप युग-युगांतर तक चलने वाले ऐतिहासिक परिवर्तनों की लंबी श्रंखला का एक सिरा है। जे. डब्ल्यू.बर्गैस के शब्दों में, "राज्य इतिहास की उपज है- इस कथन का अर्थ यह है कि मानव-समाज शुरू-शुरू में सर्वथा अपूर्ण था; फिर उसमें पूर्ण तथा विश्वजनीन मानव संगठन की दिशा में कुछ अनगढ़ रूप प्रकट हुए जिनमें निरंतर सुधार कोटा गया। राज्य इस क्रमिक तथा निरंतर विकास का परिणाम है।"[7]
राज्य के विकास में मूल तर्क यह है मनुष्यों द्वारा मनुष्यों का शोषण नहीं हों। राज्य
का यह जिम्मेदारी है कि समाज के कमजोर वर्गों जैसे अनुसूचित जाति, जनजाति, महिलाओं आदि वर्गों के हितों का रक्षा हों। अगर राज्य यह करने में असफल होता है तो राज्य के प्रति लोगों का विश्वास कम होगा और अराजकता में भी वृद्धि होगी। ऐसे ही परिस्तिथियों में असमाजिक त्वत्तों जैसे नक्सल, अपराधी जैसे लोगों का विकास भी होता है। संविधान में पर्याप्त कानून के बाबजूद हिंसा में वृद्धि आखिर क्या दर्शाता है। अनुच्छेद 330 और 332
के प्रावधान का इस्तेमाल कर क्रमशः लोकसभा और विधानसभा में बैठे हुए लोगों कि अगर कोई जिम्मेदारी नहीं है तो दोनों अनुच्छेद को ही खत्म करने में भलाई है। अनुछेद 338 के तहत बनाया गया अनुसूचित जाति के आयोग को और शक्तिशाली बनाने कि आवश्यता है। मेरा मानना है कि आयोग को उच्च न्यायालय के समकक्ष अधिकार हों और दीवानी के अलावे फौजदारी मामलों पर विशेष रूप से अधिकार दिया जाना चाहिए। तमाम अधिकारियों के ए सी आर में आयोग के सुझाव और अनुशंसा दर्ज हों और उनके प्रमोशन में इस बात को देखना भी जरूरी हों। अनुसूचित जाति / जनजाति के अधिकारी को भी इसमें शामिल करना होगा ताकि ऐसा नहीं हों कि वो अपने दलित होने का फायदा उठा लें। मेरा स्पष्ट मानना है अभी का अनुसूचित जाति आयोग काफी कमजोर और असक्षम है जिससे दलितों पर हिंसा बढ़ती जा रही है। आयोग के अध्यक्ष और सदस्य भी अगर न्याय देने में देरी करें तो उनके खिलाफ भी कार्यवाही हों ताकि राजनीतिक दबाब और हस्तक्षेप नहीं हो सकें।
मैं स्पष्ट रूप से कहता हूँ कि दलितों के हिंसा को रोक पाने में
राज्य नाकाम दिखाई देती है और इसी कारण दलितों में असंतोष भी बढ़ रहा है। आज अब समय आ चूका है पुराने कानून के स्थान नए कानून लाया जा सकें जिससे राज्य लोक कल्याणकारी और समाजिक न्याय के प्रति संवेदनशील हों सकें। मानवाधिकार आयोग भी
इस प्रकार के हिंसा में अगर रुचि नहीं दिखाएगी तो आखिर भविष्य का रास्ता बहुत कठिन
होगा।
बिहार में जातिगत हिंसा कोई नई बात नहीं है और राज्य और समाज दोनों अभी तक संवेदनशील नहीं हो पाया है। मध्यकालीन सोच का नशा अभी तक बिहार में कायम है।
मानवता को शर्मशार करने वाली घटना होती जा रही है लेकिन इसके बचाव में कोई भी दबाब समूह भी आगे नहीं आता है। दलों के प्रति निष्ठावान नेता अगर अपने रवैये में सुधार नहीं करेगें तो राजनीतिक आरक्षण जैसी व्यवस्था को अब समय के साथ खत्म करने कि आवश्यकता है।
कोई भी समाज अगर अपने अधिकारों के प्रति सगज और न्याय दिलाने में कामयाब नहीं होगी तो अराजकता ही नहीं फिर आधुनिकता पुनः मध्यकालीन कानून में बदल सकती है। समाजिक संरचना का एक मात्र हिस्सा राजनीतिक व्यवस्था है लेकिन वैधानिक सत्ता के द्वारा जब अन्याय जारी रहा तो समाजिक रूप से कई संरचनाएँ का जन्म होगी। समाज में सत्ता निहित है इसीलिए प्रत्येक पांच वर्षों पर सत्ता को जनता के ही पास जाना पड़ता है। कोई घटना छोटी नहीं होती क्यूँकि यही छोटी घटना एक समय इतने बड़े पैमाने पर संचालित होगी तो इसका उत्तर भविष्य के गर्भ में ही होता है। फ्रांस के क्रांति के बाद राजन्त्र कमजोर हुआ, रूस के क्रांति के बाद सर्वहारा वर्ग उभरा, गौरवपूर्ण क्रांति के राज्य अपने नियमों में जनता को अधिकार दिया। इतिहास गवाह है शेख अब्दुल्ला बेरोजगारी के बाद ही क्रांति लाया। इसीलिए न्याय संगत राज्य हर किसी के लिए जरूरी नहीं है बल्कि इसके बिना कोई भी सुरक्षित नहीं है। समाज का स्वरूप बहुत ही विचित्र होता है क्यूंकि समाज ने ही इतिहास को नए विचारों से भरा है।
अंत में मेरा यही कहना है उपर्युक्त घटना मामूली नहीं है। यहीं घटना जब किसी भी व्यक्ति के साथ घट जाएँ तो क्या यह मामूली रहेगा। इस पर सोचने की जरूरत है। जो लोग इस समय चुप रहेंगे उनकी भी बारी आएगी। छोटा और बड़ा का पता तब चलेगा जब खुद के साथ होगा।
समाज में समाजिक एकता कभी भी नहीं आ सकती है जब तक कि समाज में
अन्याय और असमानता रहेगी। आर्थिक गैरबराबरी से रोटी नहीं मिल रही है समाजिक गैरबराबरी से इज्जत लूटी जा रही है। तथाकथित नेताओं ने इस समुदाय को लगभग बेच दिया है और अपने को स्थापित भी किया तो किसी का काम का भी नहीं किया। वे अपमानित होते हैं अंतर बस इतना है कि भर पेट भोजन कर। वे लाचार हैं क्यूंकि वे अपनी शक्ति को भी नहीं पहचानते क्यूंकि सत्ता का कोई टुकड़ा फेंक दें तो उनके आखों में ख़ुशी के आँसू छलक जाते हैं।
दलित राजनीति को दलित नेताओं द्वारा जितना अपमानित किया गया उतना किसी भी अन्य समुदाय के द्वारा नहीं किया गया। पेरियार ब्राह्मण थे लेकिन तमिलनाडु के दिशा और दशा बदली। राजा राम मोहन राय ब्राह्मण थे लेकिन सती का विरोध किया। ईश्वर चंद्र विद्या सागर ब्राह्मण थे विधवाओं के लिए लड़े। आरक्षण नहीं लेने वाले अम्बेडकर ने आरक्षण दिया। अब आरक्षण लेकर नौकरी से संसद और विधानसभा में बैठने के बाद मामूली अत्याचार को भी रोकने में अब लोग असफल हो गए। बस चिंतन कीजिये।
[1]
https://www.livehindustan.com/bihar/bhagalpur/story-brutal-crime-in-bhagalpur-murder-of-three-family-member-in-naugachia-1665271.html
[2] https://hindi.news18.com/news/politics/bihar-dalit-attack-500900.html
[3] http://www.jagran.com/bihar/darbhanga-dalit-woamn-beaten-attempt-to-urinate-in-mouth-in-bihar-14416061.html
[4] http://m.navodayatimes.in/news/national/increased-attacks-onincreased-attacks-on-dalits-in-bihar-nitish-kumar-silentsilent/12742/?webSyncID=e78849b6-5bc9-0ab2-9d04-52c2dc984577&sessionGUID=0a5516c3-3847-aa83-de1d-9890483779d7
[5] http://royalhindustan.com/?p=9976
[6] http://www.biharkhojkhabar.com
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