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जय प्रकाश नारायण (11 अक्टूबर, 1902 - 8 अक्टूबर, 1979)

हिंदुस्तान वास्तव में पूर्णतः लोकतांत्रिक राष्ट्र है, जे पी का आंदोलन इसी बात का प्रमाण है। सत्ता में रहते हुए कितने ही अच्छे कार्य किये जाएँ मगर जनतंत्र में जनता को उसके नैसर्गिक या मानव अधिकारों से वंचित किया जाता है तभी सामूहिक रूप से उस सत्ता के शक्ति के विरोध होता है। यहीं परिस्थितियों का  प्रतिनिधित्व जे पी ने किया था।

जे.पी. अथवालोक नायकके उपाधि से विख्यात और मशहूर जिनका पूरा नाम  जयप्रकाश नारायण है, वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रखर नेता, समाजिक  चिंतक, समाजशाष्त्री, समाजवादी सोच से ओत - प्रोत थे। उनका जन्म बिहार राज्य के सारण जिले के सिताबदियारा गाँव में 11 अक्टूबर १९०२ को जन्म लिए थे। हर्सुल दयाल श्रीवास्तव और  फूल रानी देवी के चौथे पुत्र थे।

पटना में अपने विद्यार्थी जीवन में जयप्रकाश नारायण ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। जयप्रकाश नारायण बिहार विद्यापीठ में शामिल हो गये, जिसे युवा प्रतिभाशाली युवाओं को प्रेरित करने के लिए डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद और सुप्रसिद्ध गांधीवादी डॉ॰ अनुग्रह नारायण सिन्हा द्वारा स्थापित किया गया था, जो गांधी जी के एक निकट सहयोगी रहे और बाद में बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री रहे। वे 1922 में उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गये, जहाँ उन्होंने 1922-1929 के बीच कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय-बरकली, विसकांसन विश्वविद्यालय में समाज-शास्त्र का अध्ययन किया। महँगी पढ़ाई के खर्चों को वहन करने के लिए उन्होंने खेतों, कम्पनियों, रेस्त्रा में काम किया। वे मार्क्स के समाजवाद से प्रभावित हुए। उन्होंने एम॰ ए॰ की डिग्री हासिल की। उनकी माताजी की तबियत ठीक होने के कारण वे भारत वापस गये और पी॰ एच॰ डी॰ पूरी कर सके।[1] समाजशास्त्र के अध्ययन ने उनके सोच को काफी प्रभावित किया। लोकनायक जय प्रकाश नारायण के समाजशास्त्रीय सोच को सम्पूर्ण क्रांति में भी देखा जा सकता है। इतना ही नहीं समाजिक समस्याओं के प्रति समझ के धार को भी समाजशाष्त्र विषय ने और धारधार बनाया। जे पी ने खुद कहा था -   सम्पूर्ण  क्रांति से मेरा तात्पर्य समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है |

सप्त या सम्पूर्ण क्रांति जिन सात सिद्धांतों पर आधारित है, वे इस प्रकार हैं।

1. महिला और पुरुष समान हैं।

2. राजनैतिक, आर्थिक, समाजिक समानता।

3. जाति व्यवस्था के विरुद्ध और वंचित - पिछड़े समाज के लोगों को विशेष अवसर मिलें।

4.  स्वतन्त्रता, समानता और विदेशी शासन के विरुद्ध। 

5. निजीकरण के विरुद्ध

6. निजता का अधिकार और लोकतंत्र के लिए संघर्ष।

7. सत्याग्रह का समर्थन और हिंसा का विरोध।

अभी हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार कहा है। जे पी के चिंतन को और भी प्रासंगिक बनाता है। कोई भी चिंतक तब प्रासांगिक होता है जब उनके  विचारों को उनके मृत्यु के बाद भी सोचने को मजबूर करता हों।

अण्णा हजारे के आंदोलन को सफलता मिली। इतना ही नहीं यहीं आंदोलन के आधार पर एक राजनीतिक दल का निर्माण हुआ जिसे दिल्ली विधानसभा में सत्तर में से मात्र तीन छोडकर सड़सठ मिलीं। सत्तर के दशक से प्रारम्भ नक्सल आंदोलन अपनी जगह नहीं बना सका। बुद्ध और महावीर का भारत हमेशा से सत्य और अहिंसा को ही अपनाता रहा है। इसी परम्परा के अनुयायी गाँधी और जे पी भी थे।

महिला अधिकार आज भी गुण है। अम्बेडकर और जे पी के विचारों में महिला अधिकार दिखाई देता है। महिलाओं के प्रति हिंसा विश्व भर में बढ़ती जा रही है। भारतीय परम्परा में रूढ़िवाद पनपा, इसीलिए राजा राम मोहन राय को आधुनिक भारत का जनक खा जाता है। जे पी के विचारों में स्त्री - पुरुष समानता का दिखना उन्हें और भी महान बनाता है। फ्रेंच क्राँति को भी उन्होंने काफी गहन अध्ययन किया था इसीलिए उनके चिंतन में हमेशा स्वतन्त्रता, समानता और भाईचारा दिखाई देता है।

जे पी जाति व्यवस्था के खिलाफ थे। जाति आधारित सोच मानवीय सभ्यता पर कलंक है। वे जानते थे भारतीय समाज ऊपर से कितना भी दिखावा करें, लेकिन जाति लोगों के दिमाग में है। यहीं सोच भारतीय राजनीति में लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, राम विलास पासवान जैसे नेताओं को आज भी राजनीतिक जमीन देता है।

जाति पर जो चिंतन जे पी के किया और आज भी अत्याचार रूक नहीं रहा है। अभी हाल में ही सम्पूर्ण क्रान्ति के पुण्यभूमि बिहार राज्य के  मुझफ्फरपुर में दलित युवकों की पिटाई और दबरन शराब पिलाने के बाद दरभंगा में घर में घुसकर दलित मां-बेटी की पिटाई और उनसे बदसलूकी का मामला सामने आया है। इस घटना में अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।[2] भारत में दलित चेतना के नवउभार के बीच दलितों पर अत्याचार के आंकड़े भी भयावह तेजी से बढ़े हैं।  बात सिर्फ प्रगति और जागरूकता की होती तो दलितों के खिलाफ हिंसा का ग्राफ कम होना चाहिए था, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है।[3] ये सच है कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा बढ़ रही है, साल दर साल खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। इससे भी गंभीर समस्या ये है कि अनुसूचित जाति के  ख़िलाफ़ हमलों में ग़िरफ्तार होने वाले अक्सर रिहा हो जाते हैं।[4] आखिर न्यायपूर्ण समाज कब तक बन पायेगा। संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनिफेम की एक रिपोर्ट के अनुसार 45 देशों ने महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा को रोकने के लिए सुनिश्चित कानून बनाए।  महिलाओं के साथ विभेदकारी व्यवहार की समाप्ति की घोषणा 7 नवम्बर, 1967 को संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा द्वारा अंगीकृत किया गया था।  इस घोषणा के अनुच्छेद 10 के अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया है कि महिलाओं को फिर वे चाहे विवाहित हों अथवा अविवाहित, पुरुषों के साथ आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्र के सभी समान अधिकार प्रदान किये जाने केलिए समुचित व्यवस्था की जायेगी और विशेषकर –
(क) विवाहित स्तर के आधार पर अथवा किसी अन्य आधार पर बिना किसी भेदभाव के कार्य के व्यवसाय सम्बन्धी प्रशिक्षण प्राप्त कर सके तथा व्यवसाय चयन और रोजगार में उसके साथ किसी प्रकार का भेदभाव न करें।
(ख) पुरुषों के समान मजदूरी तथा उसी के समान कार्य में समान व्यवहार हो।
(ग) वेतन सहित अवकाश का अधिकार, सेवामुक्ति, विशेषाधिकार तथा बेरोजगारी, बीमारी,  वृद्धावस्था  अथवा काम करने की अन्य अयोग्यताओं की दशा में सुरक्षा सम्बन्धी प्रावधान।
(घ) पुरुषों के समान शर्तो पर पारिवारिक भत्ता प्राप्त करने का अधिकार महिलाओं के विरुद्ध विवाह के आधार पर अथवा मातृत्व के आधार पर विभेद को समाप्त करने केलिए तथा उन्हें प्रभावकारी अधिकार दिलाने केलिए कार्य किये जाऐंगे तथा उनको आवश्यक सामाजिक सेवायें जिसके अन्तर्गत बच्चों की देखरेख, रोजगार सम्बन्धी सेवायें आदि सम्मिलित होंगी फिर भी शारीरिक प्रकृति की भिन्नता के कारणों से कुछ प्रकार के कार्यों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए स्तर निर्धारित किया जायेगा जो कि विभेदकारी नहीं होगा।[5] रॉल्फ लिंटन के दोनों पुस्तकों  स्टडी ऑफ मैन (1 9 36) और द ट्री ऑफ कल्चर (1 9 55) का असर भी जे पी के सप्तक्रांति पर दिखाई देता है। इसीलिए जे पी समाजिक गैरबराबरी के मुद्दे को जोर - शोर से उठाते हैं।
समाज में दो स्थितियों से व्यक्ति जाना जाता है। 

  1.              निर्धारित स्थिति और

  2.       प्राप्त की स्थिति



निर्धारित स्थिति में कोई भी प्रयास या मेहनत द्वारा प्राप्त नहीं किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, जाति व्यवस्था का आधार ही जन्म है। यह जन्म से भी पहले तय हो जाता है की आपकी समाजिक हैसियत क्या होगी ? बहुत परिश्रम और मेहनत के बाद भी परिवर्तन सम्भव नहीं है। मनोवैज्ञानिक तौर पर कोई भी व्यक्ति इससे अलग हो सकता है मगर समाजिक तौर पर अलग होना सम्भव नहीं है।

प्राप्त स्थिति वह स्थिति है जिसमे कोई भी व्यक्ति शिक्षा, ज्ञान आदि के माध्यम से अपनी हैसियत बनाता है। इसे प्राप्त करना आसान है।

आज का दिन ग्यारह अक्टूबर है जिस दिन जे पी का जन्म हुआ था। उनके जयंती को सभी लोगों दवरा मनाया जायेगा। क्या उनके विचारों पर चलना आसान होगा ?
आर्थिक गैरबराबरी हों या समाजिक विषमता आज भी कायम हैं। सरकारी कार्यक्रमों और आर्थिक उपाय भी किये जा रहे हैं। मगर यह चिंता का विषय है - मानवीय सभ्यता तब तक सभ्य हो ही नहीं सकती जब तक प्रत्येक इंसान को मानवीय अधिकार आसानी से मिलें।

प्राकृतिक हिंसा भी अब सभ्यता के संकट को बढ़ाते जा रहा है। प्रकति की भी सीमा होती है। आने वाला समय में जल संकट इतना बढ़ेगा की अन्याय का दौर भी अपने स्वरूप में स्वतः परिवर्तित होगा। समाज में मूल अधिकार सबको मिलें जे पी भी यहीं सोचते रहें।




[1] https://hi.wikipedia.org
[2] https://navbharattimes.indiatimes.com
[3] http://www.dw.com
[4] http://www.bbc.com
[5] http://www.streekaal.com

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