बिहार के एक शख्स ने सीतापुर के नजदीक चलती ट्रेन से अपनी तीन मासूम बेटियोंं को फेंक दिया।
इनमें से एक की मौके पर ही मौत हो गई। यह घटना पूरे सभ्यता पर संकट ही है और मानवता पर कलंक भी है। अभी तक इस घटना के पीछे का कारण तो पता नहीं चल पाया है। मगर इसके पीछे जो भी कारण रहा हों उसे इंसान नहीं कहा जा सकता है। परिवार एक सुरक्षित स्थान होता है जिसमें बच्चों का पालन - पोषण के साथ - साथ उसकी सुरक्षा भी होती है। 'मानव समाज में परिवार एक बुनियादी तथा सार्वभौमिक इकाई है। यह सामाजिक जीवन की निरंतरता, एकता एवं विकास के लिए आवश्यक प्रकार्य करता है। अधिकांश पारंपरिक समाजों में परिवार सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक गतिविधियों एवं संगठनों की इकाई रही है। आधुनिक औद्योगिक समाज में परिवार प्राथमिक रूप से संतानोंत्पत्ति, सामाजीकरण एवं भावनात्मक संतोष की व्यवस्था से संबंधित प्रकार्य करता है।'[1]
समाज में अगर परिवार का अस्तित्व खत्म हो जाएँ तो क्या होगा, यह प्रश्न अभी भी कल्पना से परे है। परिवार समूह और संस्था दोनों है और काफी विघटन और टकराव के बाद भी इसका अस्तित्व कायम है।
बच्चों के यौन शोषण और उसके साथ अमानवीय व्यवहार कि घटनाओं में काफी वृद्धि भी हो रही है। गीता पांडे ने अपने लेख में कहा है - दुनिया में यौन शोषण के शिकार हुए बच्चों की सबसे बड़ी संख्या भारत में है लेकिन फिर भी यहां इस बारे में बात करने में हिचक दिखती है। अब
एक सांसद, राजीव चंद्रशेखर, इस मानसिकता को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। राजीव चंद्रशेखर ने इस समस्या को एक 'महामारी' बताते हुए दिल्ली में एक 'ओपन हाउस' का आयोजन किया जिसका उद्देश्य था "ताकि हम बाल यौन शोषण के बारे में बात करना शुरू करें और अपने बच्चों को बचाएं। "वह कहते हैं, "बाल यौन शोषण भारत में महामारी बन चुका है. इस समस्या को गोपनीयता और इनकार की संस्कृति ने ढक रखा है और सरकारी उदासीनता से यह बढ़ी है। "[2]
बच्चों के अधिकारों पर हुए एक सम्मेलन की शुरूआत में यह कहा गया: “संयुक्त राष्ट्र ने, मानव अधिकारों के विश्वव्यापी घोषणा-पत्र में ऐलान किया कि खासकर बचपन में बच्चों की अच्छी देखभाल और मदद करने की ज़रूरत है। यह उनका हक बनता है।” परिवार की अहमियत पर ज़ोर देते हुए यह भी कहा गया: “लड़का हो या लड़की, उसकी शख्सियत को पूरी तरह से निखारने के लिए ज़रूरी है कि उसकी परवरिश ऐसे परिवार में हो जहाँ लोगों में अपनापन, प्यार, खुशी और समझदारी हो।” लेकिन आज तक इस लक्ष्य को कोई हासिल नहीं कर पाया है।[3]
आम धारणा के विपरीत बाल यौन शोषण का इतिहास मानव समाज के इतिहास जितना पुराना है। प्राचीन साहित्य, कला और विभिन्न संस्कृतियों का इतिहास इस वास्तविकता के साक्षी हैं कि हमेशा से ही बच्चों का यौन शोषण किया जाता रहा है। मानवीय समाजों में काफ़ी लम्बे समय तक यौन शोषण को हंसी मज़ाक़ का विषय समझा जाता था। प्रारम्भिक ग्रीक और रोमन हास्य नाटिकाओं के मंच पर छोटी लड़कियों का बलात्कार दर्शकों को हंसाने वाली बात समझा जाता था। इसी तरह परिवारों के लड़के पड़ोसियों या अन्य व्यक्तियों को यौन क्रियाओं के लिए उपहारित किए जाते थे। पहली एवं दूसरी शताब्दी में जीवन व्यतीत करने वाले प्लूटार्क ने अपने नैतिक निबंधों मोरालिया में उल्लेख किया है कि अपने बेटे किस तरह के व्यक्ति को यौन संग के लिए भेंट किए जाने चाहिएं। उस समय सात वर्ष की उम्र से ही लड़कों का इस तरह आदान-प्रदान सहज सामाजिकता थी। बच्चों के वेश्याघरों का ज़िक्र भी आता है। इस तरह की 'बाल सेवाएं' पैसा कमाने के लिए विधिवत मान्यता प्राप्त सेवाएं थीं। हालांकि वर्तमान समय में कि जिसे आधुनिक काल कहा जाता है, इस अभिशाप में कहीं अधिक वृद्धि हो गई है और यह किसी एक संस्कृति या देश की सीमाओं में सीमित नहीं है। निःसंदेह, वर्तमान समय में दुनिया भर में बड़े पैमाने पर बाल यौन शोषण की घटनाएं दर्शाती हैं कि हमने बच्चों की सही परवरिश और समय पर उन्हें यौन शिक्षा देने में कोताही से काम लिया है।[4] बच्चों
के अधिकार पर चर्चा और बहस के माध्यम से जन जागरूकता बढ़ाना चाहिए और पर्दे के आड़ में
ही अपराध को बढ़ावा मिलता है। माता - पिता को भी सजग रहना चाहिए और माता - पिता दोनों
में से कोई भी गलत हों तो बिना संकोच किये प्रशासन का सहारा लेना चाहिए। ट्रेन से जब
बच्चा को फेंका जा रहा होगा तो भी कोई न कोई जरूर ही देखा होगा। मानवीय संवेदना भी
शून्य होती जा रही है। जब दिल्ली में भी सोलह दिसंबर 2012 को घटना घटी तो कोई भी राहगीर
ने कपड़ा तक नहीं दिया था और हॉस्पिटल में भी उसे कपड़ा नहीं दिया गया था। इस तरह के
इंसान भी हमारे समाज में ही रहते हैं और जंतर - मंतर पर रैली करने जरूर पहुंच जाते
हैं। कुछ प्रश्न राजनीतिक नहीं होकर समाजिक भी होता है। कोई भी सरकार ऐसे हालत में
क्या कर सकती है ? यह विषय मानवीय पक्ष को झकझोर देती है और इंसानियत पर ही सवाल खड़ा
करती है।
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