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अपना और पराया

भाई, भतीजावाद, भक्तिवाद और भ्रमासक्ति (Delusion) के युग में हम सभी लोग रहते हैं। ये लेख आज के युग और मनोवृत्ति पर केंद्रित है।  मनुष्य के प्रवृति (attitude) पर आजकल बहुत कम विचार किया जाता है। समय और  समस्या के संगम स्थल पर प्रत्येक चीज या वस्तु या विचार या इंसान सिर्फ व्यक्तिकेंद्रित होते जा रहे हैं। आर्थिक परिवर्तन के बाद समाजिक परिवर्तन भी होता है। नब्बे के दशक में जब राव और मनमोहन आर्थिक विकास के मॉडल लागू हुआ तो समाजिक व्यवस्था में भी काफी परिवर्तन आया।


उदारीकरण - निजीकरणवैश्वीकरण (Liberalization - Privatization - Globalization) एक ओर आर्थिक  व्यवस्था बदल रही थीं तो दूसरी ओर समाजिक संरचना उसी के हिसाब से बदल रही थी। भारतीय समाजिक व्यवस्था में नया स्वरूप और नए आयाम भी शामिल होने लगे। जीवनदायनी हकीकत जिसे नौकरी भी कहते हैं, उसमें नए - नए अवसर आने प्रारम्भ होने लगे। पुरानी संरचना और नए संरचना में संघर्ष प्रारम्भ होने लगा। शरुआती दौर में तो दोनों संरचना या समाजिक व्यवस्था में निरंतरता (Continuity) का युग प्रारम्भ हुआ। औद्यौगिकीकरण और नगरीकरण ने संयुक्त परिवार (Joint Family ) को नाभिकीय परिवार (Nuclear Family) में बदल डाला। एल पी जी के बाद नाभिकीय परिवार भी टूटने लगा। व्यक्तिकेंद्रित और स्वार्थकेंद्रित मनोवृति का घातक परिणाम अब तलाक के रूप में दिखाई दे रहा है।

अपने और पराये की संस्कृति का बोलबाला बढ़ता ही जा रहा है। करीब और अपना बनाने का मूलमंत्र है - दरबारी संस्कृति में गलत जानकारी दो और समाज या समुदाय के नाम पर लाभ उठाओ। हर बात पर अपने स्वार्थ पूर्ती हेतु गलत तर्कों का सहारा लेना। मुहम्मद बिन तुगलक ज्ञान और नीति से पूर्ण था लेकिन उसके निर्णयों ने उसे ही बर्बाद कर डाला। सांकेतिक मुद्रा का गलत इस्तेमाल, दिल्ली से दौलताबाद और अपने निर्णय पर बारबार प्रयोग करने से वह मजबूत शासक भी विफल हो गया। अपने पराक्रम से राजा बनने वाले शिवजी क्षत्रिय होने के प्रमाण ही खोजते रहे। आने वाला पीढ़ी पारिवारिक उलझन के कारण उनका रज्य नष्ट हुआ। हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के बीच संघर्ष हुआ और 1857 जैसा क्रांति भारत में उसके बाद नो न सका।
जब कोई व्यक्ति का अस्तित्व ही दुसरे के अस्तित्व पर निर्भर हों तब भी कोई अपना ज्ञान बाँटने लगे, तो इसमें किसकी गलती है। युद्ध हमेशा दो सिंद्धान्तों पर चलता आया है।

·        रणनीति

·        नेतृत्वकर्ता

प्रारम्भ में जो चाटुकारिता कर लोग अपना बन जाते हैं, वे लोग सत्ता की सीमा खत्म होते ही दुसरे के चाटुकारिता करने का इंतजार करने लगते हैं। आज युग काफी बदला है जानकर अनजान बनने का भी खूब प्रयास किया जाता है।

अपना बनकर भी पराया हो जाता है और पराया भी अपना हो जाता है। यह भी रहस्य है। संदेह और शंका के युग में आप अगर विश्वास करें तो उसका परिणाम भी विश्वासघात ही होता है।



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