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बिहार में दलितों पर बढ़ता हिंसा


हिंसा अपने मूल स्वरूप में सिर्फ हानि ही पहुँचाती है। दलितों के साथ हिंसा में बढ़ोतरी सिर्फ राज्य के कानून - व्यवस्था का ही विफलता है। प्रतिनिधत्व के नाम पर जीतने वाले नेता सही समय पर  आखिर क्यों नहीं पहुंचते। इसीलिए सबसे पहले राजनीतिक आरक्षण को ही समाप्त करना चाहिए। जब इस समुदाय के नेता इसी समाज को सिर्फ वोट बैंक समझेगें तो आखिर इनका हित कौन करेगा। 

नफरत एक ऐसा जहर है जिससे समाजिक एकता खतरे में पर जाती है। समाज अब हिंसक होता जा रहा है। अभी हल में ही बिहार राज्य के खगड़िया जिले के मोरकाही थाना के छमसिया गांव में दलित परिवारों पर दबंगों का कहर टूट पड़ा।  दबंगों ने दलित बस्ती में दहशत का माहौल कायम करते हुए बस्ती को आग के हवाले कर दिया।  कई परिवार बेघर हो गए।  पीड़ित लोग अपने परिवार के साथ सड़क पर गए।[1] गाँव के दबंगों ने पचास  दलित परिवारों के घरों को आग के हवाले कर दिया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा जब पूरा देश दिवाली के जश्न में रंग रहा था तो दलितों का खून भी उसी जश्न की रात सड़कों पर बह रहा था। इस सत्य को आखिर बिना लिखे छोड़ देना भी अन्याय को बढ़ाना ही है। सरकार किसकी भी हों मगर मानवता पर तो यह कलंक ही है।

बिहार में ही पश्चिम चंपारण जिले के नरकटियागंज में दलित  युवती से रेप का मामला सामने आया है। गांव के ही एक युवक बंदूक की नोक पर दो महीने तक दलित युवती से रेप करता रहा। फिर एमएमस बना ब्लैकमेल करता था। विरोध करने पर लड़की के पैर में गोली मार दी थी। पुरानी मुहल्ले निवासी तौकीर आलम ने अपने ही मोहल्ले के युवती के साथ रेप किया। इस दौरान वह एमएमस बना लड़की के साथ पूरे परिवार को ब्लैकमेल करता था।[2] 

मानवाधिकार का मुद्दा काफी गंभीर है। आज भी दलितों के साथ झूठे आरोप लगाकर उसके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। कानून - व्यवस्था राज्य सूची का विषय है। भले ही यह समाजिक व्यवस्था के कारण और घृणित मानसिकता के कारण ही घटना घट रही हों, लेकिन जबाबदेही तो तय होनी चाहिए। बिहार  में ही मुजफ्फरपुर जिले में भी दलितों के साथ बेरहमी से मारपीट का मामला सामने आया है।  मुजफ्फरपुर के पारू में दबंगों ने दलित युवकों के साथ न केवल बेरहमी से मारपीट की बल्कि उसके साथ अमानवीय व्यवहार भी किया।दोनों पीड़ित रिश्ते में जीजा और साला बताए जाते हैं. दोनों को बाइक चोरी के आरोप में कई लोगों ने बेरहमी से पीटा और इस मामले को लेकर पुलिस में शिकायत की गई है।  मामले में मुखिया के पति समेंत 11 लोगों को आरोपित किया गया है। मामले में पारू थाने ने जांच शुरू कर दी है. आरोपी पीड़ित युवक पारू चौधरी टोला गांव निवासी कृष्णा पासवान के पुत्र राजीव कुमार पासवान और इसके ममेरा जीजा सदर थाना हाजीपुर के दोबहटी गांव निवासी मुन्ना पासवान हैं। घटना  को लेकर पीड़ित राजीव कुमार पासवान की मां सुनीता देवी ने थाने में लिखित आवेदन दिया है।  पीड़ित के मुताबिक उसका पुत्र राजीव कुमार अपने ममेरा जीजा के साथ बाबू टोला में यज्ञ देखने गया था।  इसी बीच बाइक चोरी का आरोप लगाते हुए बाबू टोला के ही मुकेश ठाकुर उर्फ मुकुल ठाकुर, सुमन ठाकुर, रोशन ठाकुर समेत दस लोगों ने मिलकर बेरहमी से पीटा।[3] उच्च जाति के सभी लोगों पर दोष नहीं दिया जा सकता है। कैमूर की घटना में दलित महिला के बलात्कार में दलित युवक भी शामिल है। महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा में पुरुषवादी मानसिकता भी शामिल है। कई घटनाओं में दलित युवकों का शामिल होना इस बात का प्रमाण है कि महिलाओं के प्रति हिंसा में समाजिक संरचना भी दोषी है।  अभी हाल में ही बिहार में कैमूर जिले के भगवानपुर थाना क्षेत्र की दो दलित युवतियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म का मामला प्रकाश में आया है।  वजरडीहवा गांव की दो महादलित युवतियों को गांव के ही पांच युवकों ने पांच दिन पूर्व शादी का झांसा देकर निकटवर्ती रोहतास जिले के सासाराम ले गये।  सासाराम में युवकों ने उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया. बाद में युवकों ने युवतियों को ट्रेन में बैठा दिया और फरार हो गये।  पीड़ित युवतियों में से एक की उम्र 18 वर्ष जबकि दूसरे की 20 वर्ष है।  ट्रेन में बदहवास युवतियां भभुआ रोड स्टेशन उतरी और रेल थाना पहुंचकर अपनी आपबीती सुनाई।  यहां से युवतियों को भगवानपुर थाना भेज दिया गया जहां उनके बयान पर गांव के ही विनोद कोईरी, ज्वाला कुशवाहा, संतोष कुशवाहा, रंजन पासवान और गणेश पासवान के खिलाफ नामजद प्राथमिकी दर्ज की गयी है। युवतियों की मेडिकल जांच आज भभुआ सदर अस्पताल में की गयी है।[4]

दलितों के प्रतिनिधित्व जो लोग लोकसभा और विधानसभा में करते हैं, वे जाति और आरक्षण के आधार पर चुनाव जीतते हैं। मगर हकीकत यह है कि उन्हें सिर्फ वोटबैंक के राजनीति से ही मतलब होता है। सांसद, विधायक, संवैधानिक पद और दलों में उच्च पद प्राप्त करने के लिए दलित और समुदाय को भवनात्मक रूप से शोषण करते हैं। जैसे ही  सत्ता मिली वे अपने व्यक्तिगत हितों के पूर्ती में लग जाते हैं। सत्ता से हटते ही पुनः उन्हें अपना समुदाय और जाति के प्रति नैसर्गिक प्रेम उभर जाता है। सत्ता प्राप्ति के बाद का नेता और बिना सत्ता के नेता का अगर समाजशाष्त्रीय विश्लेषण किया जाएँ तो राजनीतिक इतिहास भी अलग से लिखना होगा। गरीबी, अशिक्षा और ज्ञान का अभाव वंचित वर्ग को समाज के मुख्य धारा से अलग करता जा रहा है। आजादी के सत्तर वर्षों के बाद भी दलितों को समानता और स्वतंत्रता से वंचित होना पड़े तो इससे और क्या आश्चर्य हो सकता है। मनुष्य जन्म से स्वतंत्र है लेकिन जाति व्यवस्था के कारण उसे मानवीय अधिकारों से वंचित होना पड़ता है।

जश्न और ख़ुशी के माहौल में अगर किसी के घर को आग से जलाया जाता है तो इसकी निंदा होनी चाहिए। दोषियों को भी सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। जो आज इस मुद्दे पर गौण रहेगें उनसे आने वाला इतिहास जरूर प्रश्न पूछेगा।

जाति में अब एक समुदाय ऐसा उभर रहा है - जिसे निजी हितों और स्वार्थ से ही मतलब बचा है। दलितों के साथ होने वाले अन्याय में दलित नेताओं का भी हाथ रहता है।



[1] https://khabar.ndtv.com/news/bihar/bihar-50-houses-burn-by-goons-1764951
[2] http://hindi.eenaduindia.com/States/East/Bihar/OthersInBihar/2016/07/25135521/Dalit-girl-raped-in-bettiah-youth-arrested.vpf
[3] https://hindi.news18.com/news/bihar/mukhiya-husband-and-his-supporters-beat-dalit-persons-in-muzaffarpur-896894.html
[4] http://justicenews.co.in/Hindi/bihar-two-dalit-young-women/36314

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