मनुष्यों
द्वारा
बनाया
गया
समाज
क्रमिक
विकास
ही
तो
है।
मनुष्य
अपनी
अवश्यकताओं
की
पूर्ति
अकेले
नहीं
कर
सकता
और
यथार्थ
रूप
में
यह
सम्भव
भी
नहीं
है।
समय
और
काल
के
अनुसार
मनुष्यों
ने
अपनी
क्षमता
और
समझदारी
से
बहुत
प्रकार
से
संस्थाओं
का
शनैः
शनैः
विकास
किया।
फिर
भी
समाज
के
प्रकार
पर
पहले
प्रकाश
डालते
हैं।
o
शिकार और
सभा
समाज
- प्रकृति
पर
उस
समय
मनुष्य
निर्भर
रहते
थे।
कच्चा
मांस
और
शिकार
के
ऊपर
जीवन
निर्भर
था।
संग्राहक
समाज
का
स्वरूप
इस
प्रकार
था
की
खाद्यान्न
समग्री
भी
लोगों
के
द्वारा
इकठ्ठा
करके
रखा
जाता
था।
मनुष्य
और
प्रकृति
के
बीच
सीधा
संबंध
था।
प्रकृति
द्वारा
मनुष्य
नियंत्रित
था।
o
पशुचारक समाज
- इसके
बाद
मनुष्यों
द्वारा
पशुओं
का
उपयोग
किया
गया।
o
कृषक समाज
- मनुष्यों
द्वारा
अब
धीरे
- धीरे
कृषि
यानि
खेती
होने
लगा।
जीवन
भी
स्थायी
होने
लगा।
o
औद्यौगिक समाज
- इस
युग
में
मनुष्यों
द्वारा प्रकृति
पर
नियंत्रण
प्रारम्भ
हुआ।
जीवन
भी
आसान
होने
लगा।
कृषि
से
उद्योग
में
रूपांतरण
आज
भी
पूर्णतः
नहीं
हुआ
है।
लेकिन
सेवा
क्षेत्र
का
विस्तार
होने
लगा
और
कृषि
क्षेत्र
भी
घटने
लगा।
सभ्यता
के
काल
में
यह
काल
मनुष्यों
के
लिए
अविष्कार,
नवाचार,
खोज
और
तकनीकी
के
युग
का
आगमन
हुआ।
18 वीं
शताब्दी
के
उत्तरार्ध
में
औद्योगिक
क्रांति
का
उदय
सबसे
पहले
इंग्लैंड
में
हुआ।
धीरे
- धीरे पश्चिमी
यूरोप औद्योगिक
समाज
के
रूप
में
उभरता
चला
गया। संसाधनों
के
खोज
ने
एक
भौगोलिक
सीमा
को
कम
करता
चला
गया
वहीं
दूसरी
ओर औपनिवेशिक
युग
का
भी
आरम्भ
हुआ।
प्रथम
विश्व
युद्ध
के
बाद
द्वितीय
विश्व
युद्ध
ने
पुनः
एक
बार
समाज
को
परिभासित
किया।
युद्ध
के
शांति
का
आगमन
होना
स्वाभाविक
था।
सयुंक्त
राष्ट्र
संघ
का
निर्माण
यह
दर्शाता
है
युद्ध
कभी
भी
किसी
भी
समस्या
का
हल
नहीं
है।
हिंसा
और
आतंकवाद
के
युग
का
पुनः
प्रवेश
हो
गया
है।
समाज
एक
बार
फिर
अशांति
और
असत्य
के
साये
में
प्रवेश
कर
रहा
है।
आधुनिकता
और
उत्तर
आधुनिकता
के
काल
में
आज
भी
मानवों
का
मानवों
के
द्वारा
शोषण
और
अत्याचार
बढ़ता
ही
जा
रहा
है।
द्वितीय
विश्व
युद्ध
का
परिणाम
स्पष्ट
रूप
दिखाई
दिया
- दो
राष्ट्रों
का
प्रत्यक्ष
या
अप्रत्यक्ष
रूप
से
विश्व
को
प्रभावित
किया।
साम्यवादी
और
पूंजीवादी
नीतियों
के
संघर्ष
का
दौर
प्रारम्भ
हुआ।
शीत
युद्ध
के
युग
का
अवसान
भी
नब्बे
के
दशक
में
प्रारम्भ
हो
गया
था।
नब्बे
के
दशक
में
जर्मनी
का
एकीकरण,
रूस
का
विघटन,
भारत
द्वारा
एल
पी
जी
नीति
अपनाना,
ओ
बी
सी
आरक्षण
जैसे
मुद्दे
राष्ट्रीय
और
अंतर्राष्ट्रीय
मुद्दों
ने
समाज
को
मया
आयाम
दिया।
विश्व
का
नेतृत्व
एकध्रुवीय
दिशा
में
दिखाई
दिया
जिसका
नेतृत्व
संयुक्त
राज्य
अमेरिका
के
हाथों
में
आया।
अमेरिका
एक
राष्ट्र
नहीं
बना
बल्कि
एक
सिद्धांत
बना।
विचार,
नीति,
गति,
प्रौद्योगिकी
जैसे
क्षेत्र
पर
पूर्णतः
वर्चस्व
दिखाई
देने
लगा।
रूस
शीत
युद्ध
के
पूणतः
शीतनिन्द्रा
में
ही
चला
गया।
पुतिन
महोदय
के
आने
के
बाद
पतन
से
उत्थान
काल
में
पुनः
रूस
आ
गया।
समाज
को
अब
कैसे
परिभाषित
किया
जाये,
हमारे
लिए
बहुत
बड़ा
प्रश्न
है।
नाभिकीय
युक्त
समाज
और
नाभिकीय
मुक्त
समाज
में
अब
वर्गीकरण
हो
चुका
है। जिसके
पास
नाभिकीय
हथियार
है
वो
अब
शक्तिशाली
है।
जिस
राष्ट्र
के
पास
नाभिकीय
हथियार
नहीं
है
वो
शक्तिशाली
नहीं
है।
मृत्युंजय कुमार
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