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संबंध : आखिर क्यों ?

अरस्तू ने कहा था - मनुष्य एक समाजी प्राणी है। मनुष्य जब समाजिक प्राणी है तो निश्चित रूप से एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से संबंध बनाएगा। कई संबंध जन्म के साथ ही मिलते हैं, जैसे माता, पिता, दादा, दादी, नाना, नानी, बुआ, मामा, मामी आदि। इन सारे सम्बन्धों को बनाने हेतु मनुष्य कोई प्रयास नहीं करता है।  मगर कुछ संबंध  मनुष्य सिर्फ  उद्देश्य  और स्वार्थ को पूरा  करने  के लिए ही संबंध बनाते  हैं।

आज के संबंधों में चालाकी, धूर्तता, द्वेष, घृणा, गद्दारी जैसे गुण आम होते जा रहे हैं। असत्य की कोख से जन्म लिया मित्रता कभी भी सत्य पर चल ही नहीं सकता।

संबंधों का अब बाजारीकरण होता जा जा रहा है। सेल्फ़ी समाज संबंधों को एक नए सिरे से परिभाषित कर रहा है। आधुनिकता में सेल्फी युग का अलग ही महत्व है। परिचय और अपरिचय के युग के बंधन को तोड़ रहा है - सेल्फी समाज।

संस्कृति के दो पक्ष हैं। भौतिक पक्ष में तकनीकी, विज्ञान, नए - नए अविष्कार आदि शामिल हैं। स्वाभाविक रूप से तकनीकी में परिवर्तन तुरंत होता है। अभौतिक पक्ष में प्रथा, परम्परा, समाजिक मूल्य, लोकरीतियाँ, आचार-विचार शामिल हैं। इनकी प्रकृति स्थायी होती है। परिवर्तन भी ऐसा होता है जिसका तुरन्त पता भी नहीं चलता है। इस तथ्य को ओगबर्न ने अपनी पुस्तक में विस्तार से बताया है।[1]

सल्फी समाज तकनीकी के दृष्टिकोण से भौतिक संस्कृति के पक्ष को दर्शाता है वहीं मानसिकता के आधार पर  अभौतिक पक्ष को दर्शाता है। लेकिन समायोजन की दिशा को जरूर बढ़ा रही है। भारत में सेल्फी युग झूठ की संस्कृति और अपनों की संस्कृति को नए सिरे से परिभासित कर रही है। एक ओर संबंधों को जीवित कर रही है दूसरी और अफवाह की संस्कृति को भी बढ़ा रही है। लेकिन समाजिक परिवर्तन में सेल्फी युग के महत्व को स्वीकार करना ही होगा।

बदलते युग में संबंध के आयाम भी बदलते जा रहे हैं। मूल्य आधारित संबंध अब मूल्य विहीन संबंध में बदलता जा रहा है। सामने के वख्त  और पीठ पीछे का वख्त  यानि दो अलग - अलग व्यक्ति के स्वरूप और चरित्र देखा जा सकता है। समय के बादल में पहचान अब मिलती जा रही है, बारिश की तरह आंसू भी बहते जा रहे हैं। सही इंसान शायद ही कभी मिलें जिसे कोई अपना कहें। अपनत्व अब दीखता नहीं है। मानवीय मूल्य और भावना का भी अब विज्ञापन बनने लगा है। भावना को दिखाने के लिए भी पैसे से खरीदकर कार्ड देना पड़े तो स्वाभाविक है जितना महगां कार्ड होगा उतना ही संबंध अच्छा होगा।





[1] Ogburn W.F.,(1964) Culture and Social Change, Univ of Chicago Pr (Tx) ( Phoenix Books)

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