हर गली मोहल्ले में चर्चा आम हो गयी है इंडिया और कैशलेस हो चुका है। चारों ओर ख़ुशी का ही माहौल था। किसी व्यक्ति ने कहा अब ये नियम बहुत अच्छा है। तभी दूसरे व्यक्ति ने पूछा
भाई कैशलेस का मतलब क्या है। कोई अच्छा से समझ ही नहीं पा रहा था। तभी गांव के एक पढ़े लिखे व्यक्ति ने कहा अब कैश नहीं रखना है। उसी एक गरीब व्यक्ति बोला चलो अच्छा है मेरे पास तो पहले से ही कैश नहीं है। अब सब लोग बराबर हो गए। जो भी कहिये बहुत टाइम लगा पर सब लोग आखिर बराबर हो ही गए। अब सब गरीब हो गया। पहले तो मुझे ही सिर्फ टेंशन था। इसी बात पर पढ़ा लिखा नौजवान बोला भाई एक फिर बताता हूँ मगर आगे मेरा दिमाग मत खाना। उस नौजवान ने बताया - कैशलेस का मतलब है बैंक में रखो और हाथ में मत रखो।
मोहल्ले के सारे लोग धराम से आसमान से नीचे गिर गए और एक बुढ़ा व्यक्ति ने बोला कैश हाथ में रखें या बैंक में, इससे क्या होगा। हमलोग तो सोच रहे थे की गैरबराबरी भाई इसी नियम से खत्म हो गयी। भाई ये क्या हुआ ?
तभी एक व्यक्ति ने बोला देखो समानता और असमानता में कोई अंतर ही नहीं है। सिर्फ असमानता में एक ही अच्छर ज्यादा है और बेकार में ही टेंशन लिए बैठे हों। एक - दो रुपया का छुट्टा का कोई वेल्यू है। इतनी सी बात समझ में नहीं आ रहा है।
ग्रामीण शिक्षित नौजवान चिल्ला उठा - क्या बोल रहे हों ?
समानता और असमानता में कोई अंतर ही नहीं है। कुछ समझते ही हों। यार समझा करो। ये एक - दो रूपये का छुट्टा दिखाई देता है।
तभी एक इंसान बोला ऐसे बोल रहे हों जैसे पूरे दुनिया को ही पढ़ लिए हों। चलो अब सही सही बताओ समानता और असमानता में तो सिर्फ एक अ जी ज्यादा लगा है। चले हैं समझाने ????????????
गांव
का
माहौल
शांति की जगह अशांति का स्वरूप ले लिया। उस पढ़े लिखे नौजवान पर तो मनो जैसी आफत ही आ गयी हो। तनाव बढ़ता ही जा रहा था। एक बुजुर्ग व्यक्ति ने पूरे घटनाक्रम को चुप - चाप से देख रहा था। वो धीरे से थाना चला गया। वो इतना भला इंसान था की वो गांव के माहौल को समझ चूका था। अपने अनुभव का लाभ उठाते हुए थाना से दरोगा को बुला लाया।
दरोगा को देखकर सब लोग चुप हो गए। उसने पूछा - हाँ भाई क्यों हंगामा खड़ा किये हों ?
तब वो पढ़ा - लिखा नौजवान आगे बढ़ा - बोलै दरोगा जी समानता और अमानता में क्या फर्क है ?
दरोगा बोला - कोई काम धंधा नहीं है। खाली बक़र - बक़र रहे हों। इस सब चीज में मत उलझा करो। सब समझते हैं कोई भी कुछ बहाना बनाकर मुझे मूर्ख बना रहे हों। बताओ - असली मुद्दा क्या है ?
घबरा कर कुछ लोग बाहर भागने लगे। हाँ इतना जरूर था की थोड़ी शांति - व्यवस्था जरूर बहाल हो गयी। इतने देर में मुखिया जी आ गए।
मुखिया जी के आते ही उस पढ़े - लिखे नौजवान अपना हौसला बढ़ते हुए मुखिया जी से बोला - देखिये मुखिया जी कागज पत्तर का सभी काम हमीं से कराते हैं इसीलिए देख लीजियेगा। इज्जत की बात है।
मुखिया जी सीधे बी डी ओ को बुलाये और कहा आप इतना तो जरूर है आप पढ़े लिखें हैं। आप ही बताइये ही समानता और असमानता में सिर्फ एक अच्छर का ही अंतर है।
बी डी
ओ साहब बोले - सिर्फ एक अच्छर का अंतर तो है मगर आसमान और जमीन का अंतर है।
पूरा ग्रामीण इसी बात पर बी डी ओ का घेराव कर डाला। जिंदाबाद और मुर्दाबाद के नारों से पूरा गांव गूंज उठा। स्थिति अनियंत्रित हो गयी। अंततः जिले के कलेक्टर, एस पी और एस डी एम को आना पड़ा।
दुर्भाग्यवस बी डी
ओ द्वारा कहि हुयी बात को कलेक्टर, एस पी और एस डी एम ने भी सहमति जता दी।
पुनः ग्रामीणों का आक्रोश बढ़ गया। वो पढ़ा - लिखा नौजवान तब तक इतना पीटा जा चूका था की वो बोला - मैं गलत हूँ। आपलोग ही सही हैं।
पुनः गांव में खुशहाली लौट आयी। बैंकों की कतार में खड़े हो गए। सब
मिलकर कहा - थोड़े दिन की बात है।
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