Skip to main content

श्रद्धांजलि : एल.एम. सिंघवी

सबसे पहले छह अक्टूबर डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी, जाने माने विधिवेत्ता और भारतीय ज्ञानपीठ प्रवर समिति के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी का शनिवार ( 06 अक्टूबर 2007 ) को निधन हो गया था।[1]

एल.एम. सिंघवी (9 नवंबर 1 9 31 - 6 अक्टूबर 2007) एक भारतीय न्यायविधि, सांसद, विद्वान, लेखक और राजनयिक थे।  वीके कृष्ण मेनन के बाद सिंघवी जी  दूसरे सबसे लंबे समय तक यूनाइटेड किंगडम में उच्चायुक्त (1991-1997) रहे थे। उन्हें  १९९८ में पद्म भूषण  मिला था। वे मूलतः राजस्थान के  जोधपुर जिले के रहने वाले थे। वे  मारवाड़ी जैन परिवार से संबंधित थे।[2]

उनके जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य स्थानीय स्वशासन से ही संबंधित था। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने एल.एम. सिंघवी की अध्यक्षता में 1986 में एक समिति का गठन किया इसका उद्देश्य पंचायती राज व्यवस्था की जांच करना था। इस समिति ने ग्राम सभा को पुनर्जीवित करने तथा पंचायती राज के नियमित चुनाव कराने पर बल दिया। इस समिति ने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा देने की भी सिफारिश की।[3] उनके इस योगदान को पूरा भारतवर्ष हमेशा याद करेगा।

सिंघवी एक संसद सदस्य के रूप में स्वतंत्र और निष्पक्ष सांविधिक सतर्कता निकाय के गठन का प्रस्ताव भी रखा था। उनका विचार था की भ्रष्टाचार जैसे राजनीतिक और आर्थिक अपराध को रोकने हेतु स्कैंडिनेवियाई देशों में लोकपाल जैसी व्यवस्था भारत में भी बने। उनका विचार काफी दूरगामी था इसीलिए बाद में इस पर कानून भी बना। 1997 में, के बाद वह ब्रिटेन के उच्चायुक्त के रूप में एक लंबे कार्यकाल के निम्नलिखित भारत लौटे और औपचारिक रूप से भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। यह उनके जीवन का राजनीतिक मोड़ था। एक ओर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने उन्हें ग्राम पंचायत जैसे अहम मुद्दे पर कार्य की जिम्मेदारी दी वहीं दूसरी और उनके कार्यक्षमता का लाभ उठाते हुए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने  छह साल की अवधि (1 998-2004) के लिए राज्य सभा में उन्हें भेजा क्यूँकि भारत सरकार और उद्योग के साथ एनआरआई (भारतीय डायस्पोरा) के संपर्क को बढ़ावा देने के लिए  वार्षिक 'प्रवासी भारतीय दिवस' जैसे एक मंच तैयार कर सकें।[4]

दलों की अपनी विचारधारा होती है लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए प्रत्येक विचारधारा का स्वागत और सराहना करनी चाहिए जो राष्ट्र के एकीकरण में मदद करता हों। आज इस दुनिया में सिंघवी नहीं रहें मगर उनके द्वारा किये गए कार्य उनके व्यक्तित्व को और भी निखारता है। मृत्यु सत्य है परन्तु जिन्दा रहते हुए अच्छे कार्य मनुष्य को हमेशा जीवित रखते हैं। लोकतन्त्र में पंचायती राज व्यवस्था आज मील का पथ्थर साबित हो रहा है जिसमें महिलाओं को निर्णय निर्माण में हिस्सेदारी मिलीं।

श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ डॉक्टर लक्ष्मी मल्ल सिंघवी को, जो मरकर भी जिन्दा ही रहते हैं।


मृत्युंजय कुमार

Comments

Popular posts from this blog

भारत की बहिर्विवाह संस्कृति: गोत्र और प्रवर

आपस्तम्ब धर्मसूत्र कहता है - ' संगौत्राय दुहितरेव प्रयच्छेत् ' ( समान गौत्र के पुरुष को कन्या नहीं देना चाहिए ) । असमान गौत्रीय के साथ विवाह न करने पर भूल पुरुष के ब्राह्मणत्व से च्युत हो जाने तथा चांडाल पुत्र - पुत्री के उत्पन्न होने की बात कही गई। अपर्राक कहता है कि जान - बूझकर संगौत्रीय कन्या से विवाह करने वाला जातिच्युत हो जाता है। [1]   ब्राह्मणों के विवाह के अलावे लगभग सभी जातियों में   गौत्र-प्रवर का बड़ा महत्व है। पुराणों व स्मृति आदि ग्रंथों में यह कहा   गया है कि यदि कोई कन्या सगोत्र से हों तो   सप्रवर न हो अर्थात   सप्रवर हों तो   सगोत्र   न हों,   तो ऐसी कन्या के विवाह को अनुमति नहीं दी जाना चाहिए। विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप- इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्ति की संतान 'गौत्र" कहलाती है। यानी जिस व्यक्ति का गौत्र भारद्वाज है, उसके पूर्वज ऋषि भारद्वाज थे और वह व्यक्ति इस ऋषि का वंशज है। आगे चलकर गौत्र का संबंध धार्मिक परंपरा से जुड़ गया और विवाह करते ...

ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद

ब्राह्मण एक जाति है और ब्राह्मणवाद एक विचारधारा है। समय और परिस्थितियों के अनुसार प्रचलित मान्यताओं के विरुद्ध इसकी व्याख्या करने की आवश्यकता है। चूँकि ब्राह्मण समाज के शीर्ष पर रहा है इसी कारण तमाम बुराईयों को उसी में देखा जाता है। इतिहास को पुनः लिखने कि आवश्यकता है और तथ्यों को पुनः समझने कि भी आवश्यकता है। प्राचीन काल में महापद्मनंद , घनानंद , चन्द्रगुप्त मौर्य , अशोक जैसे महान शासक शूद्र जाति से संबंधित थे , तो इस पर तर्क और विवेक से सोचने पर ऐसा प्रतीत होता है प्रचलित मान्यताओं पर पुनः एक बार विचार किया जाएँ। वैदिक युग में सभा और समिति का उल्लेख मिलता है। इन प्रकार कि संस्थाओं को अगर अध्ययन किया जाएँ तो यह   जनतांत्रिक संस्थाएँ की ही प्रतिनिधि थी। इसका उल्लेख अथर्ववेद में भी मिलता है। इसी वेद में यह कहा गया है प्रजापति   की दो पुत्रियाँ हैं , जिसे ' सभा ' और ' समिति ' कहा जाता था। इसी विचार को सुभाष कश्यप ने अपनी पुस्...

कृषि व्यवस्था, पाटीदार आंदोलन और आरक्षण : गुजरात चुनाव

नब्बे के दशक में जो घटना घटी उससे पूरा विश्व प्रभावित हुआ। रूस के विघटन से एकध्रुवीय विश्व का निर्माण , जर्मनी का एकीकरण , वी पी सिंह द्वारा ओ बी सी समुदाय को आरक्षण देना , आडवाणी द्वारा मंदिर निर्माण के रथ यात्रा , राव - मनमोहन द्वारा उदारीकरण , निजीकरण , वैश्वीकरण के नीति को अपनाना आदि घटनाओं से विश्व और भारत जैसे विकाशसील राष्ट्र के लिए एक नए युग का प्रारम्भ हुआ। आर्थिक परिवर्तन से समाजिक परिवर्तन होना प्रारम्भ हुआ। सरकारी नौकरियों में नकारात्मक वृद्धि हुयी और निजी नौकरियों में धीरे - धीरे वृद्धि होती चली गयी। कृषकों का वर्ग भी इस नीति से प्रभावित हुआ। सेवाओं के क्षेत्र में जी डी पी बढ़ती गयी और कृषि क्षेत्र अपने गति को बनाये रखने में अक्षम रहा। कृषि पर आधारित जातियों के अंदर भी शनैः - शनैः ज्वालामुखी कि तरह नीचे से   आग धधकती रहीं। डी एन धानाग्रे  ने कृषि वर्गों अपना अलग ही विचार दिया है। उन्होंने पांच भागों में विभक्त किया है। ·  ...