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Showing posts from November, 2017

भारतीय राजनीति में बदलता राजनीतिक संस्कृति : गुजरात चुनाव

गुजरात चुनाव के संदर्भ में भारतीय संस्कृति के भीतर राजनीतिक संस्कृति को समझने का प्रयास कर रहा हूँ। मेरा विचार है - समाज के संरचना के भीतर ही राजनीतिक संस्कति का विकास होता है और समाज के जो भी मूल्य, प्रथा और परम्परा है उसी से मनुष्यों के भीतर भी उसी संस्कृति का वाहक के रूप में राजनीतिक संस्कृति भी कार्य करती है। मतदान के व्यवहार में समाजिक मूल्य से ही  राजनीतिक संस्कृति का निर्माण होता है। समाज में धर्म दिखता नहीं है क्यूंकि धर्म अमूर्त है। मनुष्यों ने अपने आदतों, व्यवहारों, सामाजिक नियम, संस्कृति, प्रथा से एक प्रकार का पद्धति का निर्माण किया जो दिखाई भी देता है और उससे मानव स्वतः नियंत्रित भी होता है। मतों पर नियंत्रण करने वाले राजनीतिक दलों के राजनेता भी इसी समाज के अंग हैं। मतदाता भी इसी समाज का अंग है। इस प्रकार हम कह सकते हैं - मतदाता के व्यवहार में समाजिक मान्यता या संस्कृति दिखना स्वाभाविक है। मेरे विचार से राजनीतिक संस्कृति किसी भी राष्ट्र में रहने वाले व्यक्तियों या समुदाय के अंदर या बाह्य रूप से समाजिक परिवेश या वतावरण जैसे जाति, धर्म, संस्कृति, मूल्य, मान्यताओं,...

संविधान दिवस और भारतीय समाज

संविधान दिवस मनाने से कानून और प्रथा के बीच कानून को तरजीह मिल सकेगी। कानून बन जाने मात्र से समाजिक प्रथा और परम्परा नहीं बदलती है बल्कि समाज में जागरूकता और चर्चा से कुछ सुधार संभव है। आज भी लोगों के बीच पंचायत परम्परा को ज्यादा तरजीह मिलती है। पुलिस के घर आ जाने मात्र से समाज में बदनामी हो जाती है, इसीलिए पंच परमेश्वर के परम्परा को मान्यता मिल जाती है। पंच परमेश्वर के द्वारा व्यक्ति को न्याय मिलने कि जगह उसे समाजिक मान्यताओं के प्रति समझौते के लिए मजबूर किया जाता है। भारतीय ग्रामीण समाज में आज भी पंच समाज के वे महत्वपूर्ण लोग होते हैं जो दिमाग से सामंतवादी और परम्परावादी होते हैं। नैतिक मूल्यों से बना पंचायत अधिकतर अनैतिक कार्यों में ही लिप्त रहती है। हाल में जाति पंचायत और जाति सम्मेलन का उद्देश्य भी समाज को अप्रगतिशील बनाना ही है। भावनाओं और अतार्तिक जमीन पर ही इस तरह के लोग अपने हितों के पूर्ति हेतु जाति या धर्म का चोला ओढ़कर लोगों को गुमराह करते हैं। समाज में उभरता हुआ मध्य वर्ग जो समाजिक हितों के ज्यादा संवेदनशील दिखाई देते हैं मगर अपने लक्ष्यों के लिए इस तरह के मंचों का इस्तेम...

मानवता और म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमान

सभी इंसान एक और केवल एक हैं , भले ही जाति , पंथ , धर्म और जाति की परवाह किए बिना।   यह एकता दुनिया को शांति और सामंजस्य से भरा होगा   मानवता का भविष्य इस एकता में निहित है।   जैसा कि हम हमारे बीच के मतभेदों को कम करते हैं , मानवता पर व्यापक दृष्टिकोण उठता है ;  जिसमें से पूरी मानव जाति शांति के लिए जी सकता है।   सदियों से , दुनिया को अस्पृश्यता , धार्मिक संघर्षों और गरीबों के समृद्ध समृद्ध लोगों की बुराइयों से दबे हुए थे।   अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ाई में , गांधीजी को मानवता का एक पूर्ण उत्थान से भी कम नहीं था।   अहिंसा की उनकी विचारधारा ही मानवता का दर्पण है।   हरिजन में 20-7-1935 के बारे में उन्होंने लिखा , " हर हत्या या दूसरी चोट , किसी भी कारण के लिए कोई भी कारण , वचन या प्रतिबद्ध नहीं है , मानवता के खिलाफ एक अपराध है। " गांधीजी ने हमेशा उच्च संबंध में और अपने स्वयं के शब्दों में सेवा की , " मैं मानवता की सेवा...