गुजरात चुनाव के संदर्भ में भारतीय संस्कृति के भीतर राजनीतिक संस्कृति को समझने का प्रयास कर रहा हूँ। मेरा विचार है - समाज के संरचना के भीतर ही राजनीतिक संस्कति का विकास होता है और समाज के जो भी मूल्य, प्रथा और परम्परा है उसी से मनुष्यों के भीतर भी उसी संस्कृति का वाहक के रूप में राजनीतिक संस्कृति भी कार्य करती है। मतदान के व्यवहार में समाजिक मूल्य से ही राजनीतिक संस्कृति का निर्माण होता है। समाज में धर्म दिखता नहीं है क्यूंकि धर्म अमूर्त है। मनुष्यों ने अपने आदतों, व्यवहारों, सामाजिक नियम, संस्कृति, प्रथा से एक प्रकार का पद्धति का निर्माण किया जो दिखाई भी देता है और उससे मानव स्वतः नियंत्रित भी होता है। मतों पर नियंत्रण करने वाले राजनीतिक दलों के राजनेता भी इसी समाज के अंग हैं। मतदाता भी इसी समाज का अंग है। इस प्रकार हम कह सकते हैं - मतदाता के व्यवहार में समाजिक मान्यता या संस्कृति दिखना स्वाभाविक है। मेरे विचार से राजनीतिक संस्कृति किसी भी राष्ट्र में रहने वाले व्यक्तियों या समुदाय के अंदर या बाह्य रूप से समाजिक परिवेश या वतावरण जैसे जाति, धर्म, संस्कृति, मूल्य, मान्यताओं,...