राजनयिक संवाददाता जेम्स लंडेल ने लिखा है - ऐसे में ये कोई ताज्ज़ुब की बात नहीं है कि लोगों को ये ना पता हो कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अब तक एक ब्रिटेन का एक जज हमेशा इस कोर्ट के 15 जजों में शामिल रहा है। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।
अंतरराष्ट्रीय अदालत में जज के चुनाव के दौरान भारत ने ये बाजी ब्रिटेन से जीत ली है।[1] जनतंत्र
के लिहाज से अजीब खूबसूरती है ब्रिटेन के अधीन भारत काफी समय तक अधीन रहा लेकिन ब्रिटेन
को पीछे कर ही दलवीर भंडारी आईसीजे के जज बनें।
आजतक के रिपोर्ट के अनुसार, नीदरलैंड के हेग
स्थित अंतरराष्ट्रीय अदालत में भारतीय जज दलवीर भंडारी जज चुन लिए गए हैं। भंडारी को दूसरी बार चुना गया है। जस्टिस दलवीर भंडारी को जनरल एसेंबली में 183 मत
मिले। बता दें, उनके मुकाबला ब्रिटेन के उम्मीदवार
जस्टिस क्रिस्टोफर ग्रीनवुड से था। ग्रीनवुड
ने अपनी दावेदारी वापस ले ली, इस वजह से भंडारी चुन लिए गए। 11वें मुकाबले तक जस्टिस
दलबीर भंडारी जनरल एसेंबली में तो आगे थे मगर सिक्योरिटी काउंसिल में उनके पास मत कम
थे, जबकि अंतरराष्ट्रीय अदालत में जज बनने के लिए सिक्यूरिटी काउंसिल और जनरल एसेंबली
दोनों में जीत दर्ज करना बेहद जरूरी थी। वहीं
12वें दौर में ब्रिटेन के उम्मीदवार ग्रीनवुड मैदान से हट गए। अंतरराष्ट्रीय कोर्ट
में 15 जज चुने जाने थे, 15 में 14 जजों का चुनाव हो चुका था। 15वें जज
के लिए ब्रिटेन की तरफ से ग्रीनवुड
और भारत की ओर से जस्टिस भंडारी उम्मीदवार थे।
जस्टिस भंडारी ने पाकिस्तान में बंद कुलभूषण जाधव
मामले में भी अहम भूमिका निभाई थी। दलवीर भंडारी भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व
न्यायधीश भी रह चुके हैं।[2] भारत
सरकार द्वारा प्रयास और कूटनीति के कारण ही ये सम्भव हो स्का है। नव भारत टाइम्स ने
लिखा है - भारत को यह कामयाबी अनायास ही नहीं मिली है बल्कि सुषमा स्वराज के नेतृत्व
वाले विदेश मंत्रालय की ओर से इसके लिए आक्रामक कूटनीतिक प्रयास किए गए। भारत को बड़े
पैमाने पर समर्थन मिलता देखने पर ब्रिटेन की ओर से क्रिस्टोफर ग्रीनवुड की उम्मीदवारी
वापस लिए जाने के बाद सरकारी एजेंसियों को पूरा भरोसा हो गया था कि भारत पहली बार सुरक्षा
परिषद के 5 ताकतवर देशों के गठजोड़ से निपट सकेगा।[3] जेम्स
लंडेल ने ब्रिटेन के कूटनीतिक विफलता पर लिखा है -यूएन में ये बदलाव एक शक्ति संतुलन
की तरह था। आम सभा में कई देशों में यूएन सुरक्षा
समिति, विशेषत: पांच स्थाई सदस्यों, के पास बहुत ज़्यादा ताकत को लेकर नाराजगी का भाव
है। लेकिन ब्रिटेन ने ये कदम नहीं उठाया क्योंकि उसे डर था कि उसे यूएन सुरक्षा समिति
में पर्याप्त समर्थन नहीं मिलेगा।
इसके
साथ ही भारत के साथ इस संघर्ष से ब्रिटेन को अपने व्यापारिक हितों के लिए ख़तरा दिखाई
दे रहा था। ज़्यादातर विकासशील देश के जी77 समूह काफी समय से ज़्यादा प्रभाव हासिल
करने की कोशिश कर रहा था। ब्रिटेन पर भारत
की जीत को जी 77 सुरक्षा समिति में पारंपरिक ताकतों को हराने में एक जीत की तरह देखी
जाएगी।[4]
मेरे समझ से यह पहली होगा जब
71 सालों में आईसीजे में ब्रिटेन का कोई जज
प्रतिनिधित्व नहीं करेगा।
दूसरा तथ्य यह भी है क्यूंकि ऐसा पहली बार ही हुआ है जब यू एन के किसी स्थायी सदस्य को वोटिंग के बाद अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट की सीट को त्यागना पड़ा।
यूरोपीय यूनियन से निकलने की प्रक्रिया (ब्रेग्जिट) के बाद से ही ब्रिटेन के राजनीति पर गहरा असर पड़ा। पनामा लीक मामले में ब्रिटेन के एक प्रधानमंत्री के फसने से छवि को भी नुकसान हुआ। यूनाइटेड किंगडम के वैश्विक आधार और कमजोर कूटनीति भी विश्व मंच पर अब दिखाई देने लगा। ब्रिटेन के विपक्षी दलों के लिए भी सत्ता पक्ष पर इस मुद्दे के कारण कई उलझनें भी दिखाई देगीं।
विकसशील राष्ट्र भी अपने पहचान और अस्तित्व के लिए विकसित राष्ट्र के आगे अपनी मजबूत रणनीति दिखा पायेगें। परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत के असफल होने के बाबजूद भी यह जीत नए समीकरण और विरोधियों के लिए भी चुनौती भी होगा। बधाइयों का सिलसिला भी प्रारंम्भ हुआ और इस गर्व के क्षण को कुछ इस प्रकार लिखा गया।[5] हमारे
राष्ट्रपति
महामहिम रामनाथ कोविंद लिखते हैं - ‘न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी को आईसीजे में फिर से चुने जाने पर बधाई। भारत के लिए राजनयिक मील का पत्थर।’ ‘मैं जस्टिस दलवीर भंडारी को अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत में फिर से चुने जाने पर बधाई देता हूं। उनका फिर से चुना जाना हमारा लिए गर्व का क्षण है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और विदेश मंत्रालय तथा दूतावासों में उनकी पूरी टीम को उनके अथक परिश्रम के लिए बधाई, जिसके कारण भारत आईसीजे में फिर से निर्वाचित हुआ है। साथ ही यूएनजीए और यूएनएससी के सभी सदस्यों को भारत के प्रति विश्वास और समर्थन के लिए हमारी ओर से आभार।’ --नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
‘वंदे मातरम-भारत ने अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत में चुनाव जीत लिया है। जय हिंद। जस्टिस दलवीर भंडारी को बधाई। विदेश मंत्रालय की टीम द्वारा कड़ी मेहनत की गई। संयुक्त राष्ट्र में हमारे स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन खास तव्वजो के हकदार हैं।’ --सुषमा स्वराज, विदेश मंत्री
‘अंतरराष्ट्रीय अदालत में फिर से निर्वाचित होने पर न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी को बधाई। यह जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार की राजनयिक सफलता को प्रदर्शित करती है।’ --अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष
भारत जब तक यूनाइटेड नेशन में स्थायी सदस्य नहीं बनेगा तब तक अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपनी मजबूत पहचान नहीं बना पायेगा। द्वितीय विश्वयुद्ध
के बाद भारत जैसे राष्ट्र तो आजादी पाने में ही व्यस्त थे और विश्व समाजवादी खेमा पूर्व
यू एस एस आर और पूंजीवादी खेमा संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के बीच बँट गया। गुट निरपेक्षता
के सिद्धांत को आगे कर राष्ट्र अपने चुनौतियों से निपट रहा था। गरीबी, दंगा और भूखमरी
जैसे हकीकत से टकराने के कारण सौदेबाजी या कूटनीति का ज्ञान भी बेकार ही था। पंचशील
में शांति भी चीन युद्ध के बाद अशांति और अविश्वास में बदल गया। पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान
से निपटने में हमेशा एक समस्या बनी रहती है - जीत की हार या हार की जीत। इससे आज भी
मुक्ति नहीं मिल पायी तो समाधान भी नहीं मिल पायेगा। भावी विश्व अब वैश्वीकरण में प्रवेश कर गया और शीत युद्ध के बाद
विश्व एक धुर्वीय भी हो गया। हाल में रूस का उभार हल दे पाता है या नहीं ये समय के
गर्भ में ही है। हमारे राष्ट्र के लिए सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि नीति निर्माताओं ने
विज्ञान और तकनीकि के क्षेत्र में अनुसंधान - विकास पर कार्य समय के अनुरूप नहीं किया
गया, जिससे हम लोग दुसरे राष्ट्र पर ही निर्भर रह जाते हैं। जितना चर्चा जाति पर होती
है अगर उतना ही चर्चा स्वदेशी टेक्नोलॉजी पर हो जाती तो बेहतर होता। बाल मनोविज्ञान
में विज्ञान और टेक्नोलॉजी के ज्ञान से भरने का समय आ गया है।
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