सभी इंसान एक और केवल एक हैं, भले ही जाति, पंथ, धर्म और जाति की परवाह किए बिना। यह एकता दुनिया को शांति और सामंजस्य से भरा होगा मानवता का भविष्य इस एकता में निहित है। जैसा कि हम हमारे बीच के मतभेदों को कम करते हैं, मानवता पर व्यापक दृष्टिकोण उठता है; जिसमें से पूरी मानव जाति शांति के लिए जी सकता है। सदियों से, दुनिया को अस्पृश्यता, धार्मिक संघर्षों और गरीबों के समृद्ध समृद्ध लोगों की बुराइयों से दबे हुए थे। अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ाई में, गांधीजी को मानवता का एक पूर्ण उत्थान से भी कम नहीं था। अहिंसा की उनकी विचारधारा ही मानवता का दर्पण है। हरिजन में 20-7-1935 के बारे में उन्होंने लिखा, "हर हत्या या दूसरी चोट, किसी भी कारण के लिए कोई भी कारण, वचन या प्रतिबद्ध नहीं है, मानवता के खिलाफ एक अपराध है।" गांधीजी ने हमेशा उच्च संबंध में और अपने स्वयं के शब्दों में सेवा की, "मैं मानवता की सेवा के माध्यम से भगवान को देखने का प्रयास कर रहा हूं; क्योंकि मुझे पता है कि भगवान न तो स्वर्ग में हैं, न नीचे से, बल्कि हर किसी में। "मानवता की सेवा ने आज के समाज में कई रूपों को लिया है व्यक्तियों से स्व-रुचि समूह, छोटे धर्मार्थ संगठनों को बड़े कॉर्पोरेट घरों में, गैर-सरकारी संगठनों के लिए निजी संस्थाएं, मानवता को एक विस्तृत श्रृंखला के साथ सेवा दी गई है जिसमें शिक्षा, भोजन, स्वास्थ्य उपायों, आवास, पहुंच की सहायता शामिल है सामाजिक रूप से बहिष्कृत, मानसिक रूप से चुनौती देने वाले और पीड़ित लोगों के लिए शारीरिक रूप से विकलांग, पुन: अभिविन्यास कार्यक्रम समाज के सभी संप्रदायों के हैं। वंचित और अनगिनत विशेषाधिकारियों के लिए योजनाओं और योजनाओं के लिए लोगों को आजकल, पूर्वकाल की तुलना में अधिक पहुंच प्राप्त होती है।[1]
मानवीय इतिहास में म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ जिस प्रकार मानव अधिकारों का अवहेलना किया गया, यह सभ्य समाज पर कलंक ही है। बी बी सी के रिपोर्ट के अनुसार - म्यांमार का रखाइन प्रांत रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर हमेशा से चर्चा में रहा है क्योंकि यहीं इनकी अधिक संख्या है।
साल 2012 में पश्चिमी रखाइन प्रांत में हिंसा हुई।
इसके बाद मध्य म्यांमार और मांडले तक हिंसा फैल चुकी थी। आख़िर रोहिंग्या के ख़िलाफ़ होने वाली सांप्रदायिक हिंसा की क्या वजहे हैं? सबसे पहले यौन उत्पीड़न और स्थानीय विवादों ने रोहिंग्या और दूसरे बहुसंख्यक समुदाय के बीच हिंसा की शुरुआत की थी जिसके बाद इन संघर्षों ने सांप्रदायिकता का रूप ले लिया। सबसे बड़ी और पहली हिंसा जून 2012 में हुई थी जिसमें रखाइन के बौद्धों और मुस्लिमों के बीच दंगे हुए।
यह अनुमान लगाया जाता है कि इस हिंसा के कारण 200 रोहिंग्या मुसलमानों की मौत हुई और हज़ारों को दरबदर होना पड़ा। इस
घातक घटना की शुरुआत एक युवा बौद्ध महिला के बलात्कार और हत्या के बाद शुरू हुई थी। इसके बाद मार्च 2013 में मध्य म्यांमार में एक सोने की दुकान पर विवाद के बाद सांप्रदायिक हिंसा में 40 लोग मारे गए थे। इसी तरह से अगस्त 2013, जनवरी 2014 और जून 2014 में सांप्रदायिक हिंसा हुई जिसमें कई रोहिंग्या पुरुष, महिला और बच्चे मारे गए। हिंदू म्यांमार से बांग्लादेश क्यों भाग रहे हैं? रखाइन प्रांत मे अकसर बौद्धों और मुसलमानों के बीच तनाव रहता है।
बौद्ध राज्य में बहुसंख्यक हैं, अधिकतर मुसलमान ख़ुद को रोहिंग्या कहते हैं। यह समूह बंगाल के एक हिस्से में पैदा हुआ जो जगह अब बांग्लादेश के नाम से जानी जाती है।
बांग्लादेश की सीमा से लगे शहरों में कई हिंसक घटनाएं हुई हैं जिसमें अधिक जनसंख्या मुस्लिमों की है। एक रोहिंग्या मानवाधिकार समूह कहता है कि हिंसा की शुरुआत रोहिंग्या ने की थी. रखाइन बौद्धों ने कहा है कि रोहिंग्या मुख्य रूप से दोषी हैं। संयुक्त राष्ट्र ने रोहिंग्या को पश्चिमी म्यांमार का धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक बताया हुआ है।
साथ
ही संयुक्त राष्ट्र कह चुका है कि रोहिंग्या दुनिया के सबसे सताए हुए अल्पसंख्यक हैं।[2] म्यांमार में रोहिंग्या के ख़िलाफ़ हिंसा रोक नहीं पाना यह लोकतंत्र में सही नहीं है और कमजोर लोकतंत्र का
निशानी भी है। बुद्ध जो शांति और अहिंसा के प्रतीक थे उनके अनुनायियों द्वारा इस तरह
का पक्षपात और हिंसा कतई शोभा नहीं देता है। विश्व समुदाय भी दबाब बनाएं और इसका निदान
खोजे ताकि उपेक्षित और पीड़ित लोगों को सहयता मिल सकें।
म्यांमार के रख़ाइन प्रांत में सैनिक कार्रवाई के बाद से भाग कर आए लाखों रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश के शरणार्थी कैंपों में रह रहे हैं। अगस्त से म्यांमार के रख़ाइन प्रांत से भागकर आए रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या क़रीब छह लाख है। संयुक्त राष्ट्र और अमरीका ने इसे जातीय नरसंहार कहा है।
म्यांमार और बांग्लादेश की सीमा पर नो मैंस लैंड में रहने वाले दिल मोहम्मद रोहिंग्या मुसलमानों के एक नेता हैं। हाल ही में अमरीका के
एक प्रतिनिधिमंडल ने म्यांमार और बांग्लादेश का दौरा किया था। सीनेटर जेफ़ मर्कले ने बीबीसी से बातचीत में कहा
कि वे रेक्स टिलरसन के आंकलन से सहमत हैं। उन्होंने कहा, "हमने बांग्लादेश स्थित कई कैंपों
का दौरा किया। वहाँ हमने कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और सरकारी अधिकारियों से बात की। हमने सीधे शरणार्थियों से भी बात की। हमने उनकी कहानियाँ सुनीं, जिसमें उनके परिजनों
और बच्चों को उनके सामने मार दिया गया. कई महिलाओं और उनकी लड़कियों के साथ बलात्कार
किया गया। हमें जो जानकारी मिली है, उससे यही
लगता है कि उत्तरी रख़ाइन में आठ में से सात रोंहिग्या परिवार पलायन कर चुके हैं. ये
जातीय नरसंहार है।[3]"
यह
ख़ुशी की बात है की बांग्लादेश और म्यांमार ने गुरुवार को एक सैन्य समझौते के मद्देनजर
रखाइन राज्य से भाग जाने वाले रोइंग लोगों
की वापसी पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते पर बांग्लादेश के विदेश
मंत्री ए एच महमूद अली और म्यांमार की राजधानी काउंसलर आंग सान सू की ने म्याममार की
राजधानी नैपियादाव में हस्ताक्षर किए । रोहिंग्या के आतंकवादियों के हमले के बाद अगस्त
में कम से कम 600,000 रोहिंगिया लोग म्यांमार से पड़ोसी बांग्लादेश में भाग गए हैं
क्योंकि सेना ने अगस्त में एक अभियान शुरू किया था। सौदा के तहत, दो महीने में प्रत्यावर्तन
प्रक्रिया शुरू होने की उम्मीद है, ढाका के कूटनीतिक सूत्रों ने द हिंदू को बताया ।[4]
रोहिंग्या
मुसलमानों को राज्यविहीन होकर जीवन व्यतीत करना पड़ा। उनके साथ साम्प्रदायिक हिंसा के
अलावे कई प्रकार के अमानवीय घटनाएं घटी जो आधुनिक समाज को शोभा नहीं देती है। मानवीय
और नैतिकता को इस घटना ने ताड़ - ताड़ कर दिया। मेरे अनुसार, अल्पसंख्यकों के प्रति पूरे
विश्व में अविश्वास और घृणा का माहौल बन रहा है जिसे दूर करने की आवश्यकता है। स्वतन्त्रता,
समानता और भाईचारा जो फ्रांस के क्रान्ति का उपज है यहीं निदान भी है।
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