जिंदगी के मंडी में अब सपनों का बाजार भी लगने लगा है। ये सपना हमेशा अपना लगता है। बहुत चाहने पर भी सपना जाता नहीं है और बहुत प्रयास के बाद भी सपना मिलता नहीं है। ये मंडी है सपनों का भलें ही हकीकत के कोसों दूर हों मगर मजा भी बहुत है। जो भी हों अफसाना हों हकीकत सपनों के सौदागर जब सपना बेचते हैं तो आखिर खरीददार भी अविश्वास के दीवार से फ़ांद
कर सपना खरीदता है। बेचने वाले और खरीदने वाले दोनों एक दूसरे पर इतना भरोसा करते हैं कि जिसका अंदाजा आप लगा नहीं सकते। गलती इंसान का भी नहीं है और भगवान का भी नहीं, गलती का आनंद भी लेकर लोग जीना सीख रहे हैं। आसूं में बहकर भावना कुछ समय डर से भाग जाएँ मगर सपना बहुत बदमाश है। देखिये सपना का बदमाशी वो हर गली जाता है, हर दरगाह जाता है, हर मंदिर जाता है, हर गिरजाघर जाता है, हर गुरुद्वारा जाता है, हर द्वार जाता अंतिम में खुद के पास आता है।
वो शरारत करता है वो परेशान करता है वो दुःख देता है वो सुख देता है वो सुख लेता है वो दुःख लेता है वो मजबूर करता है वो मजबूर करवाता है वो सोने नहीं देता है वो रोने नहीं देता है वो हकीकत के करीब नहीं जाना चाहता है वो निडर है वो घमंडी है वो विश्वासी है वो अविश्वासी है वो चक्रव्यूह रचता है वो होशियार है वो समाजवादी है वो पूंजीवादी है वो साम्यवादी है वो ग्रीन राजनीति करता है वो क्रांति करता है वो क्रूर है वो निर्दयी है वो मानवीय है वो आमनवीय है वो धर्मिक है वो अधार्मिक है वो तर्कशील है वो विवेकशील है - मगर वो इंसान नहीं है। वो सबका प्यारा है इसीलिए तो इंसान नहीं है। वो सजीव और निर्जीव दोनों में है। वो जल, वायु, स्थल, निर्वात और हर ग्रह पर है। उसके रूप नहीं है मगर वो दूसरों को रूप देता है। उसका आकार नहीं है लेकिन वो आकर बना देता है।
वो कुछ बोलता नहीं है मगर सबके आँखों का नूर है। सपना न होता तो इंसान अधूरा होता। सपना न होता तो आज अविष्कार नहीं होता। सपना न होता तो सभ्यता न होती। सपना न होता तो हम मेहनती न होते। सपना न होता तो हम गैर मेहनती भी न होते। सबसे चालाक सपना है - इसीलिए जलन है इससे क्यूंकि ये बर्बाद कर भी और आबाद कर भी मुस्कुराता है। न चहके न बहके न कूदे न चलें न बोलें - कोई उपाय मिल नहीं रहा है। इतना बदमाश है ये चुनाव को भी नहीं छोड़ा। लोगों को बरगलाया है - पंद्रह लाख का सपना। इसने झूठ बोला है। मगर मुकदमा भी नहीं कर सकते और इसे पकड़ भी नहीं सकते। ये अदृश्य है भाई।
कश्मीर के कली के तरह होगी कोई खूबसूरत नाड़ी किसी के दिल का सपना था, इसने उसे बना दिया आंतकवादी। सपना तू तो निर्दयी है। समझ में नहीं आता है तेरा क्या होगा। जब इंसान फँसता है तू भाग जाता है। तू डरपोक है।
लोगों
के
दिल के साथ मत खेलो। गरीब और मजदूर को छोड़ दो भाई ? वो सह नहीं पाते हैं
जब सपना टूटता है। वो विखर जाते हैं जब सपनों का अंधेरा हटता है। सूर्य और चाँद का भी ग्रहण लगता है, मगर सपना तुझे कभी भी ग्रहण नहीं लगता है। मत दूर करो हकीकत से पाप लगेगा। क्या जाने तुम्हें पाप भी नहीं लगें।
तू अमर है तू ज्वाला के आग में घी डालता है तू आखिर ये सब क्यों करता है। ये धरती है चला जा, कहीं और घर बना लें, इंसान पर रहम कर , रहम कर और रहम कर। नींद में सोने नहीं देता और दिन में भी जागने नहीं देता है भाई कुछ तो सोचो।
बुद्ध ने कहा है - "जैसे एक फूल बहुत प्यारा और सुंदर है, पर खुशबू नहीं है। ठीक वैसे किसी की कही हुई अच्छी बातें व्यर्थ हैं, अगर वो उनको अमल में नहीं लाता।" सपना को बुद्ध के बातों से कोई मतलब नहीं है। सपना तो सही - गलत में फर्क करने भी नहीं देता है। वो चालाकी से आता है किसी के दिल में जाता है। नए अरमानों के फूलों से भर देता। बुद्धिवान को भी मंदबुद्धि के श्रेणी में लाकर खड़ा कर देता है।
बुद्ध आज सपना से लड़ रहे हैं। सपना उनसे भी बहस करने तो तैयार है।
बुद्ध - हम जो सोचते हैं , वो बन जाते हैं।
सपना - हम सही सोचने देते नहीं हैं। कुछ लोग जो बहुत कम मात्रा में वे हमें धोखा जरूर देते हैं मगर कहीं न कहीं हम जरूर लपेट लेते हैं। आप सत्य है और मैं हकीकत हूँ। सत्य हकीकत नहीं है।
आप भी सोच पर अपना चक्र चला रहे हैं मैं चक्र इस युग के अनुसार चला रहा हूँ।
बुद्ध - एक हजार खोखले शब्दों से अच्छा वह एक शब्द है जिससे शांति हासिल होती है।
सपना - खोखले शब्द नहीं हैं। ये शब्द जिसे आप खोखला कह रहे हैं दरअसल इंसान खोखला है। मेरी कोई गलती नहीं है अब उसे खोखले विचार से ही शांति मिलती है। मैं भी बुरा नहीं हूँ। मैं किसी को रोते देख नहीं सकता इसीलिए उसके दिल और दिमाग में सपना बनकर ही जाता हूँ। दिल और दिमाग भी बदमाश है। दोनों कभी भी नहीं सोता है।
मैं खुद भी परेशान हूँ क्यूंकि 24 *
7 मुझे भी आराम नहीं मिलता है। मगर मैं बैचैन नहीं हूँ। शांति तभी मिलती है मानव को जब वो झूठ का कोई और सपना देखें। मैं लाचार हूँ।
बुद्ध - शांति मन के अन्दर से आती है, इसके बिना इसकी तलाश मत करो।
सपना - मैं भी शांत करने के लिए ही सपना दिखाता हूँ।
बुद्ध - तुम अपने क्रोध के लिए दंड नहीं पाओगे, तुम अपने क्रोध द्वारा दंड पाओगे।
सपना - क्रोध के लिए आप इतना प्रयास करते हैं मैं सिर्फ सपना ही दिखता हूँ तो लोग खुश हो जाते हैं। बहुत रोगों से भी बचाता हूँ। आपको बता दूँ कोई फ़ीस भी नहीं लेता हूँ।
बुद्ध - स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन है, वफ़ादारी सबसे बड़ा सम्बन्ध है।
सपना - एक झटके में ही सब दान में दे देता हूँ।
बुद्ध - अतीत पे ध्यान मत दो, भविष्य के बारे में मत सोचो, अपने मन को वर्तमान क्षण पे केन्द्रित करो।
सपना - इन सब में इंसान को पड़ने ही नहीं देता हूँ।
बुद्ध - सभी बुरे कार्य मन के कारण उत्पन्न होते हैं। अगर मन परिवर्तित हो जाये तो क्या अनैतिक कार्य रह सकते हैं?
सपना - नैतिक और अनैतिक में कोई अंतर नहीं है। मुझे दोनों को समान रूप से सहयोग करना पड़ता है। ऊपर से बहुत दबाब रहता है।
बुद्ध - आपके पास जो कुछ भी है है उसे बढ़ा-चढ़ा कर मत बताइए, और ना ही दूसरों से ईर्ष्या कीजिये। जो दूसरों से ईर्ष्या करता है उसे मन की शांति नहीं मिलती।
सपना - ऐसा करने में अगर सहयोग नहीं करेगें तो सबके प्रतिष्ठा का हनन होगा।
बुद्ध - वह जो पचास लोगों से प्रेम करता है उसके पचास संकट हैं, वो जो किसी से प्रेम नहीं करता उसके एक भी संकट नहीं है।
सपना - कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकता।
परम् आनंद में सबका सहयोग और सबका साथ।
बुद्ध - क्रोध को पाले रखना गर्म कोयले को किसी और पर फेंकने की नीयत से पकडे रहने के समान है; इसमें आप ही जलते हैं।
सपना - जलने और जलाने में सहयोग करना मजबूरी है। दोनों समझदार इंसान ही करते हैं।
बुद्ध - चाहे आप जितने पवित्र शब्द पढ़ लें या बोल लें, वो आपका क्या भला करेंगे जब तक आप उन्हें उपयोग में नहीं लाते?
सपना - उत्तरजीविता का सिद्धांत पढ़ें आप।
बुद्ध - शक की आदत से भयावह कुछ भी नहीं है। शक लोगों को अलग करता है।
यह एक ऐसा ज़हर है जो मित्रता ख़त्म करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है। यह एक काँटा है जो चोटिल करता है, एक तलवार है जो वध करती है।
सपना - शक के मामले में मेरी कोई भूमिका नहीं है।
बुद्ध -
सत्य के मार्ग पे चलते हुए कोई दो ही गलतियाँ कर सकता है, पूरा रास्ता ना तय करना, और इसकी शुरआत ही ना करना।
सपना - दिल्ली पुलिस सदैव आपके साथ - के सिद्धांत पर चलता हूँ।
बुद्ध - एक शुद्ध निःस्वार्थ जीवन जीने के लिए, एक व्यक्ति को प्रचुरता में भी कुछ भी अपना नहीं है ऐसा भरोसा करना चाहिए।
सपना - अब ज़माना बदल गया है।
बुद्ध - हजार लड़ाई जीतने से अच्छा है अपने आप को जीतना।
फिर जीत तुम्हारी है।
सपना - मनुष्य के सोच के अनुसार ही कार्य करता हूँ।
बुद्ध - जीभ (यहा पर अर्थ है आपके बोलने का तरीका) एक तेज़ चाकू की तरह है, और खून तक नहीं निकलता। अर्थात आपके बोलने के तरीके से किसी को तकलीफ हो सकती है सोच समझकर बोलिए।
सपना - सामने वाले व्यक्ति के सोच और समझ पर नियंत्रण कर खुश करना मेरा उद्देश्य है।
बुद्ध - स्वस्थ रहने के लिए, परिवार को ख़ुशी देने के लिए, सभी को शांति देने के लिए, व्यक्ति को सबसे पहले स्वयं के मन को अनुशासन में रखना होगा। अगर कोई व्यक्ति अपने मन को अनुशासन में कर लेता है तो वो ज्ञान की तरफ बढ़ता है।
सपना - सुविधा का तर्क को
जन्म देना मेरा दायित्व है।
बुद्ध - हम जो कुछ भी हैं वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है। यदि कोई व्यक्ति बुरी सोच के साथ बोलता या काम करता है , तो उसे कष्ट ही मिलता है। यदि कोई व्यक्ति शुद्ध विचारों के साथ बोलता या काम करता है, तो उसकी परछाई की तरह ख़ुशी उसका साथ कभी नहीं छोडती।
सपना - नैतिकता और मूल्य समाजिक है और मैं व्यक्ति को सिर्फ खुश करना चाहता हूँ। इसी ख़ुशी में वह जेल दर्शन भी करें तो मेरी जिम्मेदारी नहीं है।
बुद्ध -
किसी जंगली जानवर की अपेक्षा एक कपटी और दुष्ट मित्र से ज्यादा डरना चाहिए, जानवर तो बस आपके शरीर को नुक्सान पहुंचा सकता है, पर एक बुरा मित्र आपकी बुद्धि को नुकसान पहुंचा सकता है।
सपना - बंदर भी पहले जानवर था उसी से इंसान बना है। आज भी बंदर हैं। जंगल के सत्ता पर जनवरों में ज्यादा शक्तिशाली राज करता है। इसी प्रकार जो ज्यादा सपना यानि मेरा इस्तेमाल करेगा वो राज करेगा। राज पहले आता है नीति बाद में। राजनीति भी सपनों का बाजार ही है।
दरअसल बुद्ध साधना में चले जाते हैं। सपना गंभीर प्रश्नों में आनंद लेने लगता है। माहौल शांत है सपना अपना शिकार खोजना शुरू कर देता है। लेकिन सपना के दिलों में बुद्ध द्वारा उठाये गए प्रश्नों के प्रति गंभीर भी है। अचानक सपना बोला - मेरी कोई गलती नहीं है। पन्द्रह
लाखों से जब आदमी ख़ुशी से झूम रहा था तो मैं कैसे उसके खुशियों को तबाह कर देता। जब क्रिकेट में इंडो - पाक मैच में दोनों देश के लोगों में ख़ुशी और गम के माहौल में भी फायदा तो सिर्फ क्रिकेटर को ही होता है लेकिन लोगों में गुस्सा और तनाव। क्या मेरी गलती है। फिल्मों में लोग लाइन लगाकर डंडा खाकर ख़ुशी खरीदते हैं तो ये मेरी गलती है। जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, प्रजाति और नृजाति के नाम पर संबंध बनाते है और अपना मत देते हैं तो ये मेरी गलती है।
सत्य को नहीं जानने का आदत मनुष्यों का है तो क्या मैं गलत हूँ। बाबों के मक्कारी के जाल में लोग स्वेछा से जाते है तो मेरी गलती है। सपना अपना भी है सपना अपना भी नहीं है। मेरा तो कुछ नहीं है। इंसानों ने मेरा इस्तेमाल किया है।
पाश (अवतार सिंह संधू) (9 सितम्बर 1950 – 23 मार्च 1988) प्रसिद्द कवि अपने कविता में कहते हैं -
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकडे जाना बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है
सबसे खतरनाक नहीं होता|
कपट के शोर में सही होते हुए भी
दब जाना बुरा तो है
जुगनुओं की लौ में पढ़ना
मुट्ठियाँ भींचकर बस वक्त निकाल लेना
बुरा तो है
सबसे खतरनाक नहीं होता|
सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे खतरनाक वो घड़ी होती है
जो कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नजर में रुकी होती है
सबसे खतरनाक वो आँख होती है
जिसकी नजर दुनिया को
मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
और जो एक घटिया दोहराव के क्रम में
खो जाती है
सबसे खतरनाक वो गीत होता है
जो मरसिए की तरह पढ़ा जाता है
आतंकित लोगों के दरवाजों पर
गुंडों की तरह अकड़ता है
सबसे खतरनाक वो चाँद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वीरान हुए आँगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आँखों में
मिर्चों की तरह नहीं पड़ता
सबसे खतरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धुप का कोई टुकडा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी और लोभ की मुठ्ठी
सबसे खतरनाक नहीं होती
सपना अपने दिल में कहा - आज मेरे शब्दों से भी समस्या है। देखो अभी राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) ने कहा है कि पंजाबी के क्रांतिकारी कवि शहीद अवतार सिंह 'पाश' की मशहूर कविता, 'सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना' को पाठ्यपुस्तक से हटाया नहीं जाएगा। एनसीआरटी के निदेशक हृषिकेश सेनापति ने आज इन आशंकाओं को
निराधार बताया कि पाश की कविता एनसीआरटी की किताबों से हटाई जाएगी। उन्होंने दो टूक
शब्दों में कहा कि पाश ही नहीं किसी कवि लेखक की किसी भी रचना को पाठ्यक्रम से नहीं हटाया जाएगा। 9 सितम्बर 1950 को जालंधर के तलवंडी
सालेम गांव में जन्मे पाश और उनके मित्र हंसराज की २३ मार्च 1988 को आतंकवादियों ने
गोली मारकर हत्या कर दी थी। पाश अमेरिका में रहते थे और वीसा के लिए भारत आए थे। उन्हें
अगले दिन ही अमेरिका लौटना था। पाश की हत्या के बाद उनकी कविताएं साहित्य जगत में काफी
लोकप्रिय हुईं और नई पीढ़ी के वे नायक बन गए। हिन्दी में उनकी कविताओं का काफी अनुवाद
भी हुआ।[1] पाश की कविता हमारी क्रांतिकारी काव्य-परंपरा की अत्यंत प्रभावी और सार्थक अभिव्यक्ति है | मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण पर आधारित व्यवस्था के नाश और एक वर्ग विहीन समाज की स्थापना के लिए जारी जन-संघर्षों में इसकी पक्षधरता स्पष्ट है | नामवर सिंह ठीक ही कहते है कि “ पाश की कविता की यह ताकत है जो अनुवाद में भी इतना असर रखती है | मूल पंजाबी में वह कैसी होगी इसका सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है |”[2]
मेरे नाम में खतरा और हिम्मत दोनों है। नेल्सन मंडेला ने ठीक ही कहा था - खतरे के साथ-साथ अपनी हिम्मत को भी बढ़ने दो।" अगर सदुपयोग किये तो महान बनोगे, दुरूपयोग किये तो नाश के रह पर चलोगे।
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