जाति व्यवस्था
समाज
के
लोगों
में
एकता
के
त्वत्त
के
स्थान
पर
पृथकतावादी और विभाजन के सिद्धांत पर ही कार्य करती हैं। इस प्रकार समाज को अनेकता के जाल में डाला गया है जिससे कोई भी विदेशी मूल का शासक या अपने धरती पर राजनेता आसानी से शक्ति और सत्ता पर काबिज हो जाता है। मानवीय व्यवहार को भी जाति व्यवस्था इस कदर प्रभावित करती है जिससे अपने सोच को भी दूसरे हाथों में डालकर खुद पर गर्व करने से कतराते नहीं हैं। मनुष्य का अस्तित्व हमेशा से अलग - अलग रहा है। बुद्धि, विवेक, तर्क और मूल्य तक में यह व्यवस्था इस कदर हस्तक्षेप करता है जिससे अपना लाभ भी जाति के नेता के लाभ में दिखाई देने लगता है। महाभारत में धृतराष्ट्र पुत्रमोह में अँधा का प्रतीक है और गंधारी सत्य से बचने के लिए आँखों में पट्टी बांध लेती है।
गांधारी के साथ किया अन्याय
इसके अलवा भीष्म ने यह अपराध भी किया है । यह जानते हुए भी कि गांधारी नेत्रहीन नहीं है, भीष्म ने जबरदस्ती उनका विवाह धृतराष्ट्र से करा दिया। अपनी बहन से बहुत प्रेम करने वाला शकुनि अपनी बहन के साथ हुए इस अन्याय का बदला लेने के लिए जिंदगी भर चालें चलता रहा और इसीके चलते महाभारत युद्ध हुआ। हस्तिनापुर के भीष्म गांधार राज्य को कमजोर और निर्बल समझकर धृतराष्ट्र के शादी का प्रस्ताव लेकर गए थे। भीष्म यह जानते हुए कि यह विवाह प्रस्ताव गंधार राज्य दवरा ठुकरा दिया जायेगा लेकिन अपनी शक्ति और बल पर ही राजा सुबाल को धमकाकर या कहें तो उसके कमजोरी का लाभ उठाकर अंधे राजकुमार धृतराष्ट्र से सुंदरी कन्या
गांधारी का विवाह होता है। इस कारण ही शकुनी अपने प्रतिशोध में अपनी बहन के साथ हस्तिनापुर का हस्ती खत्म करने के इरादे से आता है। पितामह भीष्म ने क्रोध के आग में जलते हुए और निःसहाय राजा सुबाल को धमकाते हुए कहा
कि मैं तुम्हारे इस छोटे से राज्य
पर चढ़ाई करूंगा और इसे समाप्त
और बर्बाद भी कर दूंगा। ऐसे हालात में
शकुनी अपने स्थिति और मजबूरियों से अवगत हो गया। आगे चलकर शकुनी अपने बुद्धि और तर्क के द्वारा धृतराष्ट्र और भीष्म दोनों को राजनीति के ज्ञान से ऐसा अवगत कराया, जिसे आज भी करोड़ों लोग इस कथा को देखने के लिए मरते हैं। आज भी मांगलिक लड़कियों को पहले निर्जीव वस्तुओं से विवाह कर उसे खत्म किया जाता है। वह लड़की विधवा मान ली जाती है फिर मनुष्य रुपी प्राणी से मांगलिक लड़की का विवाह किया जाता है। माना जाता है कि गांधारी का विवाह महाराज धृतराष्ट्र से करने से पहले ज्योतिषियों ने सलाह दी कि गांधारी के पहले विवाह पर संकट है अत: इसका पहला विवाह किसी ओर से कर दीजिए, फिर धृतराष्ट्र से करें। इसके लिए ज्योतिषियों के कहने पर गांधारी का विवाह एक बकरे से करवाया गया था। बाद में उस बकरे की बलि दे दी गई। कहा जाता है कि गांधारी को किसी प्रकार के प्रकोप से मुक्त करवाने के लिए ही ज्योतिषियों ने यह सुझाव दिया था। इस कारणवश गांधारी प्रतीक रूप में विधवा मान ली गईं और बाद में उनका विवाह धृतराष्ट्र से कर दिया गया। गांधारी एक विधवा थीं, यह सच्चाई बहुत समय तक कौरव पक्ष को पता नहीं चली। यह बात जब महाराज धृतराष्ट्र को पता चली तो वे बहुत क्रोधित हो उठे। उन्होंने समझा कि गांधारी का पहले किसी से विवाह हुआ था और वह न मालूम किस कारण मारा गया। धृतराष्ट्र के मन में इसको लेकर दुख उत्पन्न हुआ और उन्होंने इसका दोषी गांधारी के पिता राजा सुबाल को माना। धृतराष्ट्र ने गांधारी के पिता राजा सुबाल को पूरे परिवार सहित कारागार में डाल दिया। कारागार में उनको खाने के लिए केवल एक व्यक्ति का भोजन दिया जाता था। केवल एक व्यक्ति के भोजन से सभी का पेट कैसे भरता? यह पूरे परिवार कोभूखा
मार देने की साजिश थी। राजा सुबाल ने यह निर्णय लिया कि वह यह भोजन केवल उनके सबसे छोटे पुत्र को ही दिया जाए ताकि उनके परिवार में से कोई तो जीवित बच सके। एक-एक करके सुबाल के सभी पुत्र मरने लगे। सब लोग अपने हिस्से का चावल शकुनि को देते थे ताकि वह जीवित बना रह सके। मृत्यु से पहले सुबाल ने धृतराष्ट्र से शकुनि को छोड़ने की विनती की, जो धृतराष्ट्र ने मान ली । जब कौरवों में वरिष्ठ युवराज दुर्योधन ने यह देखा कि केवल शकुनि ही जीवित बचे हैं तो उन्होंने पिता की आज्ञा से उसे क्षमा करते हुए अपने देश वापस लौट जाने या फिर हस्तिनापुर में ही रहकर अपना राज देखने को कहा। शकुनि ने हस्तिनापुर में रुकने का निर्णय लिया। यह
जानते हुए भी कि परिजनों के मरने और गांधारी के जिंदगी भर मजबूरन आंखों पर पट्टी बांध कर रहने की वजह से शकुनि के दिल में हस्तिनापुर साम्राज्य के लिए जहर भरा है, भीष्म ने शकुनि को राज्य में रहने की इजाजत दे दी। इसका नतीजा सब जानते हैं।[1]
जनश्रुति कहें या किवदन्तियां, मगर महाभारत के कथा का मतलब यह था शक्ति और बल पर अधिकारों का ही हनन नहीं होता है बल्कि आपकी इच्छा भी कुचल दी जाती है। प्रतिशोध के भावना को लोग कुछ समय के लिए दबा देते हैं लेकिन आगे चलकर उसका जबाब देते हैं। भलें ही जबाब देने के चक्रव्यूह में खुद भी अपनी जिंदगी को तबाह कर लेते हैं। जाति व्यवस्था भी समाजिक संरचना का हिस्सा ही है जो शक्ति और बल पर एक समुदाय पर दुसरे समुदाय पर अपना वर्चस्व स्थापित करते हैं। जनतंत्र में सँख्या बल महत्वपूर्ण होता है। भरतीय समाज में अगर ऐसा होता कि जनसँख्या लोकतंत्र को निर्धारित करती तो अब तक जाति व्यवस्था या खत्म होती या शोषण का चरित्र ही बदल जाता। आखिर ऐसा क्यों नहीं हो पाया ? जनतंत्र में जनमत का शासन ही होता है लेकिन कूटनीति इतनी प्रबल होती है जिसका अंदाजा भी लगाया नहीं जा सकता है। कौरवों के सामने पांडवों
के हैसियत कुछ भी नहीं था। सत्ता पर कौरवों का पूर्ण नियंत्रण था लेकिन हार भी कौरवों
को ही देखना पड़ा। विदुर और कृष्ण जैसे रणनीतिकार को अपने पक्ष में कौरव नहीं किया और
दुर्योधन प्रतिशोध के आग में ही जल गया। जीत और हार में धन, शाश्त्र, शस्त्र, सेना
का होना जरूरी है लेकिन इससे जीता नहीं जा सकता है। रणनीति, कूटनीति और राजनीति से
ही युद्ध जीता जाता है। कौरवों ने इस पक्ष पर अपना ध्यान ही नहीं दिया। सत्ता का संचालन
शक्ति से होता है लेकिन शक्ति का केंद्र नेतृत्व कर्ता के क्षमता पर निर्भर करता है।
भरतीय राजनीति अब महाभारतयुगीन काल में प्रवेश कर चुका है। मर्यादा से प्रारम्भ होकर हेट स्पीच, अपशब्दों और निजी हमले तक सफर करता है। नैतिकता को सामने रखकर मूल्य विहीन आदर्शों के हकीकत से टकरा रहा है। जन नेपथ्य में हैं और जननेता अपने समर्थकों के सामने अपने राजनीतिक रंग - मंच पर खुलेआम अभिनय करते हैं। श्रोतागण अपना बहुमूल्य समय निकल कर अपने उम्मीदों और सपनों के साथ हर बार मंच के नीचे से अपना ज्ञान वर्धन करते हैं। उम्मीद और सपनों के बीच जनता हमेशा दुविधा में रहती है शायद
इस बार या पहली बार या इस पर या उस पर या नोटा पर या अनेकों बार ?????????????
जाति के नाम और पहचान बनाकर घूमने वाले नेताओं का वहीं हाल जैसा भीष्म के साथ हुआ। प्रतिज्ञा और वचनों के बन्धन ने ही तो महाभारत को जन्म दिया। गंधारी का विवाह ने शकुनी को जन्म दिया। ठीक उसी प्रकार जाति के नेता तो सबसे पहले अपने जाति का ही शिकार करते हैं। शिकारी भी जनता है मेरा शिकार हो रहा है लेकिन वो विवश और लाचार है। धृतराष्ट्र के निर्णयहीनता के कोख से
मनुष्यहीनता का जन्म हुआ था। लाक्षागृह में जिन्दा जलाने कि योजना मानव के असंवेदनशील होने का ही प्रमाण है। राजा अँधा नहीं था उसके निर्णय कभी भी समाज को उजाले का एहसास नहीं करा पाया। द्रोपदी जो हस्तिनापुर के इज्जत का प्रतीक है उसे राजदरबार में लेकर नंगा करने का प्रयास और राज्य के संरक्षक के रूप में धृतराष्ट्र कि चुप्पी, आज भी यहीं हो रहा है। ऊना में दलितों को नंगा कर दिया जाता है और उसे मानव भी नहीं समझा जाता है। दलित नेता बयान देते हैं - यह छोटी घटना है। धृतराष्ट्र भी द्रोपदी के साथ हुए अन्याय में चुप थे। इतिहास कभी भी उस व्यक्ति को माफ़ नहीं करता है जो सिर्फ मात्र सत्ता सुख के लिए अपने समाज को ही बेच दें। समाज के साथ होने वाले अन्याय को मजाक बना दें। आखिर राजनीति ये है तो राजनीति छोडकर एक सच्चा मनुष्य ही बनना चाहिए। सरकार
और सत्ता को भीष्म भी नहीं त्याग पाए थे। शादी नहीं कि, लेकिन राज दरबार के शोभा बढ़ाने
जरूर आया करते थे। न्याय नहीं दिला पाएं मगर अन्याय होते देखना मंजूर किया। गुजरात
में एक बार फिर ऊना कांड जैसा वाकया सामने आया है। खबर है कि आणंद जिले के सोजित्रा
तालुका के कासोर गांव में कथित रूप से ऊंची जाति के कुछ लोगों ने एक दलित महिला और
उसके बेटे को पहले नग्न किया और फिर बेंत से पिटाई की। शनिवार को हुई इस घटना में पीड़िता
मणिबेन (45) और शैलेश रोहित (21) की भीड़ ने लाठियों से पिटाई की और अपशब्द कहे।[2] दलित
महिला को नग्न कर पीटा गया और महाभारत में द्रोपदी को तो सिर्फ साडी ही उतारी गयी थी।
हस्तिनापुर के दरबार में भी चुप्पी थी लेकिन दलितों के तथाकथित नेता अपनी मर्यादा को
इतना लाँघ जायेगें, इसका अंदाजा शायद उन्हें भी नहीं होगा। मनुष्य में भावना और संवेदना
निकाल दें तो वह मशीन ही बनेगा।
जिंदगी के रफ्तार में लोग भूल जाते हैं हमारी दिशा और दशा क्या है ? सत्ता और शक्ति एक यौवन कि तरह है जो कुर्सी के मिलते ही चेहरे पर लालिमा आ जाती है और जाते ही हताश और निराश होकर जाति - जाति चिल्लाते हैं। सपनों में भी कुर्सी दिखाई देने लगती है स्वप्न टूटते ही कांच के शीशे के तरह टूटकर विखर जाते हैं। फिर होगा जाति सम्मेलन और दिखाया जायेगा - कभी नहीं खत्म होने वाला स्वप्न। दर्दों और भवनाओं से भरी सभा होगी अगर बहुत चालाक निकले तो किसी तरह रोने का नाटक भी होगा। लोगों के दिलों को छूने का प्रयास होगा और मन के अंदर सिर्फ एक बात होगी एक बार सत्ता मिलने दो। बस एक बार सत्ता मिलने दो। बस एक बार सत्ता मिलने दो।
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