चरित्र हत्या एक षड्यंत्र और साजिश के तहत जानबूझकर किया जाता है, और इसे प्रचारित करने वालों कि आदतों एवं व्यवहार में निरंतर प्रक्रिया चलती रहती है, जिससे प्रचारित करने वाला व्यक्ति खुद को नैतिकता और मूल्य के मानदंड पर ऊंचा रखता है और दुसरे व्यक्ति जिसमें कोई व्यक्ति, मित्र, रिश्तेदार, कमजोर वर्ग (जैसे महिलाओं, गरीब उच्च जाति के लोग, मजदूरों, दलितों और आदिवासियों), समाजिक समूहों, संस्था, समाजिक संगठन, और समाज के साथ राष्ट्र की एकता, एकीकरण, विश्वसनीयता, मानवीय (अधिकार और गरिमा) और प्रतिष्ठा को नष्ट ही नहीं कलंकित भी करता है और उसके बढ़ाने में हमेशा अफवाहों और झूठे तर्कों का सहारा लेकर चरित्र हत्याओं के एजेंट या प्रतिनिधि बनकर कार्य करता है। इसके पीछे दो तरह का मनोग्रंथि या मनोविकार शामिल होता है - असफलता, असम्मान और कायरता। जब कोई भी असमाजिक या असभ्य व्यक्ति इस कार्य को अंजाम देता है तो अपने लक्ष्यों को हमेशा पीठ पीछे और गुप्त तरीकों को अपने समान व्यक्तियों के मिश्रण कर ही अपने उद्देश्य में संलग्न रहता है।
असमाजिक त्वत्तों से संबंधित ऐसा व्यक्ति का मनोबल काफी कमजोर होता है और मूल रूप से वह वह मनोरोगी होता है। मनोरोग से ही मानसिक विकृति का जन्म होता है। वह व्यक्ति जो चरित्र हत्या करता है समान्यतः दुःख देने वाली प्रवृत्ति का शिकार होता है और इससे वह अपनी असफलता और कमियों को आसानी से छुपा सकता है। चरित्र हत्या एक व्यक्ति की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का एक प्रयास है।
इसमें लक्षित व्यक्ति की असत्य तस्वीर पेश करने के लिए अतिरंजना ,
भ्रामक आधे-सत्य या तथ्यों के हेरफेर शामिल हो सकते हैं । यह मानहानि का एक रूप है और यह विज्ञापन गृहता तर्क का एक रूप हो सकता है । चरित्र हत्या के प्रयासों से लक्षित रहने वाले व्यक्तियों के लिए, इसका परिणाम उनके समुदाय , परिवार या उनके जीवन या काम के माहौल द्वारा अस्वीकार कर दिया जा सकता है। इस तरह के कृत्यों को अक्सर रिवर्स करना या सुधारना मुश्किल होता है, और यह प्रक्रिया मानवीय जीवन की एक शाब्दिक हत्या के साथ होती है। स्थायी क्षति क्षतिपूर्ति के बाद कई शताब्दियों के लिए, ऐतिहासिक आंकड़ों के लिए, जीवनकाल समाप्त कर सकती है । वाक्यांश "चरित्र हत्या" लगभग 1
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0 से लोकप्रिय हुआ।[1]
अफवाहों के बीज को पानी - पानी देकर उसमें वृद्धि करना यह कोई खाली वख्त वाला व्यक्ति ही कर सकता है जिसे समाजिक पहचान और अस्मिता आज तक नहीं मिला है,और बढ़ावा देने से वह सिर्फ इसलिए प्रसन्न या खुश
होता है क्यूँकि उसके द्वारा किये किये चरित्र हत्या से दूसरे व्यक्ति को पीड़ा पहुंचती है। यहीं मनोरोग है अगर इसका इलाज सही मनोवैज्ञानिक से नहीं किया जाएँ तो समाज अपने पहचान संकट के युग में प्रवेश करता है।
संसाधनों का लगातार कम होना, जनसंख्यां पर नियंत्रण नहीं होने से और बिना कार्य कर स्वप्न लोक में जीने के कारण ही चरित्र हत्या जैसे अचूक दवा का सहारा लिया जाता है। समान्यतः मानसिक विकृति और झूठ ज्यादा बोलने वाले लोगों में इस तरह के प्रवित्ति को देखा गया है। अपने लक्ष्य को आसानी से पाने के लिए भी राजनीति में खुले मंच के द्वारा और असमाजिक त्वत्तों द्वारा गुप्त तरीकों से चरित्र हत्या जैसे - तथ्य को छुपाना, गलत जानकारी, निजी जीवन के बारे में गलत जानकारी देना, भ्रामक सोच पैदा करवाना आदि माध्यमों के द्वारा अपने योजना में सफल होते हैं।
चरित्र
हत्या एक प्रकार का मानसिक रूप से दिवालिया
सभ्यता को जन्म देता है जिससे नैतिक मूल्यों में गिरावट, विश्वास का संकट, बौद्धिक
रूपों के साथ हिंसा, भावनात्मक रूप से मानवाधिकार का हनन, पीड़ादायक समाज का निर्माण होता है। भलें ही जिसके
चरित्र के बारे गलत जानकारी देकर उसके विश्वास
और नैतिक मूल्य पर चोट किया जाता है लेकिन इसे बर्दाश्त करने वाले भी मानसिक रोगी ही
होते हैं। जो अन्याय या अत्याचार करता है वह उतना गलत नहीं होता है जितना जिसके साथ
अन्याय और अत्याचार होता है वो इसे मौन सहमति देता है। प्रारम्भ में मजाक लगता है लेकिन
बाद में समाजिक रूप से वह इंसान मजाक के प्राणी में सम्मलित हो जाता है।
अनैतिक
गणित कभी भी सही हिसाब नहीं दे सकता है। जानकर अनजान बनने का नुकसान हमेशा कुत्ता काटने
पर रेबीज बीमारी के समान होता है जिसका असर काफी बाद में होता है। जल ही जीवन है, लेकिन
रेबीज के बाद भय जल से ही उत्पन्न होता है। अलगाव, पीड़ा, अक्षमता, असभ्य, बर्बर, अमानवीय
और कमजोर व्यक्तित्व वाले लोगों का चरित्र हनन और हत्या किया जाता है। गरीबी के दो
स्तर होते हैं - एक मानसिक और दूसरा आर्थिक। आर्थिक गरीबी को दूर किया जा सकता है लेकिन
मानसिक गरीबी धनवानों के साथ भी हो सकता है।
अपराध
के बाद सजा का प्रावधान को अगर खत्म कर दें तो सारे अधिकार मिट्टी में मिल जायेगें।
भग्यवादी आत्महत्या भी बचा नहीं पा पयेगा। महाभारत में अर्जुन जब अपना गांडीव भगवान
कृष्ण के चरणों में रख देता है और अर्जुन का मन उस समय यानि रणभूमि में दुविधा और बोझिल
हो जाता है। तभी कृष्ण समझाते हैं युद्ध के पीछे हटने का तर्क एक कायर इंसान कि तरह
है। तुम अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हों। सत्य के लिया किया गया संघर्ष
व्यर्थ नहीं जाता है। इस यद्ध का परिणाम भी आने वाली पीढ़ियों को मिलेगा, क्यूंकि तुम
एक उदाहरण बन सकोगें अगर अन्यायी परिवार और जाति के भीतर भी हों तो लोग उसे रष्ट्र
हित में उसका विनाश करेगें। यह एक मिथ्या कहानी है लेकिन महिलाओं के शोषण में नब्बे
प्रतिशत का योगदान उसके परिवार वाले ही होते हैं। राजाराम मोहन राय जब सती प्रथा का
विरोध किया तो उन्हें अपने माँ स्वरा परित्याग कर दिया गया। हिंदुस्तान के आधुनिक पुनर्जागरण
के पिता का देहांत लन्दन में हुआ।
चरित्र
हत्या के संदर्भ में यह शब्द ‘पोस्ट-ट्रुथ’ भी काफिकरीब है। ऑक्सफोर्ड
डिक्शनरी ने 2016 के लिए ‘पोस्ट-ट्रुथ’ शब्द को ‘वर्ड ऑफ द ईयर’
घोषित किया है। दुनिया में पूरी तरह अंग्रेजी भाषी देश दो ही हैं- ब्रिटेन और अमेरिका।
इन दोनों ही देशों में इस साल ‘पोस्ट-ट्रुथ पॉलिटिक्स’
यानी ‘उत्तर-सत्य युगीन राजनीति’ जैसी शब्दावली खूब इस्तेमाल
में लाई गई है।[2]
भावनात्मक
तर्क का जाल ही झूठों को सही मानकर चलता है। सत्तावादी और विपक्ष दोनों राजनीति के
खेल में प्रवक्ता और बौद्धिक माध्यम से असत्य
को सत्य अपने - अपने सिद्धांतों के अनुरूप गढ़ते हैं जिनका वास्तविकता और यथार्थ से
कोई भी मतलब नहीं होता है। सत्तावादी आवाजों की सभ्यता को बढ़ाने में बौद्धिक लोगों
के भूमिका को ख़ारिज नहीं किया सकता है क्यूंकि मध्य वर्ग और बौद्धिक वर्ग को हमेशा
सत्ता चाहिए जिससे उनका व्यक्तिगत जीवन आरामदेह हों। उत्तर सत्य (पोस्ट
ट्रुथ – POST TRUTH) का मूल मंत्र है - तथ्यों से विचलन (DEVIANCE)
और तर्क (logic) या अविवेकशील (IRRATIONAL)
बातें जो
निजी विश्वासों और आस्थाओं पर आधारित है। व्यक्तिपरक ज्ञान (SUBJECTIVE KNOWLEDGE)
जो तर्क और विवेक पर आधारित नहीं है और वस्तुनिष्ठ
(OBJECTIVE)
जो तर्क, विवेक (RATIONAL)
और प्रमाण - साक्ष्य पर आधारित होते हैं।
[1] https://en.wikipedia.org
[2] https://navbharattimes.indiatimes.com/opinion/editorial/post-truth-oxford-dictionary-declared-word-of-the-year/articleshow/55478790.cms
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