नोटबंदी के एक वर्ष पूरे हो गए। इसी दिन प्रधानमंत्री द्वारा 500 और 1000 रूपये के नोट का लीगल टेंडर वापस लिया गया था। यह कदम साहसिक भी था और चुनौतियों से भरा हुआ था। नरेन्द्र मोदी ने एक साक्षात्कार में कहा कि यदि आप पूरी पारदर्शिता और पवित्र उद्देश्य के साथ काम करते हैं तो उसके अच्छे परिणाम सामने आएंगे और हर कोई उन्हें देख सकेगा। उन्होंने कहा कि मेरे विरोधी कुछ भी कह सकते हैं परंतु मैं इस फैसले से कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं लेना चाहता क्योंकि इसके सबसे बेहतरीन परिणाम सामने आएंगे। उन्होंने कहा कि पांच सौ और एक हजार रूपये के नोटों को अमान्य करार दिए जाने से भ्रष्टाचार से जुड़ी गतिविधियों की मूल जड़ों पर बहुत तेज प्रहार हुआ है और इससे देश में जमा कालेधन को बाहर लाने में मदद मिली है चाहे वह राजनेताओं, नौकरशाहों, व्यापारियों, पेशेवरों और किसी अन्य के पास था। इस फैसले ने आतंकवादियों और माओवादियों की कमर भी तोड़ दी है क्योंकि उनके पास भी भारी मात्रा में कालाधन था। भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा कि आपको यह बात अच्छी तरह समझनी चाहिये कि विमुद्रीकरण का फैसला मैंने अल्पकालीन लाभ के लिए नहीं लिया था बल्कि दीर्घकालीन ढ़ांचांगत सुधार के लिए लिया था, हमारा उद्देश्य अपनी अर्थव्यवस्था और समाज को कालेधन के चंगुल से बचाना था।[1] आज ए टी एम में लम्बी लाइन तो नहीं है। लोगों में नोटबंदी को लेकर क्रोध भी समय ने भर दिया। अर्थव्यवस्था से आम लोगों को कोई मतलब नहीं होता है। बस लोगों को रोजगार और मँहगाई जैसे मुद्दे पर ही संवेदनशील होते हैं। प्रश्न यह है आखिर नोटबंदी अपने मूल उद्देश्य में कितना कामयाब हो पायी। केन्द्र की मोदी सरकार के विमुद्रीकरण कदम का उपहास उड़ाते हुए शिवसेना ने नोटबंदी का एक वर्ष पूरा होने पर आज श्राद्ध मृत्यु के बाद किये जाने वाला अनुष्ठान किया।[2] केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने बुधवार को कहा कि नोटबंदी के कारण देशभर में वेश्यावृत्ति और मानव तस्करी काफी हद तक कम हो गई है। बीजेपी नोटबंदी की पहली वर्षगांठ को एंटी-ब्लैक मनी डे की तरह मना रही है। कानून मंत्री ने कहा कि भारत में मांस के व्यापार में गिरावट आई है। महिलाओं और लड़कियों की ट्रैफिकिंग काफी हद तक कम हो गई है। नेपाल और बांग्लादेश में भारी तादाद में पैसा पहुंचाया जाता था। मांस के व्यापार के लिए 500 और 1000 के नोटों का इस्तेमाल होता था, जो अब कम हो गया है। प्रसाद ने दावा किया कि नोटबंदी के बाद से जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आई है। उन्होंने कहा, नोटबंदी के एक वर्ष ने यह साबित किया है कि फैसला राष्ट्रहित में था। गौरतलब है कि इस फैसले को विपक्ष आपदा तो बीजेपी मास्टरस्ट्रोक बता रही है।[3] विपक्षी दलों द्वारा विरोध और सत्ता पक्ष द्वारा समर्थन से विश्लेषण सम्भव नहीं है। नोटबंदी का बुरा परिणाम यह है कि प्रवासी मजदूर जो छोटे, मंझोले उद्योग और असंगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे थे, उन्हें वापस घर लौटना पड़ा।
सब काम ठप, पैसों की तंगी और डिजिटल लेन-देन को बढ़ावे की वजह से मानों करोड़ों लोगों के सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया। किसी के घर शादी थी, तो कही बीमारी हर तरफ परेशानी ही परेशानी थी। इस वजह से देश में कारोबारियों को बड़ा नुकसान हुआ। कुछ लोगों ने नोटबंदी के अवसर का भरपूर फायदा उठाया। उन्होंने जुगाड़ कर अपने काले धन को सफेद कर लिया। तो कुछ लोगों अपने सफेद धन को भी नहीं बदलवा सके। रातों रात लोगों के खातों में लक्ष्मीजी की कृपा हो गई और ढूंढ-ढूंढकर उन्हें हजार पांच सौ के बड़े नोट थमा दिए गए। बड़ी संख्या में पुराने नोटों की जब्ती की गई। मोदी ने भी लोगों से अपील की कि जो भी उन्हें पैसे देने आए लेले और फिर उन्हें वापस न लौटाए। हालांकि अभी भी कई लोगों के पास हजार, पांच सौ पुराने नोट है। वह इसे बदलवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं। मोदी सरकार ने नोटबंदी को सफल करार दिया। यह भी दावा किया गया कि इस कदम से आतंकवाद, भ्रष्टाचार और काले धन पर लगाम कसी गई। लेकिन रघुराम राजन जैसे सरकार से जुड़े कई अर्थशास्त्रियों ने इस पर सवाल उठाए। विपक्ष ने भी मौके का पूरा फायदा उठाया और सरकार को इस पर घेरने का प्रयास किया।[4] वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार का प्रश्न काफी उचित है, जिसमें उन्होंने कहा है -
यहां काले धन का मतलब नगदी हिस्से से ही है, जिसकी मात्रा काले धन के विशाल साम्राज्य में बहुत कम होती है।
क्या काला धन बनने की प्रक्रिया समाप्त हो गई है?[5]बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने नोटबंदी के एक साल पूरे होने पर पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार निशाना साधा है।
उन्होंने कहा कि पीएम मोदी सरकार ने नोटबंदी का फैसला जल्दबाजी में और काफी अपरिपक्व तरीके लिया।
उनके इस फैसले से मुट्ठीभर नेताओं और उद्योगपतियों को छोड़कर देश के सवा सौ करोड़ लोगों को तंगी और बेरोजगारी जैसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ा।
इतना ही नहीं केन्द्र सरकार का ये फैसला भारत के इतिहास का एक काला अध्याय है।[6]
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