वह जो
हिमाचल पर चिंतन करता
है, भले
ही वह स्वयं को उससे
न बांधें, उस व्यक्ति
से महान है जो सारी पूजा कशी
में करता है
। देवताओं के सौ
युगों में भी मैं तुमसे
हिमाचल की महिमा का वर्णन
नहीं कर सकता
। जैसे
प्रभात सूर्य की
किरणें ओस
की बूंदों को सूखा देती
हैं इसी
प्रकार मानव
के पाप
हिमाचल के
दर्शन से धूल जाते
हैं ।
(स्कंधपुराण)
(हिमाचल प्रदेश : हरि कृष्ण मिट्टू (1994) ; अनुवाद, नरेश "नदीम", नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया)
आज नौ नवम्बर को मत देने लोगों का हुजूम बूथ केंद्रों में लगता ही जा रहा है। ठंठ मौसम में राजनीति गर्म होती जा रही है। हर उम्मीदवार मतदाताओं को रिझाने में लगे हुए हैं। ADR रिपोर्ट चुनाव से पहले आ चुकी है। इसी रिपोर्ट में कहा गया है
- 47% उम्मीदवार करोड़पति और 18% पर अपराधिक मामले दर्ज हैं। आज होने वाले वोटिंग के पहले 338 उम्मीदवारों द्वारा नामांकन दाखिल किए जाने के बाद एडीआर ने अपनी यह रिपोर्ट बनाई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में सबसे ज्यादा करोड़पति उम्मीदवार दिए हैं, जबकि दागी उम्मीदवारों की संख्या में बीजेपी अव्वल है।
हिमाचल विधानसभा में उतरे कुल 338 उम्मीदवारों में 61 यानी 18 प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले एफिडेविट में दिखाए हैं । वहीं 9 प्रतिशत यानी की कुल 31 उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं । रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस के 1 उम्मीदवार राम कुमार के खिलाफ हत्या के तहत मामला दर्ज है । जबकि दो विद्वानों के खिलाफ हत्या की कोशिश के तहत मामला दर्ज है । कुल 338 उम्मीदवारों में से 6 यानी कि 9 प्रतिशत कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। जबकि BJP के 23 यानी कि 34% उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं । वहीं बसपा के 42 उम्मीदवारों में से तीन के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। जबकि वामपंथी दलों के 14 उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं । कुल उम्मीदवारों में से कांग्रेस के 4% और बीजेपी के 13 प्रतिशत उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर मामले दर्ज हैं । हिमाचल प्रदेश के कुल 338 उम्मीदवारों में से 158 यानी कि 47 प्रतिशत उम्मीदवार करोड़पति हैं। ADR (ASSOCIATION FOR DEMOCRATIC REFORMS) की रिपोर्ट के मुताबिक 59 उम्मीदवार यानी कि 87 प्रतिशत उम्मीदवार कांग्रेस पार्टी के 47 उम्मीदवार यानी कि 69 प्रतिशत उम्मीदवार करोड़पति हैं । बहुजन समाजवादी पार्टी के 6 और वामपंथी दलों के 3 उम्मीदवारों ने भी एफिडेविट में खुद को करोड़पति बताया है। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक उम्मीदवारों की औसतन संपत्ति 4.7 करोड़ रुपये हैं । ADR की रिपोर्ट के मुताबिक 20 यानी कि कुल 6% उम्मीदवारों ने अपने पैन कार्ड का ब्यौरा जाहिर नहीं किया है ।[1]
हिमाचल विधानसभा में उतरे कुल 338 उम्मीदवारों में 61 यानी 18 प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले एफिडेविट में दिखाए हैं । वहीं 9 प्रतिशत यानी की कुल 31 उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं । रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस के 1 उम्मीदवार राम कुमार के खिलाफ हत्या के तहत मामला दर्ज है । जबकि दो विद्वानों के खिलाफ हत्या की कोशिश के तहत मामला दर्ज है । कुल 338 उम्मीदवारों में से 6 यानी कि 9 प्रतिशत कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। जबकि BJP के 23 यानी कि 34% उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं । वहीं बसपा के 42 उम्मीदवारों में से तीन के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। जबकि वामपंथी दलों के 14 उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं । कुल उम्मीदवारों में से कांग्रेस के 4% और बीजेपी के 13 प्रतिशत उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर मामले दर्ज हैं । हिमाचल प्रदेश के कुल 338 उम्मीदवारों में से 158 यानी कि 47 प्रतिशत उम्मीदवार करोड़पति हैं। ADR (ASSOCIATION FOR DEMOCRATIC REFORMS) की रिपोर्ट के मुताबिक 59 उम्मीदवार यानी कि 87 प्रतिशत उम्मीदवार कांग्रेस पार्टी के 47 उम्मीदवार यानी कि 69 प्रतिशत उम्मीदवार करोड़पति हैं । बहुजन समाजवादी पार्टी के 6 और वामपंथी दलों के 3 उम्मीदवारों ने भी एफिडेविट में खुद को करोड़पति बताया है। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक उम्मीदवारों की औसतन संपत्ति 4.7 करोड़ रुपये हैं । ADR की रिपोर्ट के मुताबिक 20 यानी कि कुल 6% उम्मीदवारों ने अपने पैन कार्ड का ब्यौरा जाहिर नहीं किया है ।[1]
मेरा विचार है अब राजनीति के प्रवृति और प्रकृति में परिवर्तन आ गया है। सिद्धांत और सत्य आपस में ही टकरा रहे हैं। कथनी और करनी अब पर्दे के पीछे नहीं रह गया है। अब आखों में रौशनी ही नहीं बची है जिससे सत्य को देखा जाएँ या उस पर चर्चा हों। हम सभी समझदार हैं, तकनीकि और वैज्ञानिक ज्ञान के द्वारा प्रत्येक पहलू को आसानी से समझते भी हैं और प्रयोग भी करते हैं। राजनीति में जातिवाद और अपराधीकरण का आलोचना करते नहीं थकते हैं। मगर सत्य यह है इसके बिना चला नहीं जाता, उपर्युक्त तथ्य तो यही दिखाता है। कौन कहता है हम जानते नहीं हैं।
महाभारत तब होता है जब जब जानकर भी अनजान बनते हैं। भले ही यह कहानी हों, चरित्रों के आधार पर मूल्यांकन करने से इंसान ही जान परता है।अंधा युग में डॉ. धर्मवीर भारती ने युद्ध परिपेक्ष्य में आधुनिक जीवन की विभीषिका का चित्रण किया है। कृष्ण ने धृतराष्ट्र को समझाया था कि मर्यादा मत तोड़ो। टूटी हुई मर्यादाएं सारे कौरव वंश को नष्ट कर देंगी। वह धृतराष्ट्र अंधा था और उसकी संवेदनाएँ बाहरी यथार्थ या सामाजिक मर्यादा ग्रहण करने में असमर्थ थीं, इसलिए स्वार्थ का अंधापन छा गया। इस अंधेपन ने संस्कृति को ह्रासोन्मुख बना दिया और पूरे युग को महाविनाश के कगार पर खड़ा कर दिया। युद्ध में मौलिक विनाश के साथ-साथ मानवीय जीवन को ध्वस्त कर दिया। अनेक आस्थायें टूट गईं। आधुनिक युग में दो विश्व युद्धों में अंधी प्रवृत्तियों द्वारा विश्व में यह विनाश हुआ। अंधेपन से उत्पन्न युद्धों के उपरान्त एक महान विघटनकारी संस्कृति का निर्माण हुआ। जिसमें कुंठा, निराशा, पराजय, अनास्था, प्रतिशोध, आत्मघात और पीड़ा व्याप्त हो गई।[2]
मेरा मानना है - हिमाचल और हिमालय को समझने के लिए क्रमशः
राजनीतिक परिवर्तन के साथ जलवायु परिवर्तन को भी समझना पड़ेगा। मानवीय गतिविधि और क्रियाकलाप के कारण ही प्रकृति और राजनीति अपने संतुलन को खोती जा रही है। भारत की संस्कृति पर दोनों का ही असर होता है। हमारे भोजन, व्यवहार, सोच, आदतें, विचार के निर्माण में संस्कृति का महत्वपूर्ण स्थान है। दल का दोष कम है और दिमाग में दोष ज्यादा है। स्वाभाविक रूप से
विध्वंसकारी सोच हमारी है क्यूंकि समाज ने मनुष्यों को नहीं बनाया है, बल्कि मनुष्यों ने ही अपनी आवश्यकता पूर्ती के लिए समाज का निर्माण किया है। दोष समाज का नहीं दोष तो समाज में रहने वाले व्यक्तियों का है। मतदान व्यवहार में जाति और अपराध को लोगों ने संरक्षण दिया तो दलों ने भी इन्हें दिल से लगाया है। अगले कुछ
वर्षों में औसत तापमान में
वृद्धि होगी तो
समुद्र तल में वृद्धि में वृद्धि होगी जमीन का हिस्सा कम होगा। छोटे - छोटे द्वीप ग्लोबल वार्मिंग के भेंट चढेगें और कम आय वाले लोग संसाधन के अभाव के कारण भेंट चढेगें। प्रकृति और पर्यावरण को भी मनुष्यों द्वारा ही शोषण हुआ और मनुष्यों द्वारा ही मनुष्यों का शोषण जाति व्यवस्था और धर्म में व्याप्त रूढ़िवाद के कारण हुआ। जब भी प्रकृति क्रोध करती है तो सुनामी, चक्रवात, बाढ़ आता है लेकिन वो क्षणिक होता है। इसीलिए मनुष्य ज्यादा शक्तिशाली है क्यूंकि मनुष्यों द्वारा बनाई व्यवस्था जैसे जाति, धर्म जैसे स्थायी होते हैं। पेड़ लगाकर या उभोक्तावाद को कमकर प्रकृति को संतुलित करने की आज भी संभावना है मगर हृदय में कितने ही नए ऑक्सीजन दे दें लेकिन जाति और धर्म जाती ही नहीं है। यह बड़ी विडंबना है बुद्धि हमेशा फायदा दें यह जरूरी नहीं है।
मनुष्यों द्वारा मानसिक
विचरण तथा भावनाओं के भवंडर ने ही विशिष्ट और परिवर्तनशील दशाओं के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया देने वाला प्राणी बनाया है। मानसिक सोच को कला में बदलना मनुष्य के नम्यता बनाने की ओर प्रवित्ति का सूचक है। भारत की समृद्ध कला परंपरा में लोक कलाओं का गहरा रंग है। काश्मीर से कन्या कुमारी तक इस कला की अमरबेल फैली हुई है। काँगड़ा कलाकृतियाँ, जिन्हें पहाड़ी चित्रकला के नाम से भी जाना जाता है, हिमाचल प्रदेश की काँगड़ा घाटी में बसे कलाकार परिवारों द्वारा बनाए गए लघुचित्र हैं। लोक कला के रूप में विकसित होने के बावजूद काँगड़ा शैली के चित्रों में कला के विकास और बारीकियों का सुन्दर चित्रण मिलता है। गुलेकर्ण इन कलाकृतियों का जन्मस्थल माना जाता है। यही से छंब, मंडी, कुलू और बिलासपुर शैलियों का विकास हुआ। काँगड़ा
शैली का विकास 1775 से 1823 के मध्य राजा संसारचंद
के राज्य में हुआ । छंब शैली
राजा राजसिंह के दरबार में 1765 से 1774 के बीच विकसित हुयी। ये दोनों ही राज्य समकालीन थे। मंडी नाम से विकसित लघुचित्रों की एक शैली 1595 में मंडी
के राजा केशव सेन के समय में विकसित हुयी और राज समरसेन के समय में चरमोत्कर्ष पर पहुँची।
मंडी शैली को बसोहली और कुलू शैली को काँगड़ा शैली से जोड़ा जाता है। इन सबके अतिरिक्त हिमांचल प्रदेश में एक और शैली का भी विकास हुआ है जिसे गुंपा
कहते हैं। इनका मूल स्रोत बौद्ध साहित्य है और प्राचीन काल में इनका प्रचलन बौद्ध मठों तक ही सीमित था लेकिन धीरे धीरे छंब और काँगड़ा शैली की प्रभाव गुंपा शैली पर भी आया।
अलग शैलियों में गुथे हुए ये लघुचित्र हर काल में अनेक नामों से जाने जाते रहे हैं लेकिन प्रसिद्ध साहित्यकारों और इतिहासकारों ने इन सभी को काँगड़ा कलाकृतियों का नाम दिया है। दरबारी दृश्यों और प्रेम लीलाओं के सर्वोत्कृष्ट अंकन के लिये विश्व- विख्यात इन कलाकृतियों में रंगों की विविधता और आकृतियों के सूक्ष्म विवरणों का विस्तार देखते ही बनता है। बियास नदी के किनारे काँगड़ा, सुजनपुर और आलमपुर नामक स्थानों पर बसे हुए चित्रकारों ने अनेक वर्षो तक इस शैली पर काम करते हुए इसे विकसित किया। चित्रों की इस शैली के विषय भगवतपुराण, गीत गोविंद, रासलीला, रामलीला, शिव लीला, दुर्गा शक्ति लीला, बिहारी सतसईं, रसिक प्रिया, कवि प्रिया, नल दमयंती प्रणय, राग माला, बारह मासा, राजा, राजदरबार और राजपरिवार के दृश्य हैं। लगभग पत्येक दृष्य की पृष्ठभूमि में प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण अत्यंत सुंदरता के साथ किया गया है।[3]
सृजन-क्षमता हमारे समूचे मानवीय विकास की उपलब्धि है। इसी कारण कला, सौंदर्य, जाति, धर्म, हथियार, साख सृजन, मौद्रिक सृजन और राजनीतिक संस्कृति का सृजन क्र पाए हैं। विवेक और तर्क के खत्म होने पर जैसे-जैसे हिमनद पिघलते जाते हैं ठीक उसी प्रकार मानवीय मूल्य भी पिघलते जाते हैं। प्रभाव और वर्चस्व जैसे शब्दों ने आज भारतीय राजनीति के लोकतान्त्रिक परम्परा और समावेशी विकास को काफी हद तक रोक दिया है। हम लोगों द्वारा जब
कलात्मक रूप का सृजन होता है इससे सौंदर्य विखरता है जब जाति और धर्म के राजनीति में सृजन करते हैं तो हमारी सभ्यता भी
कलंकित होती है। सृजन के ज़रिये
ही अपने अंदर बैठे इंसान और जानवर दोनों का बाह्य समाज से
तमाम चीज़ों को सौन्दर्यपूर्ण ढंग या रक्तरंजित हकीकत
से अभिव्यंजात्मक बनाते हैं। यही हमारी मानव के विशिष्ट रचनात्मक शक्ति का सबूत और नकारात्मक विचारों का भी उपलब्धि है।
मनुष्यों का
सृजन-क्षमता हमारे समूचे मानवीय इतिहास
की उपलब्धि है।
पारिभाषिक शब्दावली:
कांगड़ा चित्रकला[4] :
- · कांगड़ा चित्रकला पहाड़ी चित्रकला का एक भाग है।
- · भारतीय चित्रकला के इतिहास के मध्ययुग में विकसित पहाड़ी शैली के अंतर्गत कांगड़ा शैली का विशेष स्थान है।
- · कांगड़ा चित्रकला का विकास कचोट राजवंश के राजा संसार चन्द्र के कार्यकाल में हुआ।
- · कांगड़ा चित्रकला शैली दर्शनीय तथा रोमाण्टिक है।
- · कांगड़ा चित्रकला में पौराणिक कथाओं और रीतिकालीन नायक- नायिकाओं के चित्रों की प्रधानता है तथा गौण रूप में व्यक्ति चित्रों को भी स्थान दिया गया है।
- · कांगड़ा शैली में सर्वाधिक प्रभावशाली आकृतियाँ स्त्रियों की हैं जिसमें चित्रकारों ने भारतीय परम्परा के अनुसार नारी के आदर्श रूप को ही ग्रहण किया है।
- · कांगड़ा शैली के स्त्री चित्रों में सत्कुल को अभिव्यक्त करने वाले वस्त्र, चाँद सी गोल मुखाकृति, बड़ी- बड़ी भावप्रवण आँखे, भरे हुए वक्ष, लयमान उंगलियाँ, मुख में छिपा हुआ रहस्यमय भाव सर्वत्र दृष्टिगोचर होते हैं।
- · यह नितांत निजी शैली है जिसकी विशेषता नारी- सौन्दर्य के प्रति अत्यधिक झुकाव है।
- · कांगड़ा चित्रकला शैली में प्राकृतिक, विशेषकर पर्वतीय दृश्यों का भी चित्रण किया गया है।
जाति :
·
डॉ॰ जी. एस धुरिए के अनुसार जाति की दृष्टि से हिंदू समाज की छह विशेताएँ हैं[5] –
- · जातीय समूहों द्वारा समाज का खंडों में विभाजन,
- · जातीय समूहों के बीच ऊँच नीच का प्राय: निश्चित तारतम्य,
- · खानपान और सामाजिक व्यवहार संबंधी प्रतिबंध
- · नागरिक जीवन तथा धर्म के विषय में विभिन्न समूहों की अनर्हताएँ तथा विशेषाधिकार,
- · पेशे के चुनाव में पूर्ण स्वतंत्रता का अभाव और
- · विवाह अपनी जाति के अंदर करने का नियम।
धर्म : परमेश्वर में विश्वास या देवताओं की आराधना किए जाने, जो कि अक्सर व्यवहार और अनुष्ठानों में व्यक्त होते हैं" या "आराधना, मान्यताओं की कोई एक विशेष प्रणाली आदि के साथ किया जा सकता है., जिसमें अक्सर नैतिकता की संहिता सम्मिलित होती है।[6]
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