महाभारत में लाक्षागृह का निर्माण इसीलिए हुआ था कि पांडवों को जिन्दा जलाया जाएँ और कौरवों के युवराज दुर्योधन को आसानी से सत्ता मिलें। सत्ता प्राप्त करने का आसान रास्ता कभी
भी नहीं रहा। विदुर जैसे नायक के भूमिका को प्रासंगिकता कभी नहीं मिल पाती, अगर वो पाण्डु पुत्रों को अगर बचा नहीं पाते। कौरव और पांडव के कथा में आज भी भारतीय राजनीति कि झलक मिलती है। बी जे पी और कांग्रेस दोनों राष्ट्रीय दलों के प्रभाव हमेशा से ही हिमाचल प्रदेश में रहा है। क्षेत्रीय दलों का अभाव नहीं है क्यूँकि हिडिम्बा और घटोत्कच के बलिदान को महाभारत में भी जगह नहीं मिली। शक्ति और षड्यंत्र में काफी अंतर है। पहाड़ी राज्य के लोगों में सत्ता के प्रति मोह नहीं है क्यूंकि वो षड्यंत्र को समझ पाने में आज भी असफल हैं।
डिमाशा जनजाति जो
भीम की पत्नी हिडिंबा के वंश से जोड़ता है।
शादी के बाद भी भीम के द्वारा हिडिंबा को सम्मान नहीं मिला और पांडवों द्वारा अपनाया नहीं गया। भीम और हिडिंबा से एक महान और बलशाली पुत्र
घटोत्कच जन्म लिया। पिता के अभाव ने शायद घटोत्कच के मनोविज्ञान पर काफी असर पड़ा। वनों में हमेशा से ही आदिवासी समाज अपनी जिंदगी में कुटिलता के स्थान पर सरलता को स्थान दिया। मगर अपने अधिकार को छोड़ देने मात्र से ही अन्याय को बढ़ावा मिलता है। मनोरम दृश्यों से भरा हुआ जगह आर्थिक उन्नति में आज भी पीछा है। मन के संतोष से मानसिक शांति मिलती है लेकिन आर्थिक विकास सम्भव नहीं है। हिडिम्बा का निश्छल और स्वार्थरहित था लेकिन भीम का प्यार अपने जीवन रक्षा और स्वार्थ से प्रेरित था। ऐसे में सिर्फ प्रेम क्षणिक हो सकता था लेकिन उस प्रेम को मान्यता नहीं मिलती। यहीं कारण है हिडिम्बा और
घटोत्कच को महाभारत में जो जगह मिलनी चाहिए था वो नहीं मिल पाया। भीम की पत्नी हिडिम्बा को कुल्लू राजवंश में तो जगह मिली लेकिन पांडवों के परिवार में नहीं मिल पायी।
हिडिंबा इसके लिये तैयार हो गई और भीमसेन के साथ आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी। एक वर्ष व्यतीत होने पर हिडिम्बा का पुत्र उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होते समय उसके सिर पर केश (उत्कच) न होने के कारण उसका नाम घटोत्कच रखा गया। वह अत्यन्त मायावी निकला और जन्म लेते ही बड़ा हो गया।
हिडिंब अपनी बहन हिडिंबा के लिए अपना प्राण न्योछावर कर देता है। भीम के हाथों हिडिंब का वध हो जाने पर हिडिंबा पांडवों के शरण में जाती है। हिडिम्बा जब भोजन के तलाश में जाती है तो भीम के प्रति उसके दिल में भावनाओं का तूफ़ान आ जाता है। प्रेम में आ जाने के बाद तर्क स्वतः विदा ले लेता है। भाई और बहन के बीच भीम के कारण तनाव भी होता है। प्रेम अँधा होता है क्यूंकि हिडिम्बा अभी तक अवगत नहीं है प्रेम का इजाजत तो पांडवों की माता कुन्ती ही दे सकता है। अर्जुन जब द्रोपदी को घर लाता है माता कुन्ती के वचनों को पूरा करने के चक्कर में द्रोपदी का बटवारा प्रसाद के समान पांचों भाईयों में हो जाता है। महिलावादी दृष्टिकोण से यह घटना माँ के आज्ञा और अधिकार के बीच टकरा रही है, लेकिन मात्र एक आदेश और अर्जुन के प्रेम का नाश, सोचने को मजबूर करता है। एक ओर माँ के सम्मान का प्रश्न है तो दूसरी ओर द्रोपदी के अधिकार का भी मामला है। हिडिम्ब अपने जान से हाथ धो बैठता है मगर हिडिम्बा को अभी पता नहीं है कि इंद्रप्रस्थ स्वीकार नहीं करेगा। प्रेम दो व्यक्तियों के बीच का संबंध नहीं है क्यूंकि आज भी पूरे परिवार ही किसी के जिंदगी के भविष्य का फैसला करते हैं।
हिडिम्ब के मरने पर वे लोग वहां से प्रस्थान की तैयारी करने लगे, इस पर हिडिम्बा पांडवों की माता कुन्ती के चरणों में गिर कर प्रार्थना करने लगी, “हे माता! मैंने आपके पुत्र भीम को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है। आप लोग मुझे कृपा करके स्वीकार कर लीजिये। यदि आप लोगों ने मझे स्वीकार नहीं किया तो मैं इसी क्षण अपने प्राणों का त्याग कर दूंगी।” हिडिम्बा के हृदय में भीम के प्रति प्रबल प्रेम की भावना देख कर युधिष्ठिर बोले, “हिडिम्बे! मैं तुम्हें अपने भाई को सौंपता हूँ किन्तु यह केवल दिन में तुम्हारे साथ रहा करेगा और रात्रि को हम लोगों के साथ रहा करेगा।[1]” भले ही प्रेम को वनवास प्रवास में मान्यता मिली लेकिन प्रतिबंध के इतने दीवारों को तोरणा हिडिंबा के लिए आसान नहीं था। धर्मराज पुत्र युधिष्ठिर
के भाषा में महिला को एक वस्तु समझा जाना आज भी चिंतित करता है। धर्म के ज्ञानी होने
के बाबजूद अतार्किक प्रतिबंध उनके चरित्र को शोभा नहीं देता है। बलशाली भीम भी अपने
प्रेमिका के अधिकार को रक्षा करने में नाकामयाब रहते हैं। बल से किसी की भी रक्षा सम्भव
नहीं है और बुद्धि से मात्र एक टापू के लोग पूरे भारत पर राज करते हैं।
आज भी भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के शहरों और कस्बों में बंदरों की बढ़ती हुई संख्या इतनी बड़ी मुसीबत बन चुकी है कि ये राज्य के चुनाव का एक अहम मुद्दा है। राज्य की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने अपने चुनाव प्रचार में बंदरों की समस्या का हल तलाश करने का वादा किया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, बंदर हर साल डेढ़ सौ करोड़ से अधिक की फ़सल और फल तबाह कर रहे हैं।[2]
हिमाचल में बिजली जैसी समस्या नहीं है। प्रकृति के गोद में बसा राज्य है इसीलिए जल कि भी समस्या नहीं है। माता कुन्ती प्यास से व्याकुल थीं, इसलिये भीमसेन किसी जलाशय या सरोवर की खोज में चले गये। एक जलाशय दृष्टिगत होने पर उन्होंने पहले स्वयं जल पिया और माता तथा भाइयों को जल पिलाने के लिये लौटकर उनके पास आये। वे सभी थकान के कारण गहरी निद्रा में निमग्न हो चुके थे, अतः भीम वहाँ पर पहरा देने लगे।[3] महाभारत
काल में भी जल का अभाव नहीं था और आज भी नहीं है। सड़कों का भी हालत उतना बुरा नहीं
है लेकिन राष्ट्रीय राजमार्ग को काफी सुधारने कि भी आवश्यकता है। राज्य चुनाव में तो
स्थानीय मुद्दे हमेशा से ही हावी होते हैं। बेरोजगारी और कानून व्यवस्था का मुद्दा
दोनों दलों द्वारा उठाया जा रहा है। महाभारत युद्ध में भी घटोत्कच ने पांडवों को काफी
मदद किया लेकिन उसकी भी मौत हो गयी। जो भी हों हिडिम्बा अपने प्रेम के लिए काफी प्रयास
किया और सफलता भी मिली। लेकिन आज हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य में भी कांड' न बन कोटखाई का गुडिया गैंगरेप उस राज्य के
परम्परा के विरुद्ध है। नोटबंदी, जीएसटी और महंगाई जैसा मुद्दा तो आसानी से कोई भी
बी जे पी के विरुद्ध बना सकता है लेकिन ये मुद्दे काफी नहीं होगें। कार्यकर्ताओं के
नाराजगी से और टिकट वितरण से उभरे असंतोष भी दोनों दलों के भीतर है।
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