भारत में ठेका श्रमिकों के हालत बद से बदतर होती जा रही है। ठेकेदारों के संस्कृति ने श्रमिकों के हालत को कुछ इस कदर बना दिया है जिससे वो मनुष्य होकर भी मनुष्य के तरह रह नहीं पाते हैं। जनपथ होटल के 188 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया। आज उन लोगों ने जनपथ होटल के सामने और पर्यटन मंत्रालय के बाहर प्रदर्शन किया। ओम प्रकाश वर्मा इस आंदोलन के प्रणेता बनकर सामने आये। धरती पुत्र ओम प्रकाश वर्मा ऐसे पृथ्वी ग्रह को न्यूक्लियर हथियारों और रसायनिक हथियारों से बचाने कि दिशा में कार्य भी कर रहे हैं। वर्मा जी के प्रयासों से आंदोलन को दिशा मिली। जनपथ के जन इस जनतंत्र में जीवन बचाने के संघर्ष कर रहे हैं। अनुबंध पर कार्य करने वाले श्रमिक को ठेकेदारों द्वारा आर्थिक और मानसिक शोषण बढ़ता ही जा रहा है। श्रमिकों में सभी जाति और धर्म के लोग हैं जो शिक्षा के अभाव में अपने अधिकारों को भी नहीं जानते हैं। जनपथ 188 आंदोलन श्रमिकों
का आंदोलन है जो अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। योग्यता का आधार अगर श्रम
है तो सर्वाधिक योग्य श्रमिक ही हैं लेकिन मजदूरी उसके कार्य के अनुरूप नहीं मिलता
है। समाजिक और आर्थिक सुरक्षा के नाम पर भलें ही कानून बहुत हों मगर श्रमिकों तक पहुंच
नहीं पाता है।
यूरोप में श्रम आंदोलन की शुरुआत औद्योगिक क्रांति के दौरान हुई थी जब कृषि क्षेत्र में रोजगार कम हो गए और औद्योगिक क्षेत्रों में अधिक से अधिक नियुक्तियां होने लगीं. इस विचार को भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा. 18वीं सदी और 19वीं सदी की शुरुआत में टोलपडल मर्टायर्स ऑफ योर, डोरसेट जैसे समूहों को दंडित किया गया। श्रमिक आंदोलन 19वीं सदी के प्रारंभ से मध्य तक सक्रिय रहा और इस दौरान संपूर्ण औद्योगिक जगत में विभिन्न श्रमिक दलों का गठन किया गया। फ्रेडरिक एंजेल्स और कार्ल मार्क्स की रचनाएं पहले कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के गठन का कारण बनीं जिनकी नीतियों को कम्युनिस्ट घोषणापत्र में संक्षेपित किया गया था। इसके प्रमुख बिंदु थे स्वयं को संगठित करने का श्रमिकों का अधिकार, 8 घंटों के कार्यदिवस का अधिकार आदि. 1871 में फ्रांस में श्रमिकों ने विद्रोह कर दिया और इस तरह पेरिस कम्यून का गठन किया गया।[1]
हमारे देश में स्वतंत्रता आंदोलन के साथ ही मजदूरों
का आंदोलन भी प्रारम्भ हुआ। जिसमें एम एन राय, लाला लाजपत राय, महात्मा गाँधी, सरदार
पटेल जैसे नेताओं का योगदान काफी सराहनीय रहा। श्रमिकों के कानून को असली स्वरूप भीमराव
आंबेडकर के प्रयासों से ही सम्भव हुआ। डॉ बाबासाहेब आंबेडकर एक लेबर नेता के रूप में
मजदूरों के बहुत कार्यों को अंजाम तक पहुंचाया। 1942 में उन्होंने वायसराय की कार्यकारी
परिषद की लेबर सदस्य के रूप में शपथ ली थी।
उन्होंने
कहा कि भारत में श्रमिकों के लिए 14 घंटे से
8 घंटे का समय तय करवाया।उन्होंने कहा कि नई दिल्ली में भारतीय श्रम सम्मेलन, 27 नवंबर,
1942 के 7 वें सत्र में भाग लिया।
डॉ
बाबासाहेब आंबेडकर भारत में महिलाओं मजदूरों के लिए कई कानूनों को पारित करवाया।
खान
मातृत्व लाभ अधिनियम,
महिलाओं
के श्रम कल्याण निधि,
महिला
एवं बाल श्रम संरक्षण अधिनियम,
महिलाओं
के श्रम के लिए मातृत्व लाभ,
कोयला
खदानों में भूमिगत काम पर महिलाओं के रोजगार पर प्रतिबंध
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर रोजगार कार्यालयों की स्थापना में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अनुबंध श्रम नियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1 9 70 का उद्देश्य अनुबंध श्रम के शोषण को रोकने और काम की बेहतर स्थिति पेश करने के लिए है। ठेकेदार द्वारा या उसके माध्यम से किसी प्रतिष्ठान के काम के संबंध में एक मजदूर को अनुबंध श्रम के रूप में नियोजित किया जाना माना जाता है। अनुबंध कार्यकर्ता अप्रत्यक्ष कर्मचारी हैं। अनुबंध मजदूर मजदूरी भुगतान की स्थापना और विधि के साथ रोजगार संबंधों के संदर्भ में प्रत्यक्ष श्रम से अलग है। अनुबंध श्रम, और बड़े वेतन वेतन पर नहीं ले जाता है और न ही सीधे भुगतान किया जाता है। अनुबंध कार्यकर्ता ठेकेदार द्वारा काम पर रखा, पर्यवेक्षण और लाभान्वित किया जाता है, जो बदले में, ठेकेदार की सेवाओं की नियुक्ति के लिए प्रतिष्ठान द्वारा भुगतान किया जाता है। यह अधिनियम एक प्रतिष्ठान के प्रधानाचार्य नियोक्ता और ठेकेदार पर लागू होता है जहां 20 या उससे ज्यादा मजदूरों में कार्यरत हैं या पिछले 12 महीनों में अनुबंध श्रम के रूप में एक दिन के लिए भी कार्यरत हैं। संख्या की गणना के उद्देश्य के लिए, विभिन्न ठेकेदार के माध्यम से विभिन्न प्रयोजनों के लिए नियोजित अनुबंध श्रम को ध्यान में रखा जाना चाहिए। यह अधिनियम उन प्रतिष्ठानों पर लागू नहीं होता है जहां प्रदर्शन किया गया काम आंतरायिक या मौसमी प्रकृति का है। यदि एक प्रिंसिपल नियोक्ता या ठेकेदार इस अधिनियम के आसपास के भीतर आता है, तो ऐसे प्रमुख नियोक्ता और ठेकेदार को क्रमशः स्थापना और लाइसेंस के पंजीकरण के लिए आवेदन करना होगा। ठेकेदार अधिनियम में अस्थायी पंजीकरण के लिए भी प्रदान किया जाता है, यदि अनुबंध श्रम 15 दिनों से अधिक की अवधि के लिए रखा जाता है। पंजीकरण या लाइसेंसिंग प्रमाण पत्र में निर्दिष्ट विवरण में होने वाली कोई भी परिवर्तन संबंधित परिवर्तनकर्ता अधिकारी को ऐसे परिवर्तन के 30 दिनों के भीतर सूचित किए जाने की आवश्यकता है। संविदा श्रम (विनियमन और उन्मूलन) केंद्रीय नियम, 1971 की धारा 7 और नियम 17 और 18 के संयुक्त पढ़ने से, ऐसा प्रतीत होता है कि प्रत्येक प्रतिष्ठान के संबंध में प्रधानाचार्य नियोक्ता को पंजीकरण के लिए आवेदन करना होगा। नोट करने के लिए अन्य महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि एक अनुबंध के लिए जारी लाइसेंस पूरी तरह से अलग अनुबंध कार्य के लिए नहीं किया जा सकता है, हालांकि स्थापना में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। 18 अनुबंध संविदा (विनियमन और उन्मूलन) केन्द्रीय नियम, 1971 का ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधानाचार्य नियोक्ता को प्रत्येक संस्थान के संबंध में पंजीकरण के लिए आवेदन करना होगा। नोट करने के लिए अन्य महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि एक अनुबंध के लिए जारी लाइसेंस पूरी तरह से अलग अनुबंध कार्य के लिए नहीं किया जा सकता है, हालांकि स्थापना में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। 18 अनुबंध संविदा (विनियमन और उन्मूलन) केन्द्रीय नियम, 1971 का ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधानाचार्य नियोक्ता को प्रत्येक संस्थान के संबंध में पंजीकरण के लिए आवेदन करना होगा। नोट करने के लिए अन्य महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि एक अनुबंध के लिए जारी लाइसेंस पूरी तरह से अलग अनुबंध कार्य के लिए नहीं किया जा सकता है, हालांकि स्थापना में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।[2]
मजदूरों के हितों पर सरकार को पर्याप्त ध्यान देना चाहिए। ठेके पर कार्य करने वाले मजदूरों पर तो विशेष ध्यान देने की जरूरत है। हाशिये के समाज को सपर्पित है - यह लेख।
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