जनमत को भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से जोड़ने का कार्य जाति व्यवस्था
आसानी से कर देती है। बाह्य आवरण विकास होता है और आंतरिक आवरण में जाति, धर्म और धन का ही संगम होता है। अपराध और अपराधी पहले चुनाव में अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेते थे लेकिन उन्होंने भी समय के साथ खुद को संसदीय प्रणाली से जोड़ा। हाल के दिनों में नौकरशाही से सीधे राजनीतिक भर्ती भी होने लगी है। एक नौकरशाह तो खुद ही अपना दल बना कर सत्ता में शामिल हुआ। यह भरतीय राजनीति में एक नई प्रवृति का जन्म हो रहा है। इसे सैटल राजनीति भी कहा जा सकता है। खैर अब असली मुद्दे पर आना चाहिए।
राज्य
12 जिलों , 75 तहसीलों, 52 उपमंडलों, 75 ब्लॉकों
और 20,000 से ज्यादा गांवों और 57 कस्बों में
बंटा है।
जिला
= 12
तहसील
= 75
उपमंडल
= 52
ब्लॉक
= 75
कस्बा
= 57
गाँव
= लगभग 20000
हिमाचल
प्रदेश में विधान परिषद नहीं है। अब समय के साथ प्रत्येक
राज्यों में विधान परिषदों को अनिवार्य कर
देना चाहिए। इससे जनतंत्र में भागीदारी लोकतंत्र
को बढ़ावा मिलेगा। जनसंख्या जिस हिसाब से बढ़
रही है उस अनुपात में एक सदन पर्याप्त नहीं होगी। महिलाओं को दोनों सदनों में पचास
प्रतिशत आरक्षण भी देना चाहिए। इस राज्य में
एक सदनीय विधायिका है और जो 68 निर्वाचन
क्षेत्रों में बटा है। विधानसभा के अंदर मात्र
चौदह 14 हाउस कमेटियां हैं। यहां चार लोक सभा
क्षेत्र हैं और तीन राज्य सभा की हैं। राज्य
में अभी भी कोई क्षेत्रीय दल अन्य राज्यों की नहीं उभरा है। मुख्य भूमिका भारतीय राष्ट्रीय
कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी का ही रहता है। एक विशेष विशेषता यह है की हिमाचल प्रदेश में बारी बारी से इन्हीं दलों की
सरकार बनती है। इस राज्य में महिलाओं को अभी भी राजनीतिक प्रतिनिधित्व सापेक्षिक रूप
से नहीं मिला है जो चिंताजनक है। महिलाओं को आखिर नेतृत्व क्यों नहीं मिला? पुरुषवादी
मानसिकता और राजनीतिक संरचना दोनों जिम्मेदार है। महिलाओं के प्रति हिंसा के मामले
भी बहुत कम ही है। टिकट वितरण प्रणाली में जब तक महिलाओं को शामिल नहीं किया जायेगा
तो प्रतिनिधित्व मिलना सम्भव नहीं है।
हिमाचल
प्रदेश में नब्बे प्रतिशत जनसंख्यां के बाबजूद साम्प्रदायिक घटना और साम्प्रदायिक नफरत
भी नहीं है जो राज्य के प्रगतिशील सूचक होने का प्रतीक है। राजपूत जातियों कि जनसंख्या
सर्वाधिक है इसीलिए राजनीति के मुख्यधारा में इसी जाति का वर्चस्व है। राजपूतों के
बाद अनुसूचित जातियों कि जनसंख्या सर्वाधिक है मगर राज्य में अभी तक उसका नेतृत्व अभी
तक नहीं उभरा है। आने वाले समय में अगर उत्तर प्रदेश में दलितों और ब्राह्मणों के गठजोड़
के बाद बसपा पूर्ण बहुमत प्राप्त कर लिया था उसी प्रकार दलितों और राजपूतों के गठजोड़
से आसानी से हिमाचल प्रदेश में कोई भी सत्ता पर काबिज हो सकती है।
राजपूत
= 38 प्रतिशत
दलित
= 27 प्रतिशत
दोनों
समुदायों को मिला देने पर 65 प्रतिशत का आकड़ा हो जाता है जो सत्ता प्राप्त करने के
लिए पर्याप्त है। हिमाचल प्रदेश की 13 जातियां अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सूची से बाहर कर दी गई हैं। इनमें तूरी, भड़भूना, चाहंग, चांगर, धीमार, दइया, कश्यप राजपूत, प्रजापति, कंगेहरा, कंजर, नालबंद, रेचबंद व गुज्जर शामिल हैं जबकि केंद्रीय सूची में ये जातिया शामिल हैं। इन जातियों को अब केंद्रीय सूची से भी हटा दिया जाएगा। कुल्लू जिला के मलाणा व कांगड़ा के छोटा व बड़ा भंगाल को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का दर्जा मिलने से पहले सर्वेक्षण होगा। इस मामले पर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का दल उक्त क्षेत्रों के लोगों के सामाजिक तौर तरीकों व आर्थिकी का विश्लेषण करेगा। आयोग अध्ययन करेगा कि ऐसा इन गांवों में क्या है जो राज्य सरकार ने सभी को ओबीसी में लाने की सिफारिश की है।[1] पिछड़ा
समाज भी अभी भी हिमाचल प्रदेश में नेतृत्व के मामले में भी पिछड़ा बना हुआ है। हिमाचल
में ओबीसी की 48 जातियां दो दर्जन सियासी हलकों में अपनी गहरी छाप छोड़ती हैं। यह बात
अलग है कि बिखरे वोट बैंक के चलते ओबीसी का असर कुछ सीटों से ज्यादा नजर नहीं आता है।
लीडरशिप के अकाल से जूझती ओबीसी का हर कोई हिमायती बनकर वोट बटोरने की फिराक में है,लेकिन सच्चाई इसके उलट है। आज न तो चौधरी हरिराम और हरदयाल सरीखे लीडर पिछड़ों के पास हैं और न ही कोई सरकार इस समुदाय को सियासी प्रतिनिधित्व दे पाई है । प्रदेश में ओबीसी की आबादी
18 फीसदी के करीब है, जबकि कांगड़ा जिला में
सबसे ज्यादा 56 प्रतिशत लोग इस समुदाय के हैं। विशेषकर कांगड़ा और नगरोटा बगवां चुनाव
क्षेत्र की सरदारी ओबीसी ही तय करता है, जबकि पालमपुर, धर्मशाला, सुलाह व देहरा में
इस वर्ग की आबादी 50 प्रतिशत के आसपास है। लिहाजा इन चुनाव क्षेत्रों में ओबीसी एमएलए
बनाने में निर्णायक भूमिका निभाता है। हमीरपुर और नादौन में भी लगभग यही स्थिति है,जबकि
शाहपुर, ऊना, हरोली व अंब में 40 व पांवटा, नाहन, सुजानपुर व भोरंज में ओबीसी की आबादी
30 प्रतिशत के आसपास है। ओबीसी के लिहाज से हॉट सीट की बात करें तो कांगड़ा व नगरोटा
बगवां व धर्मशाला ओबीसी वोटों की संख्या सर्वाधिक है, लेकिन सिर्फ एक कांगड़ा की सीट
ही ओबीसी के पवन काजल के पास है, जबकि नगरोटा बगवां व धर्मशाला में ब्राह्मण नेताओं
का कब्जा है, वैसे नगरोटा बगवां व कांगड़ा क्षेत्र में हमेशा ओबीसी का ही नुमाइंदा
विस में इन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता रहा है, लेकिन भाजपा के रामचंद भाटिया को
पराजित कर विस पहुंचे जीएस बाली को आज तक शिकस्त देने की कोई हिम्मत न जुटा पाया।[2]
|
क्रमांक
|
नाम
|
पदभार ग्रहण
|
पदमुक्ति
|
दल/पार्टी
|
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1
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8 मार्च
1952
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31 अक्टूबर
1956
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|
राज्य को
एक संघ शासित
प्रदेश में
परिवर्तित कर
दिया गया (31 अक्टूबर 1956 - 1 जुलाई 1963)
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2
|
1 जुलाई
1963
|
28 जनवरी
1977
|
||
|
3
|
28 जनवरी
1977
|
30 अप्रॅल
1977
|
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राष्ट्रपति शासन
(30 अप्रॅल 1977 - 22 जनवरी 1977)
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|
4
|
22 जून
1977
|
14 फ़रवरी
1980
|
||
|
5
|
14 फ़रवरी
1980
|
7 अप्रॅल
1983
|
||
|
6
|
8 अप्रॅल
1983
|
8 मार्च
1985
|
||
|
7
|
8 मार्च
1985
|
5 मार्च
1990
|
||
|
8
|
5 मार्च
1990
|
15 दिसम्बर
1992
|
||
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राष्ट्रपति शासन
( 15 दिसम्बर 1992 - 03 दिसम्बर 1993)
|
||||
|
9
|
3 दिसम्बर
1993
|
23 मार्च
1998
|
||
|
10
|
24 मार्च
1998
|
5 मार्च
2003
|
||
|
11
|
6 मार्च
2003
|
30 दिसम्बर
2007
|
||
|
12
|
30 दिसम्बर
2007
|
25 दिसम्बर
2012
|
||
|
13
|
25 दिसम्बर
2012
|
अबतक
|
||
|
1
|
अद
धर्मी
|
29
|
बघी
नगालू
|
|
2
|
बाल्मिकी,
भंगी, चुहडा
|
30
|
बन्धेला
|
|
3
|
बंगाली
|
31
|
बंजारा
|
|
4
|
बंसी
|
32
|
बरड
|
|
5
|
बरड,
बुराड, बेराड
|
33
|
बटवाल
|
|
6
|
बोरिया,
बावरीया
|
34
|
बाजीगर
|
|
7
|
भजड़ा,
|
35
|
चमार,
जतियां, चमार,
रहगड़, रामदासी, रविदासी,
रामदासिया, मौची
|
|
8
|
चनाल
|
36
|
छिम्बे,
धोबी
|
|
9
|
डागी,
|
37
|
दराई,
|
|
10
|
दरयाई
|
38
|
दावले
|
|
11
|
धाकी
तुरी
|
39
|
धनक
|
|
12
|
धोगरी
|
40
|
धागरी.सिगी
|
|
13
|
डूम,डूमणा
|
41
|
गगरा
|
|
14
|
गधीला,गादीमा, गोदिला
|
42
|
हाली
|
|
15
|
हैसी
|
43
|
जोगी
|
|
16
|
जुलाह,
कबीर पंथी,कोर
|
44
|
कमोह,डगोली
|
|
17
|
कराक
|
45
|
खटीक
|
|
18
|
कोली
|
46
|
लोहार
|
|
19
|
मरीजे,मरीचा
|
47
|
मजहवी
|
|
20
|
मैघ
|
48
|
नट
|
|
21
|
औड,
|
49
|
पासी
|
|
22
|
परना
|
50
|
फरेड़ा
|
|
23
|
रेहड़
|
51
|
सुनाई
|
|
24
|
सन्हाल
|
52
|
संसी
भेडकुट मनेश
|
|
25
|
सनसुई
|
53
|
सपेला
|
|
26
|
सरडे,
सरयाड़े
|
54
|
सिकलीगर
|
|
27
|
सीपी
|
55
|
सिरकिन्द
|
|
28
|
तेली
|
56
|
ठठीयार,
ठठेरे
|
अनुसूचित जनजाति सूची
|
क्र.स.
|
अनुसूचित जनजातियाँ
|
क्र.स.
|
अनुसूचित जनजातियाँ
|
|
1
|
भोट, बोध
|
5
|
भोट, बोध, गददी
|
|
2
|
गुज्जर
|
6
|
जाड, लाम्बा, खाम्पा
|
|
3
|
कनौरा, किन्नौरा
|
7
|
लाहौला
|
|
4
|
पगवाला
|
8
|
स्वांगला
|
बहुत अच्छा
ReplyDeletethanks
Deleteबहुत अच्छा
ReplyDeletethanks once again
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